Saturday, July 5, 2025
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सपा की साइकिल के बदले ‘चालक’, नहीं दौड़ा पाए

  • सपा बागपत लोस सीट पर दूसरे स्थान तक पहुंची
  • रालोद का खेल बिगाड़ने में दो बार सफल रही थी सपा

अमित पंवार |

बागपत: समाजवादी पार्टी ने साइकिल को दौड़ाने के लिए चुनावी रणभेरी में खूब चालक बदले हों, लेकिन एक भी जीत बागपत लोकसभा में नहीं मिली है। इतना जरूर है कि वर्ष 1996 और 2014 में कड़ी टक्कर ने रही है। इन चुनावों में सपा ने दूसरा स्थान लिया था। दोनों चुनावों में रालोद की हार का कारण भी सपा बनी थी। इस बार भी सपा ने नए चेहरे पर दांव लगाया है। सपा ने यहां से जाट चेहरे के रूप में मनोज चौधरी को उतारकर सपा की साइकिल को दौड़ाने की फिल्डिंग बिछाई है।

लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव सपा हमेशा जीत की जद्दोजहद में दिखाई दी है। अगर बागपत लोकसभा की बात की जाए तो सपा ने हर चुनाव में नए नए चेहरों पर दांव खेलकर देखा, लेकिन उसकी साइकिल दौड़ नहीं पाई। चुनावी आंकड़ों को देखा जाए तो सपा ने वर्ष 1996 में मुखिया गुर्जर को मैदान में उतारा था। उनके सामने चौधरी अजित सिंह कांग्रेस से थे। सपा को इस चुनाव में 22.64 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि रालोद मुखिया को 52.71 प्रतिशत वोट मिले थे। सपा दूसरे स्थान पर रही थी।

वर्ष 1998 में सपा ने मुस्लिम कार्ड खेल और मैराजुद्दीन को प्रत्याशी बनाया था। उनके सामने चौधरी अजित सिंह थे। इस चुनाव में भाजपा के सोमपाल शास्त्री ने जीत दर्ज कर यहां सभी आंकड़े फेल कर दिए थे। सपा को इस चुनाव में 18.82 प्रतिशत वोट मिले थे। सपा ने वर्ष 1999 में फिर मैराजुद्दीन को उतारा था। सपा को यहां करारी हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद वर्ष 2004 में रालोद ने बागपत सीट पर सपा के गठबंधन में चुनाव लड़ा था। जिसमें इस चुनाव में बसपा और रालोद व सपा गठबंधन के बीच चुनाव हुआ था।

वर्ष 2009 में भाजपा और रालोद का गठबंधन था। गठबंधन की ओर से रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह, बसपा से मुकेश शर्मा, कांग्रेस से सोमपाल शास्त्री, सपा से साहब सिंह चुनावी मैदान में उतरे थे। इस चुनाव में सपा को महज 7.44 प्रतिशत वोट ही मिले थे। सपा ने वर्ष 2014 में मुस्लिम चेहरे पर दांव चला और गुलाम मोहम्मद को उतारा था। इस चुनाव में भाजपा के सत्यपाल सिंह थे। उन्होंने जीत दर्ज की थी। बड़ी बात थी कि चौधरी अजित सिंह को महज 19.86 प्रतिशत वोट ही मिले थे और सपा को यहां 21.26 प्रतिशत वोट मिले थे।

भाजपा को 42.15 प्रतिशत वोट मिले थे। वर्ष 2019 में सपा, रालोद व बसपा का गठबंधन रहा था। देखा जाए तो वर्ष 1998 में मैराजुद्दीन ने वोटों में सेंधमारी कर दी थी। जिस कारण चौधरी अजित सिंह को हार का सामना करना पड़ा था। वर्ष 2014 में भी मुस्लिम चेहरे गुलाम मोहम्मद ने वोटरों में सेंधमारी कर रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह को तीसरे स्थान पर भेज दिया था।

दोनों चुनावों में जातिगत वोटों का ध्रुवीकरण होते ही सपा ने चौधरी अजित सिंह की राह कठिन कर दी। इस बार सपा ने यहां से जाट चेहरे पर दांव चला है। सपा ने मनोज चौधरी को प्रत्याशी बनाया है। मनोज ने दो बार विधानसभा चुनाव लड़ा है। देखना यह है कि इस बार सपा यहां क्या गुल खिलाती है? हालांकि रालोद और भाजपा के गठबंधन में मुस्लिम वोटरों के रुझान पर चुनाव टीका हुआ है। अगर वोटों का ध्रुवीकरण हुआ था परिणाम कुछ भी हो सकता है।

2009 में सबसे कम मिले थे सपा को वोट
सपा ने वर्ष 2009 में यहां से साहब सिंह को चुनावी मैदान में उतारा था। इस चुनाव में सपा को महज 7.44 प्रतिशत वोट ही मिले थे। जबकि इससे पहले या बाद में 2014 में इतने वोट कभी नहीं मिले। 2009 में जहां आठ प्रतिशत भी नहीं हुआ था वहीं 2014 में यह 21 प्रतिशत से अधिक पहुंच गया था। यानी सपा के उम्मीदवार को कुछ हद तक जनता ने स्वीकार कर लिया था। सपा दूसरे स्थान तक तो चुनावों में पहुंच चुकी है, परंतु पहले स्थान पर उसे पहुंचना नसीब नहीं हुआ है। यहां उसकी साइकिल को दौड़ाने वाला नहीं मिला है।

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