Saturday, July 19, 2025
- Advertisement -

आजादी के महोत्सव में उपेक्षित पर्यावरण

Samvad 1


29 22देश में आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर धूमधाम से 75 सप्ताह का ‘अमृत महोत्सव’ मनाया जा रहा है। इस दौरान प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया से आजादी प्राप्ति हेतु संघर्ष करने वाले बहुत से लोगों की जानकारी मिली जिनसे हम अनभिज्ञ थे। इन सारी जानकारियों में आजादी के बाद की पर्यावरण की स्थिति की चर्चा लगभग नगण्य रही या कहें कि ह्यअमृत महोत्सव में पर्यावरण के हालात उपेक्षित ही रहे। व्यापक रूप से देखा जाए तो आजादी के बाद के 75 वर्षों में पर्यावरण के क्षेत्र में हमारी दाल काफी पतली रही है। पर्यावरण के सभी भाग – हवा, पानी, भूमि, जंगल एवं जैव-विविधता पर इन 75 वर्षों में काफी विपरीत प्रभाव हुआ है। सभी जीवों के जीने के लिए आवश्यक हवा में इतना प्रदूषण फैला कि वर्ष 2020 में हमारा देश विश्व के पांच सर्वाधिक प्रदूषित देशों में शामिल हो गया। स्विट्जरलेंड की फर्म एक्यू एअर की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 63 हमारे देश के रहे। मुरादाबाद, कोलकाता, दिल्ली, आसनसोल व जयपुर ज्यादा प्रदूषित बताए गये। क्लाइमेट ट्रेंड की रिपोर्ट के अनुसार उत्तरप्रदेश की 99.4 प्रतिशत आबादी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है। पिछले 20 वर्षों में (1990 से 2019) वायु-प्रदूषण में 115 प्रतिशत की वृद्धि का आंकलन किया गया है।

देश के 200 शहरों में वायु-प्रदूषण निर्धारित स्तर से अधिक है एवं 50 शहरों की हालत ज्यादा खराब है। देश के 88 में से 75 औद्योगिक क्षेत्र भी ज्यादा प्रदूषित हैं। पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में हमारा देश वर्ष 2022 में अंतिम स्थान, 180 पर बताया गया, जबकि वर्ष 2020 में 168 वें स्थान पर था। यह अध्ययन येल व कोलम्बिया विश्वविद्यालय तथा अर्थ इंस्टीट्यूट द्वारा किया गया था। इस वर्ष के प्रारंभ में जारी एअर-क्वालिटी-लाईफ-इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार देश में ऐसी एक भी जगह नहीं है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु-प्रदूषण के मानकों पर खरी उतरे।

वायु-प्रदूषण के प्रभाव से भारतीयों की औसत उम्र भी लगभग 10 वर्ष घट रही है। दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद विश्व के अधिक ध्वनि-प्रदूषण वाले शहरों में शामिल हैं। उत्तरप्रदेश का मुरादाबाद दुनिया का दूसरा सबसे अधिक शोर वाला शहर बताया गया है। जीवन देने वाला जल भी जानलेवा हो गया है। नीति आयोग के जल प्रबंधन सूचकांक (2018) के अनुसार देश का 70 प्रतिशत पानी पीने योग्य नहीं है एवं 60 करोड़ लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के अनुसार देश की 521 नदियों में से 351 काफी प्रदूषित हैं।

राष्ट्रीय-स्वच्छ-गंगा-मिशन की हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार 97 स्थानों पर जहां गंगाजल की गुणवत्ता का अध्ययन किया गया, वहां का पानी आचमन लायक भी नहीं है। देश की कई बारहमासी या सदानीरा नदियां मौसमी बन गयी हैं। भूजल का दोहन चीन एवं अमेरिका से ज्यादा हो रहा है एवं पिछले कुछ वर्षों में यह 115 गुना बढ़ा है। देश के 360 जिलों के भूजल में नाइट्रेट, क्लोराइड एवं आर्सेनिक की मात्रा बढ़ी है। 21 शहरों में भूजल समाप्ति की ओर है एवं पिछले वर्ष अगस्त से चैन्नई को भूजल समाप्ति का शहर घोषित किया गया है। 20 लाख के लगभग तालाब व जोहड़ अमृत महोत्सव मनाने तक समाप्त हो गये हैं।

