
हाल ही में सभी सोशल माध्यमों पर कॉमेडी कार्यक्रम आने लगे हैं। कहा जाता है कि बीते दशकभर में कॉमेडी का स्वरूप पूर्ण रुप से बदल गया। कई कॉमेडियनों ने इस क्षेत्र में अपना भविष्य भी बनाया है लेकिन सवाल यही है कि अब भद्दी बातें व अश्लीलता को ही कॉमेडी माना जा रहा है। कुछ लोगों ने अपने माता-पिता के संघर्ष की बातों पर ही कॉमेडी बनानी शुरू कर दी।
ऐसे ही अन्य कुछ मुद्दों पर कॉमेडी किंग राजपाल यादव से योगेश कुमार सोनी की एक्सक्लूसिव बातचीत के मुख्य अंश…
अब शॉर्ट वीडियो में भद्दी कॉमेडी देखने को मिलती है। कुछ कॉमेडियन अपने माता-पिता के लिए बुरा-भला कहकर उन पर ही कॉमेडी बना रहे हैं।
हां, यह मैंने भी नोटिस किया है कि लोग अपने भगवान रूपी माता-पिता संघर्ष की बातों पर ही कॉमेडी बना कर बेच रहे हैं, लेकिन मैं इसका पूरी तरह विरोध करता हूं। दरअसल मशहूर होने की चाह ने नई पीढ़ी को अंधा बना दिया। अब हर किसी को बहुत ज्यादा जल्दी फेमस होने की पड़ी है और वह कुछ अलग करने की चाह में गलत व तथ्यहीन करने लगा। हर बात व घटना पर कॉमेडी कीजिए लेकिन माता-पिता जैसे रिश्तों को बख्श देना चाहिए चूंकि वो हमारे भगवान हैं और भगवान पर कॉमेडी करना किसी भी नजरिये से जायज नही।
क्या आपको लगता है कॉमेडी में भविष्य बना सकते हैं?
कॉमेडी का दौर हमेशा रहा है। कोई भी फिल्म या नाटक या किसी भी प्रकार के कार्यक्रम में कॉमेडी का तड़का लगता है तभी वह पूरा माना जाता है लेकिन आप वो कॉमेडी करें जो घर वालों के साथ देख सकें। अब डबल मीनिंग बातें करके कॉमेडी का मजा बदलते देते हैं जिसको मैं अच्छा नहीं समझता। तमाम लोगों ने कॉमेडी में अपना भविष्य बनाया है, मैंने भी अपना करियर बतौर कॉमेडियन ही शुरू किया था।
नए कलाकारों का मानना है कि उन्हें सिनेमा जगत में आने के लिए पहले की अपेक्षा ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है?
बिल्कुल गलत बात। हर कोई बहुत संघर्ष करता है। दरअसल नई पीढ़ी की समस्या यह है कि उन्हें सब कुछ बहुत जल्दी चाहिए। हमें तो ऐसा लगता है कि पहले जमाने में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए ज्यादा संघर्ष करना पडता था और अब तो तमाम सोशल माध्यम आ गए जिससे वह अपनी कलाकारी को उन पर दर्शा सकते हैं। इसके अलावा अहम बात यह है कि जिसकी कलाकारी बेहतर होगी वो चलेगा। यदि आप किसी बड़े स्टार के बच्चे भी हैं तो आपको एक-दो फिल्में तो मिल जाएंगी लेकिन लंबे समय तक टिके रहने के लिए मेहनत व बेहतर कलाकारी की जरूरत पड़ेगी।
अब फिल्में सिनेमा घरों में नहीं ओटीटी प्लेटफार्म पर आने लगीं। इससे कलाकारों या सिनेमा तंत्र नुकसान या फायदा क्या हो रहा है?
कलाकारों की बात करें तो वह अपनी उतनी ही फीस वसूल रहें हैं जितनी वह लेते हैं। बात रही सिनेमा तंत्र की तो पिछले लगभग पांच वर्षों से लगातार लोग अब ओटीटी प्लेटफार्म का प्रयोग कर रहे हैं। बदलाव प्रकृति का नियम है तो हमें उसका स्वागत करना चाहिए। ओटीटी के यदि किसी भी प्लेटफॉर्म पर एक बार सालाना शुल्क दे देते हो जो लगभग दो सिनेमा की टिकटों की कीमत के बराबर होता है, उस पर कई फिल्मों देखा जा सकती हैं। इसके अलावा कई तरह मनोरंजन सामग्री उपलब्ध होती है। और अब वैसे भी कोरोना के बाद दर्शकों सिनेमाघरों में जाना उचित नहीं समझ रहे, जिससे लोग ओटीटी की ओर ज्यादा प्रभावित होने लगे।
पाठकों को आपकी ओर से कोई संदेश!
अक्सर लोग अपने काम-धंधों या अन्य किसी और परेशानी का हवाला देकर घर में तनाव रखते हैं और वो न तो खुद खुश रहते और नही दूसरों को रहने देते जो बेहद गलत व दुर्भाग्यपूर्ण है। हर किसी के अंदर एक कॉमेडियन छुपा होता है। जरूरी नही कि आपको किसी मंच की जरूरत हो। अपने घर,आॅफिस व आस-पास के लोगों में कॉमेडी करते रहिये जिससे कि आप भी खुश रहें और दूसरों को भी खुश रख सकें। कॉमेडी एक तरह ही खुश रहने की कुंजी है।
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