राधाकांत भारती
दस दिनों तक पूरे भारत में मनाया जाने वाला दशहरा पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक स्वरूप है। देश के विभिन्न हिस्सों में इसे क्षेत्रीय मान्यताओं के रूप में अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है। उत्तरी भारत में विशेषकर हिमालय के ग्रामीण आंचल में ग्राम देवता की सवारी निकाली जाती है और भक्तजन नाचते गाते हुए मैदान में एकत्र होकर पूजा अर्चना करते हैं। आंचलिक उमंग तथा उत्साह से भरपूर कुल्लू का दशहरा बहुत मशहूर है।
राजधानी दिल्ली तथा उत्तरी भारत के अनेक स्थानों पर दस दिनों तक रामायण की प्रमुख घटनाओं को उजागर करने वाली रामलीला के रूप में मनाया जाता है। दिल्ली का रामलीला मैदान इसके लिए जगत प्रसिद्ध है जहां रावण, मेघनाद और कुंभकरण के विशालकाय पुतले खड़े किए जाते हैं जिन्हें दसवें दिन मयार्दा पुरूषोत्तम श्रीराम द्वारा तीरों से बेध कर धराशायी किया जाता है और पुतले का दहन किया जाता है।
गांवों और शहरों के विभिन्न मुहल्लों में लंका दहन तथा राक्षसराज रावण का दहन करने का दृश्य बहुत रोमांचकारी होता है। बुराई पर अच्छाई की विजय का उल्लास दर्शकों पर छाया रहता है। राजधानी में प्रत्येक साल मनाया जाने वाला यह भव्य पर्व अब राष्ट्रीय महत्त्व ग्रहण कर चुका है जिसके समापन पर अनेक धर्मों के संत तथा राजनेता मौजूद रहा करते हैं।
उत्तरी भारत की तरह दक्षिण के राज्यों में दशहरा का समारोह धूमधाम से मनाया जाता है। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में नवरात्र अनुष्ठान की परंपरा है। इसके अनुसार तीन रातें देवी लक्ष्मी को, तीन रातें शक्ति को तथा तीन सरस्वती को समर्पित होती हैं। प्रत्येक श्रद्धालु के घर में कलशम सजाया जाता है। पूजा घर में यह कलश जिसे तमिलवासी कोलहू कहते हैं, यह चांदी, तांबा या चिकनी मिट्टी से बना होता है और नारियलों तथा लाल रंग के कपड़ों से सजाया जाता है। प्रत्येक संध्या में नर-नारीगण इसकी पूजा-अर्चना करते हैं।
नवरात्रि के नवें दिन विशेष पूजा होती है जिसमें आयुध, काम करने के औजार कलम-दवात तथा पुस्तकें रखी जाती हैं। दसवें दिन विजयदमी के समारोह से दशहरा का समापन होता है।
इस प्रकार दस दिनों तक चलने वाला यह दशहरा पर्व, राष्ट्रीय त्यौहार बन गया है और पूरे भारत में हर्ष, उल्लास तथा बड़े धार्मिक श्रद्धाभाव के साथ संपन्न होता है।
रामलीला अहम हिस्सा
रामलीला का उद्देश्य लोगों में भगवान रामजी के आदर्श को प्रस्तुत करना है। राम लीला में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम जी के जीवन की विभिन्न झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं। रामचरित मानस में कई ऐसे स्थल हैं जो अत्यंत नाटकीय हैं। उन्हीं को आधार मानकर रामलीला का अभिनय किया जाता है।
रामलीला मुक्त आकाशी होती है। इसमें सूत्रधार व्यास आसनी होता है जो समय-समय पर आवश्यक निर्देश देता रहता है। इसके लिए एक ही मंच एवं आगृह पर्याप्त नहीं होता वरन भिन्न-भिन्न स्थानों पर अनुकूल वातावरण से लाभ उठाया जाता है। इन मंडलियों से सामान्यत: चौदह से पन्द्रह व्यक्ति रहते हैं। एक-दो व्यक्ति हारमोनियम बाजे पर रामचरित मानस की चौपाइयां कहने के लिए होते हैं। इन्हें व्यास गद्दी पर बैठ कर हारमोनियम बजाना होता है। गायक रामायण पाठ करता है। साथ में नक्कारा, ढोलक, तबला भी बजाया जाता है। अभिनेता इन चौपाइयों के आधार पर गद्य में बोल कर वातार्लाप करते हैं।
एक दिन की लीला को पैकरन कहा जाता है। पैकरन शब्द संस्कृत के प्रकरण शब्द का तद्भव रूप है जो दो पात्रों के संवाद होते हैं जैसे अंगद-रावण या लक्ष्मण-परशुराम संवाद आदि। तब भी एक-एक पात्र के कथनों को भी पैकरन कहा जाता है। ह्यअपने-अपने पैकरन पै सावधान रहियो भैयाह्ण, कलाकारों द्वारा बीच-बीच में ऐसा कहा जाता है। रामलीला में लक्षमण-परशुराम संवाद, कैकेयी-दशरथ संवाद, सीता-रावण संवाद तथा अंगद-रावण संवाद प्रमुख हैं। इन संवादों की योजना पर बहुत अधिक बल दिया जाता है।
रामायण के कथानक में अनेक अस्वाभाविकता होने पर भी लोग बड़ी श्रद्धा से रामलीला देखते हैं। इसमें धार्मिक तुष्टि तो होती ही है, मनोरंजन का भी इसमें एक विशिष्ट स्थान है। सभी स्थानों में यह क्षेत्रीय भाषा में होते हैं, अत: वहां का अशिक्षित व्यक्ति भी आसानी से समझ लेता है। रामलीला समस्त जनता के लिए बोधगम्य है। इसके लिए भाषा में किसी प्रकार की बनावट या सजावट की आवश्यकता नहीं होती। दैनिक क्रि या कलाप में जिस भाषा का प्रयोग होता है उसी का प्रयोग अभिनय करते समय भी किया जाता है जिसके कारण लोगों में साधारणीकरण शीघ्रता से हो जाता है।
रामलीला की प्रसिद्ध मण्डली तो मथुरा वृंदावन में ही हैं परन्तु छोटी-मोटी मण्डलियां बहुत से स्थानों पर हैं। आध्यात्मिक रूप में भी अनेक शहरों, कस्बों और बड़े-बड़े ग्रामों में ऐसी मण्डलियां वर्ष भर में एक बार रामलीला करती हैं। पूरे भारत वर्ष में खेला जाने वाला यह धार्मिक मंच है।