- पश्चिमी यूपी के राजनीतिक समीकरण
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: हाथी की चाल ने पश्चिमी यूपी में तमाम सियासी गणित बिगाड़ दिये हैं। जिस तरह के प्रत्याशी बसपा ने चुनाव मैदान में उतारे हैं, उनको लेकर भाजपा की डगर कठिन हो गई हैं। बसपा की सोशल इंजीनियरिंग से खलबली मची हुई हैं। पश्चिमी यूपी की सियासत जिस तरह की है, उसको लेकर बसपा की सोशल इंजीनियरिंग ने गणित को उलझा दिया हैं। इस बात को राजनीति के विशेषज्ञ भी मानते हैं। मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, बिजनौर समेत कई जनपदों में लोकसभा सीटों पर उतारे बसपा प्रत्याशी पर गौर करें तो सियासत को आसानी से परखा जा सकता हैं।
खासकर भाजपा की राह में हाथी की चाल तमाम अवरोध पैदा कर सकता हैं। इस बात को भाजपा के शीर्ष नेता भी जानते हैं, मगर इसके बाद भाजपा नेताओं की रणनीति अब क्या रहेगी? ये समय के गर्भ में हैं, लेकिन बसपा ने एक तरह से भाजपा की घेराबंदी की हैं। बसपा ने इसी फार्मूले पर चलकर सत्ता तक पहुंच चुकी हैं। फिर से इसी फार्मूले का प्रयोग किया हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में 10 सीटे बसपा ने जीती थी तथा कई सीटों पर दूसरे स्थान पर बसपा रही थी। मरेठ-हापुड़ लोकसभा सीट ही नही, बल्कि अधिकतर लोकसभा सीटों पर भाजपा बसपा ने शानदार प्रदर्शन किया था।
दरअसल, भाजपा के वोट बैंक में ही बसपा ने सेंध लगाने के लिए मेरठ से देवव्रत त्यागी को चुनाव मैदान में उतार दिया हैं। त्यागी समाज भाजपा का वोट बैंक हैं, लेकिन त्यागी समाज में सेंध लगाने के लिए ही बसपा ने ये सियासी चाल चली हैं। बसपा खासकर भाजपा की राह में काटे बिछाती नजर आ रही है। उधर, भाजपा की घेराबंदी देखकर मुस्लिम वोट बैक भी बसपा पर निगाहें लगाये हुए हैं। मुस्लिम किधर जाएगा, ये कहना तो मुश्किल हैं, लेकिन इतना अवश्य है कि मुस्लिम मतों पर बसपा और सपा मुख्य रूप से निगाहें लगाये हैं।
इसके बाद भाजपा के रणनीतिकार भी अलर्ट मोड में आ गए हैं। हालांकि भाजपा का मेरठ में टिकट अभी घोषित नहीं हुआ हैं। बिजनौर से जाट समाज के चौधरी विजेन्द्र सिंह को मदौन में उतार दिया हैं। सहारनपुर में माजद अली और अमरोहा से मुजाहद को बसपा ने चुनाव मैदान में उतारा हैं। बागपत में अति पिछड़ों को साधने के लिए गुर्जर समाज से प्रवीण बैसला को चुनाव में मैदान में उतारा हैं। मुजफररनगर से दारा सिंह प्रजापति को चुनाव मैदान मे उतारकर राजनीत की हाथी ने चाल बदल दी हैं।
यहां भी भाजपा की राह में बसपा अवरोध पैदा कर सकती हैं। नगीना सांसद गिरीश चंद को चुनाव मैदान मे उतार सकती हैं। ऐसी भी चर्चाएं चल रही है कि गिरीश चंद को बुलंदशहर से भी चुनाव लड़ा सकती हैं। कैराना लोकसभा सीट से बसपा किसी सैनी को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी कर रही हैं। कुल मिलाकर बसपा ने एससी, मुस्लिम, जाट, सैनी, प्रजापति, त्यागी, गुर्जर को चुनाव मैदान में उतारकर भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की हैं।
…जब 14 हजार में लड़ लिया था चुनाव
मेरठ: आज जबकि चुनावी खर्च की सीमा लाखों रुपये में पहुंच गई है। इसके विपरीत वास्तविक खर्च करोड़ों रुपये तक पहुंचाना कोई बड़ी बात नहीं होती। हालांकि कुछ दशक पूर्व विधानसभा का चुनाव हजारों रुपयों के खर्च की सीमा के अंदर लड़ लिया जाता रहा है। वहीं, लोकसभा चुनाव में करीब एक लाख रुपये खर्च करके किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह का चुनाव लड़ाया जा चुका है।
छपरौली विधानसभा से पांच बार विधायक चुने गए चौधरी नरेंद्र सिंह का कहना है कि 1977 में पहली बार जब उन्होंने चुनाव लड़ा, तो केवल 14 हजार रुपये खर्च हुए थे। यह चौधरी चरण सिंह का आशीर्वाद ही था, जिसके चलते क्षेत्र की जनता ने उन्हें भरपूर प्यार दिया। जिसकी बदौलत उन्होंने विधायक के तौर पर जीत दर्ज की। इसके बाद 1993 तक उन्होंने पांच बार छपरौली विधानसभा से चुनाव जीतकर विधायक के रूप में प्रतिनिधित्व किया। चौधरी नरेंद्र सिंह का दावा है कि इन पांच चुनाव के दौरान कभी भी चुनावी खर्च लाखों तक नहीं पहुंचा।
उन्होंने हजारों रुपये में ही अपने चुनावी खर्च को समेट कर रखा और केवल एक कार के जरिये चुनाव प्रचार का काम अंजाम दिया। हालांकि एक रिश्तेदार ने चुनाव में सहयोग के लिए कुछ दिन के लिए अपनी एक कार जरूर भेजी हुई थी। उन्होंने प्रभारी के रूप में चौधरी चरण सिंह का लोकसभा चुनाव भी लड़ाया, लेकिन इसका खर्च भी करीब एक लाख रुपये के आसपास ही रहा है।