Friday, July 5, 2024
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बंजर और अनुपयोगी भूमि पर बिजली की खेती

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Nazariya 3


Rajender Parshad Sharmaबंजर या अनुपयोगी भूमि पर बिजली की खेती? बात अजीब अवश्य लग रही है, पर सरकार की इस योजना में राजस्थान लीडर प्रदेश बनता जा रहा है। रेगिस्तानी प्रदेश होने से बंजर और अनुपयोगी भूमि की प्रदेश में अधिकता है। यह बंजर और बेकार भूमि बिजली उत्पादन करन लगे और उत्पादित बिजली की खरीद भी 25 साल के लिए तय हो जाए तो काश्तकार के लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है? इससे जहां अनुपयोगी भूमि से बिजली निपजने लगेगी तो सरकार को भी सस्ती दर पर बिजली मिलेगी और काश्तकार की भी निश्चित आय सुनिश्चित हो सकेगी। राजस्थान सोलर एनर्जी उत्पादन के लिए अनुकूल प्रदेशों में प्रमुख प्रदेश है। इसलिए राजस्थान सरकार और किसान दोनों ही इस योजना में लीडर की भूमिका में आगे आए हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान यानी कि कुसुम योजना प्रदेश के बंजर और खेती योग्य भूमि नहीं होने की स्थिति से यह भूमि भी बिजली के उत्पादन के लिए उपजाऊ हो गई है।

दरअसल केंद्र सरकार ने कुसुम योजना के तीन कंपोनेंट बनाए हैं और तीनों ही कंपोनेंट किसानों से जुड़े होने के साथ ही उनके लिए लाभकारी भी हैं। कुसुम कंपोनेंट तो पूरी तरह से अन्नदाता की अनुपयोगी भूमि को नियमित आय का साधन बनाने का माध्यम है। केन्द्र सरकार की इस योजना को राजस्थान ने हाथों-हाथ लिया है और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित राज्य सरकार की मशीनरी इस योजना के क्रियान्वयन के लिए युद्धस्तर पर जुट गई। इस योजना की क्रियान्विति की सबसे बड़ी बाधा ऐसी भूमि पर सोलर प्लांट लगाने पर आने वाले खर्च के लिए ऋण की सहज उपलब्धता नहीं होना रहा है। किसान के पास इतना पैसा नहीं तो बंजर भूमि से आय भी नहीं। ऐसे में योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए वित्तपोषण पहली आवश्यकता महसूस की जाती रही है। इस मुद्दे को प्रभावी तरीके से विभिन्न स्तरों पर उठाया भी गया पर खास परिणाम प्राप्त नहीं हो सके।

अब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मंशा और अक्षय ऊर्जा निगम के सीएमडी व राज्य के एसीएस एनर्जी डॉ. सुबोध अग्रवाल के सीधे वित्तदायी बैंकर्स से संवाद कायम करने से सकारात्मक हल निकल सका है। बैंकों से सहमति के अनुसार किसानों को कुसुम योजना के कंपोनेंट ए के तहत बंजर व बेकार भूमि पर आधा किलोवाट से 2 मेगावाट तक के सोलर प्लांट लगाने के लिए बिना कोलेटरल सिक्योरिटी के ऋण मिल सकेगा। राजस्थान के अतिरिक्त मुख्य सचिव ऊर्जा डॉ. सुबोध अग्रवाल बैंकों को यह समझाने में पूरी तरह सफल रहे कि इस योजना में वित पोषण में बैंकों को किसी तरह का जोखिम नहीं है। सीधी सी बात है|

बंजर भूमि में लगे सोलर प्लांट से बिजली का उत्पादन होगा। उत्पादित बिजली सीधे ग्रीड में जाएगी। संबंधित ग्रीड द्वारा 25 साल तक 3 रु.14 नए पैसे प्रति यूनिट की दर से काश्तकार को भुगतान किया जाएगा। बैंकों से संवाद में यह तय हो सका कि एस्क्रो खाते के माध्यम से भुगतान प्रक्रिया होगी, जिससे डिस्काम द्वारा खरीदी गई बिजली का भुगतान सीधे काश्तकार के बैंक के ऋण खाते में किस्त के रूप में व शेष राशि काश्तकार के स्वयं के खातें में जमा हो सकेगी। इससे बैंक की किस्त भी समय पर जमा होना सुनिश्चित हो सकेगा और काश्तकार को भी भुगतान प्राप्त हो सकेगा। यह अपने आप में सकारात्मक सोच व समझ का ही परिणाम है।

यह सही है कि कुसुम ए योजना के क्रियान्वयन में समूचे देश में राजस्थान पहले स्थान पर होने के बावजूद बैंकों से ऋण मिलने में आ रही दिक्कतों के कारण यह योजना अधिक गति नहीं पकड़ पा रही थी। अभी तक इस योजना में राजस्थान में 14 संयत्र स्थापित हो चुके हैं। अक्षय ऊर्जा निगम के पास 722 मेगावाट क्षमता स्थापना के 623 आवेदन प्राप्त हो चुके हैं। राजस्थान के बाहर केवल एक प्रदेश में ही केवल मात्र एक संयत्र स्थापित होने की जानकारी है। ऐसे में राजस्थान सरकार की पहल इस योजना को धरातल पर लाने में सहायक सिद्ध होगी।

प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान कुसुम योजना तीन कंपोनेंट में संचालित हो रही है। इसमें ए कंपोनेंट में राजस्थान विद्युत वितरण निगमों के 33/11 केवी सबस्टेशन के 5 किलोमीटर दायरे में किसानों/विकासकर्ताओं की बंजर व अनुपयोगी भूमि पर आधा किलोवाट से लेकर 2 मेगावाट क्षमता के सोलर ऊर्जा संयत्रों की स्थापना कर सकते हैं। इन सोलर सयंत्रों पर उत्पादित बिजली को 3 रुपए 14 पैसे की दर पर 25 साल तक संबंधित डिस्कॉम द्वारा खरीद का समझौता होता है और इस आशय का पावर परचेज एग्रीमेंट पीपीए हस्ताक्षरित किया जाता है|

जिससे सोलर ऊर्जा उत्पादनकर्ता किसान की बिजली 25 साल तक खरीद की व्यवस्था भी सुनिश्चित हो जाती है। अब एस्क्रो व्यवस्था के तहत बैंकों के ऋण की किस्त डिस्काम्स द्वारा सीधे बैंकोें में काश्तकारों के खातों में जमा हो सकेगी और शेष राशि काश्तकार के खाते में जमा हो जाएगी। बैंकों को ऋण राशि की किस्त सीधे डिस्कॉम से मिल जाएगी तो किसान को बैंक किस्त के अतिरिक्त शेष राशि मिल जाएगी। इस तरह की उपयोगी योजना को बनाते समय सभी पक्षों खासतौर से वित्तपोषण, मार्केटिंग आदि को सुनिश्चत कर लेना चाहिए ताकि योजना का समय पर और सही तरह से क्रियान्वयन हो सके। देरसबेर ही सही पर राजस्थान सरकार की पहल पर बैंकों की सहमति से योजना को निश्चित रूप से पंख लगेंगे। बिना कोलेटरल सिक्योरिटी के बैंकों की सहमति से अब अन्य प्रदेशों के इस तरह के काश्तकारों और सरकारों के लिए भी इस योजना को आगे बढ़ाने की राह प्रशस्त हो गई है।


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