कृषि प्रधान देश में मिट्टी के हालात भी ठीक नहीं हैं। 15 करोड़ हेक्टर कृषि भूमि में से लगभग 12 करोड़ में पैदावार घट रही है। पशुधन भी कम हो रहा है। देश के कुल भौगोलिक भूभाग का लगभग 25 प्रतिशत रेगिस्तान की गिरफ्त में है। वन विनाश एवं कुछ अन्य कारणों से राजस्थान का रेगिस्तान भी दिल्ली एवं मध्यप्रदेश के मालवा की ओर बढ़ रहा है। पर्यावरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वन भी भूभाग के 33 प्रतिशत पर न होकर 21-22 प्रतिशत पर ही सिकुड़ गए हैं।

इनमें भी सघन, मध्यम व छितरे वन क्रमश: 02, 10 एवं 09 प्रतिशत ही हैं। पिछले वर्षों में वनों में आग लगने की घटनाएं भी काफी बढ़ी हैं। वन क्षेत्रों में 80 प्रतिशत जैव-विविधता पायी जाती है, परंतु वन क्षेत्र घटने से 20 प्रतिशत जंगली पेड़-पौधे एवं जीवों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। देश के ज्यादातर शहरों के आसपास कचरे के पहाड़ बनते जा रहे हैं। एक आंकलन के अनुसार शहरों में रोजाना 1.5 लाख टन कचरा पैदा होता है, परंतु उचित निपटान केवल 65 प्रतिशत का ही हो पाता है।

देश की जलवायु एवं मौसम में अहम भूमिका निभाने वाली पर्वत-मालाएं एवं समुद्री तट भी संकटग्रस्त हैं। हिमालय में न केवल वनों की कमी हो रही है, अपितु वहां के 75 प्रतिशत हिमनद (ग्लेशियर्स) सिकुड़ रहे हैं एवं 13 लाख प्राकृतिक झरनों में से आधे सूख चुके हैं। पश्चिमी-घाट, अरावली, सतपुड़ा एवं विंध्याचल में भी हरियाली घट रही है। देश में लगभग 7000 किलोमीटर लंबा समुद्री तट है, जहां 25 प्रतिशत आबादी रहती है। इस समुद्र तट के सिकुड़ने की दर 40 प्रतिशत आंकी गयी है। प्रदूषण, बढ़ता पर्यटन, अवैध निर्माण एवं नदियों पर बनाये गये बांध इसके प्रमुख कारण बताये गये हैं।

पिछले 75 वर्षों में देश में पर्यावरण से जुड़े कई नियम-कानून लागू किए गए, अलग से राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) का गठन भी किया गया, परंतु इसके कोई सकारात्मक एवं उत्साहवर्धक परिणाम नहीं आए। एनजीटी ने कुछ प्रकरणों में जुर्माना लगाया एवं कई स्थानों पर उसके निर्देशों का पालन भी नहीं किया गया। देश में सौर व पवन ऊर्जा का उपयोग जरूर बढ़ा है। अब ऐसे प्रयास किए जाएं कि आजादी के 100 वर्ष पूर्ण होने के उत्सव में हमारे जल-स्रोत साफ-सुथरे हों, शहरों व गांवों की हवा शुद्ध हो, शोर कम हो, कचरे के पहाड़ न बनें, पर्वत- मालाएं हरी-भरी हों।


janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
2
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Dipika Kakar: लीवर सर्जरी के बाद अब दीपिका कक्कड़ ने करवाया ब्रेस्ट कैंसर टेस्ट, जानिए क्यों

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक​ स्वागत...

Sports News: 100वें Test में Mitchell Starcs का धमाका, टेस्ट Cricket में रचा नया इतिहास

नमस्कार,दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और...

Dheeraj Kumar Death: ‘ओम नमः शिवाय’, ‘अदालत’ के निर्माता धीरज कुमार का निधन, इंडस्ट्री में शोक

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Nimisha Priya की फांसी पर यमन में लगी रोक, भारत और मुस्लिम नेताओं की पहल लाई राहत

जनवाणी ब्यूरो |नई दिल्ली: भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की...
spot_imgspot_img