बहुत समय पहले की बात है। एक आश्रम में एक संत अपने शिष्यों के साथ रहते थे। एक बार उनका एक शिष्य कहीं से एक तोता ले आया और उसको पिंजरे में कैद करके रख लिया। संत ने शिष्य को कई बार समझाया कि स्वतंत्र विचरण करने वाले पक्षियों को कैद करके नही रखना चाहिए, परंतु तोते के प्रति आकर्षण के वशीभूत शिष्य तोते को आजाद करने को तैयार नहीं हुआ। तब सन्त ने सोचा कि यदि मैं तोते को ही उसकी स्वतंत्रता का पाठ पढ़ा देता हूं तो अवसर पाते ही यह स्वयं पिंजरा छोड़कर उड़ जाएगा। उन्होंने पिंजरा अपनी कुटी में मंगवा लिया और तोते को नित्य ही सिखाने लगे, पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ। कुछ दिन में तोते को वाक्य भली भांति रट गया। एक दिन सफाई करते समय शिष्य से भूल से पिंजरा खुला रह गया।
संत कुटी में आए तो देखा कि तोता बाहर निकल आया है और बड़े आराम से घूम रहा है साथ ही ऊंचे स्वर में कह भी रहा है-पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ। संत को आता देख वह पुन: पिंजरे के अंदर चला गया और अपना पाठ बड़े जोर-जोर से दुहराने लगा। संत को यह देखकर बहुत ही आश्चर्य हुआ। साथ ही दु:ख भी। वे सोचते रहे इसने केवल शब्द को ही याद किया! यदि यह इसका अर्थ भी जानता होता तो यह इस समय इस पिंजरे से स्वतंत्र हो गया होता! यही स्थिति मनुष्य की है। वह ज्ञान के मर्म को नहीं समझता और ज्ञानी संतों के सानिध्य को पा कर भी उनके द्वारा दिए जाने वाले ज्ञान का लाभ नहीं उठा पाता और जीवन मरण के चक्र में फंसा रहता है।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा