Friday, July 5, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादसेहतभावों का भोजन पर प्रभाव

भावों का भोजन पर प्रभाव

- Advertisement -

Sehat 2


एक कहावत है जैसा खाओ अन्न, वैसा हो मन-अर्थात आप जैसा भोजन करेंगे, उसका वैसा ही प्रभाव खाने वाले के मन पर पड़ता है, जैसे राजसी भोजन खाने वाले पर वैसा ही गुण विकसित होता है। सात्विक भोजन सात्विक प्रभाव उत्पन्न करता है।

तामसिक भोजन करने वाले पर उसका प्रभाव तामसिक रूप में पड़ता है अर्थात उस व्यक्ति में तामसिक प्रवृत्ति पैदा कर देता है किंतु यहां हम ठीक विपरीत बात बता रहे हैं अर्थात मनुष्य के मनोमस्तिष्क के भावों का प्रभाव खाए गए भोजन पर पड़ता है इसीलिए यह कहा जाता है खाते समय स्थिर चित्त, शांत व प्रसन्न रहें, तभी ग्रहण किया गया भोजन पचेगा एवं सार्थक होगा।

भोजन के समय प्रसन्नचित्त रहना आवश्यक है। यदि संयोगवश भोजन के समय मन में क्रोध, शोक के भावों का उदय हो जाए तो उस समय भोजन नहीं करना ही उत्तम है। ऐसे मानसिक विकारों या मनोभावों की स्थिति में किया हुआ भोजन प्राय: हानिकारक होता है। इसी बात को ध्यान में रखकर यहां एकांत में पवित्र होकर पूर्णत: शांत मन से भोजन करने की परंपरा है।

जिस भोजन को देखने व खाने से घृणा उत्पन्न हो या जिसमें अरूचि जान पड़े, उसे कभी नहीं खाना चाहिए। ऐसे भोजन से चित्त प्रसन्न नहीं होता, इसलिए उसका ठीक प्रकार से पचना भी कठिन होता है। भोजन करने में जल्दी करना ठीक नहीं है। इससे शरीर में रूखापन आता है और आलस्य बढ़ता है। प्रत्येक ग्रास को अच्छी तरह चबाकर ही निगलना चाहिए। खूब चबा-चबाकर खाने से थोड़े से भोजन में ही मन तृप्त हो जाता है और ठीक तरह से पचकर शरीर में भी लगता है। मु?य भोजन दिन में दो बार करें और हर बार इतनी धीमी गति से भोजन कीजिए कि एक घंटे का समय लगे।

संतुलित आहार

हमारे दैनिक आहार में क्षार और विटामिनयुक्त भोजन अर्थात सब्जी और फलों की मात्र, कार्बोज और प्रोटीन वाले आहार जैसे-गेहूं, चावल, दाल, आलू आदि की तुलना में तीन गुना अवश्य होना चाहिए। यह आहार का सर्वसामान्य नियम है जिसका पालन स्वास्थ्य और आरोग्य की दृष्टि से सभी के लिए हितकर और लाभदायक है।

भोजन की मात्र

भोजन के संबंध में देशभेद है इसीलिए सर्वमान्य एवं सर्व सामान्य नियम संभव नहीं हेै किंतु यह बात निश्चित है कि भोजन निश्चित मात्र में करना चाहिए। अधिक भोजन कभी हितकारी नहीं होता। निश्चित समय पर निश्चित मात्र में भोजन चौबीस घंटे में दो बार करने से लाभकारी होता है। अधिक पेट में भारीपन पैदा करना है।

बासी भोजन

बासी भोजन सबके लिए हानिकारक होता है। विद्यार्थियों को ऐसा भोजन कदापि नहीं करना चाहिए। इससे विकार स्वरूप आलस्य उत्पन्न होता है। स्मरण शक्ति घटती है। भोजन थोड़ा गरम हो तब उसका स्वाद ठीक रहता है। यह जठराग्नि को प्रदीप्त करता है। शीघ्र पचता है और वायु को निकालता है। कफ को शुद्ध करता है किंतु अधिक गर्म भोजन आमाशय में श्लेष्मा को बढ़ाकर हानि पहुंचाता है इसीलिए शारीरिक ताप से थोड़ा अधिक गर्म भोजन लाभदायक होता है।

अधिक गरम और अधिक ठंडा भोजन दांतों को क्षति पहुंचाता है। मामूली गर्म और ताजा भोजन सब दृष्टि से उत्तम है। रोटी ठीक तरह सिंकी होनी चाहिए। वह न जली हो, न कच्ची हो। जली रोटी सारहीन होती है जबकि कच्ची रोटी पेट में दर्द और अजीर्ण आदि उत्पन्न करती है। चावल या अन्य खाद्य पदार्थों पर भी यही नियम लागू होता है।

कोई भी भोजन अधिक मात्रा में या लगातार नहीं करना चाहिए। समय एवं मौसम काल, देश अनुसार बदलाव होना चाहिए जिससे शरीर को आवश्यक सभी तत्व मिल सके।

भोजन में चिकनाहट, तेल या घी होना चाहिए क्योंकि भोजन को पकाते समय उसकी स्वाभाविक स्निग्धता नष्ट हो जाती है। ऐसी स्थिति में तेल एवं घी अंश ऊपर से मिलाना चाहिए। यह अग्निवर्द्धक व बलवर्द्धक होता है और आंतों में सरलता से खिसकता है।

चौैबीस घंटे में दो बार भोजन करें और पर्याप्त अंतराल हो। कम से कम छह घंटे का अंतराल हो। भूख लगने पर ही भोजन या जलपान करना चाहिए और प्यास लगने पर पानी पीना चाहिए। भोजन व पानी एक दूसरे के विकल्प कदापि नहीं हैं।

सीतेश कुमार द्विवेदी


janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
3
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments