राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने पिछले दिनों नफरती बयानबाजी करने वालों के संदर्भ में अपनी जो प्रतिक्रिया व्यक्त की पता नहीं कि वह संघ की ओर से जारी कराई गई आधिकारिक प्रतिक्रिया थी या उनकी अपनी निजी राय। परंतु इसमें कोई शक नहीं कि उनका बयान अत्यंत सकारात्मक, सराहनीय व प्रशंसनीय था। गौरतलब है कि इंद्रेश कुमार ने गत तीन फरवरी को समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में उत्तराखंड के हरिद्वार में आयोजित कथित धर्म संसद तथा छत्तीसगढ़ के रायपुर में आयोजित इसी प्रकार के अन्य समागम में मुसलमानों के विरुद्ध की गई हिंसा फैलाने वाली भड़काऊ व उकसाऊ भाषणबाजी की निंदा करते हुये कहा कि -‘जो भी लोग भड़काऊ बयानबाजियां करते हैं उनके विरुद्ध सख़्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि वह कोई बड़ी शख्सियत हैं या किसी राजनीतिक दल या समूह से संबंध रखते हैं।’
इंद्रेश कुमार ने राजनैतिक दलों और उनके नेताओं को नफरत फैलाने और समाज के एक वर्ग को दूसरे वर्ग के विरुद्ध खड़ा करने से बचने का आह्वान किया। इंद्रेश ने ऐसे विभाजनकारी बयान देने वालों को यह भी सलाह दी कि किसी भी समुदाय जाति अथवा समूह के खिलाफ भड़काऊ व विभाजनकारी टिपण्णी करने के बजाय उन्हें देश व देशवासियों के सर्वोत्तम हित में ‘भाईचारे और विकास’ की राजनीति करनी चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि लोगों को बांटने की कोशिश करने वाले ऐसे कृत्यों के कारण देश का माहौल खराब होता है।
यदि यह इंद्रेश कुमार का व्यक्तिगत बयान है तो उनके विचारों की भरपूर सराहना की जानी चाहिए और यदि यह संघ की ओर से जारी किया या कराया गया बयान है तो इस बयान के बाद जो ‘भ्रम की स्थितियां’ उत्पन्न हो रही हैं उन्हें भी स्पष्ट किया जाना जरूरी है। उदाहरणतय: सर्वप्रथम तो यह कि यदि हम संघ के मुस्लिम विरोध के दस्तावेजी सुबूत की बात करें तो वह हमें संघ के द्वितीय सर संघ चालक माधवराव सदाशिवराव गोलवरकर द्वारा लिखित व 1966 में प्रकाशित पुस्तक ‘बंच आॅफ थॉट्स’ के तीसरे संस्करण में मिल जाता है। इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय ईसाइयों को ‘ब्लडसकर’ अर्थात खून चूसने वाला और मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को देश के लिए आंतरिक खतरा बताया है।
इसी पुस्तक में वे यह भी स्वीकार करते हैं कि ‘उन्हें नाजी जर्मनी से प्रेरणा मिली है।’ सवाल यह है कि भारतीय जनता पार्टी तथा उसके संरक्षक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का वैचारिक दृष्टिकोण ही जब समुदाय, समुह अथवा वर्ग विशेष के विरुद्ध नफरत पैदा करने व नफरत फैलाने वाला हो तो इससे संस्कारित व प्रशिक्षित नेता अथवा कार्यकर्ता स्वयं को नफरत फैलाने से भला कैसे दूर रख सकते हैं? फिर चाहे वह संघ संस्कारित देश के प्रधानमंत्री हों गृह मंत्री किसी राज्य के मुख्यमंत्री या किसी भी छोटे बड़े संवैधानिक अथवा प्रशासनिक पदों पर बैठे लोग?
इन दिनों उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इसी सिलसिले में देश के गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों कैराना पलायन, राम मंदिर जैसे मुद्दों का दांव चला। देश के गृह मंत्री ने फरमाया, ‘कैराना पलायन को याद करके मेरा तो खून खौल उठता है।’
दूसरी ओर कैराना के अधिकांश लोगों का कहना है कि यहां दंगे फसाद के कारण न कभी पलायन हुआ न ही यहां आपस में कोई मन मुटाव है। आज तमाम नेता चुनावी वातावरण में महज सत्ता और चुनावी जीत के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण कराने में लगे हैं। बिकाऊ गोदी मीडिया उनका साथ दे रहा है। मंत्री स्तर के लोग-‘गोली मारो …को’ जैसे नारे लगा व लगवा रहे हैं। और ऐसे लोगों को ‘प्रोन्नति’ दी जा रही है? इसी नफरती माहौल ने छोटे छोटे बच्चों के भविष्य को ऐसा बर्बाद कर दिया है कि वे अपने शिक्षा व तकनीकी योग्यता का इस्तेमाल अपना कैरियर बनाने व देश का भला करने में नहीं बल्कि धर्म विशेष की लड़कियों व महिलाओं की नीलामी करने वाली ऐप बनाने में कर रहे हैं। यह सब नफरती बयानबाजियों व टीवी के माध्यम से आम लोगों के ड्राइंग रूम में नफरत परोसने का ही परिणाम है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री साफ साफ कह रहे हैं कि यह चुनाव 80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत के बीच का चुनाव है। इसका क्या अर्थ है? कहा जा रहा है कि यदि विपक्षी सत्ता में आए तो वे राम मंदिर पर बुलडोजर चला देंगे। इससे बड़ी नफरत भरी बयानबाजी और क्या हो सकती है? कौन है इन नफरती बयानबाजों के विरुद्ध कार्रवाई करने का साहस दिखाने वाला? उसे सामने आना चाहिए।
बहरहाल ‘नफरती बयानबाजी’ के उपरोक्त व इन जैसे तमाम उदाहरणों के बावजूद इंद्रेश कुमार का बयान स्वागत योग्य तो जरूर कहा जाना चाहिए। साथ-साथ नफरती बयानबाजी पर ‘भ्रम’ की यह स्थिति भी स्पष्ट होनी चाहिए कि नफरती बयानबाजी करने के लिये क्या कुछ ‘उच्च स्तरीय नेताओं’ को पूरी छूट मिली हुई है। और यह भी कि नफरती बयानबाजी का पैमाना क्या हो और इसे किन के द्वारा और कैसे निर्धारित किया जाए? परंतु मैं इंद्रेश कुमार की बात से पूरी तरह सहमत हूं कि किसी भी धर्म, जाति, वर्ग अथवा समूह को नफरत फैलाने वाली बयानबाजी कतई नहीं करनी चाहिए। एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। जो भी ऐसे विभाजनकारी प्रयासों में लिप्त हो उसके विरुद्ध सख़्त कानूनी कार्रवाही की जानी चाहिए और जनता को भी चाहिए कि मात्र अपनी सत्ता की खातिर समाज को बांटने वाले ऐसे नेताओं को वोट देना तो दूर बल्कि उनका बहिष्कार करे।