- बस्ते के अधिक वजन से बच्चों की कमर और घुटनों पर पड़ रहा प्रभाव
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: मासूम-से दिखने वाले बच्चे पीठ पर 30 किलो का बस्ता लिए पैदल ही स्कूल जाते हैं। पीठ पर बस्ता होने के नाते आगे की ओर झुका हुआ, वह अपनी धुन में आगे बढ़ा ही जाता है। शहर कई स्कूलों में तमाम ऐसे बच्चे हैं जो कम उम्र में ही बस्ते के बोझ तले दबे जैसे-तैसे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यह निजी शिक्षा पद्धति का नमूना है। जहां दूसरी व तीसरी कक्षा के छात्रों के पास काफी पुस्तकें हैं।
उनका बोझ भी कम नहीं। मासूम बच्चे बस्तों के बोझ उठाकर कम उम्र में ही कमर जनित बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। वहीं छात्र भी बस्ते के बोझ तले दबे हुए हैं। देशभर में छोटे-छोटे बच्चे भारी भरकम बस्ता लादे देखे जा सकते हैं। छुट्टी के बाद स्कूल से लौटते बच्चों की चाल देखकर समझा जा सकता है कि उन्हें भारी वजन के कारण पीठ दर्द और मांसपेशियों की समस्याओं व गर्दन दर्द से जूझना पड़ रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार चूंकि इन दिनों लगभग सभी स्कूलों में व्यायाम और खेलों का प्रचलन घटा है। अत: छात्र बेशक घुलघुल हो, लेकिन 18 वर्ष तक हड्डियां नरम ही रहती हैं और रीढ़ की हड्डी भारी वजन सहने लायक नहीं होती। अत: स्पाइन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सिरदर्द, गर्दन दर्द व कंधों में दर्द होता है। बचपन एक ऐसी उम्र होती है, जब हम तनाव के मुक्त होकर मस्ती से जीते है।
नन्हें गुलाबी होंठों पर बिखरती फूलों सी हंसी, मुस्कुराहट। बच्चों की शरारत, रूठना, जिद करना, अड़ जाना ही बचपन है, लेकिन अपने दिल पर हाथ रखकर हमें बताना चाहिए कि क्या हमारे बच्चों को ऐसा वातावरण मिल रहा है? क्या यह सत्य नहीं कि उनका बचपन तनाव की काली छाया से कलुषित हो रहा है? क्या आप इस बात से इंकार कर सकते हो कि हर सुबह स्कूल जाने से बचने के लिए वे पेट दर्द से लेकर सिरदर्द तक के अनेक के बहाने नहीं बनाते हैं और मुस्कुराते हुए भारी बस्ता टांगे खचाखच भरी स्कूल वैन पर सवार होते हैं? क्या उनके नन्हे चेहरों पर उदासी व तनाव नहीं होता?
स्कूल में ज्यादा कोर्स, यानी ज्यादा जिम्मेदारी। कही ये जिम्मेदारी आपके बच्चे के स्वास्थ्य पर भारी न पड़ जाए। डॉक्टरों का मानना है कि बच्चों के भारी भरकम बैग से उनमें कई तरह की समस्याएं हो रही है। इतना ही नहीं इससे उनके उठने-बैठने से लेकर चलने-फिरने तक का ढंग प्रभावित हो रहा है। साथ ही उनमें तनाव भी बढ़ता जा रहा है। सूत्रों की माने तो बच्चे अपने वजन से का 15 से 20 प्रतिशत अधिक वजन उठा रहे हैं।
इस मामले में जब वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डा. राहुल नेहरा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि उनके यहां महीने में 15 से 20 ऐसे मामले आ रहे हैं। जिनमें बच्चों की कमर या फिर घुटनों में दर्द की समस्या है। उनका कहना है कि यह सब भारी भरकम बैग उठाने की वजह से हो रहा है। उन्होंने बताया कि इन बातों पर गौर न करने की वजह से बच्चों में स्पॉन्डलाइटिस, झुकी हुई कमर और पॉस्टर से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती है।
कितना वजन है सही
डा. राहुल नेहरा के मुताबिक अगर बच्चा नियमित रूप से अपने वजन का 10 प्रतिशत से ज्यादा बोझ कंधों पर उठाएगा तो उनको स्थायी नुकसान होगा। स्टडी के मुताबिक रोजाना 5-5 और सात किलोग्राम से ज्यादा वजन उठाने से बच्चों के हाथ, पैर और कंधों पर दर्द शुरू हो जाता है। बच्चों में मोटापा भी इसके लिए जिम्मेदार है।
इन बातों का रखे ध्यान
- बैग के लटकाने के बाद बच्चे का पॉस्चर चेक करना जरूरी है।
- बच्चा स्कूल केवल वहीं चीजें लेकर जाए जो जरूरी है।
- बच्चों में बचपन से ही योगा और एक्सरसाइज की आदत डाले।
- बच्चों के लिए हल्का खरीदे बैैग।