रानिल विक्रमसिंघे पांचवी मर्तबा श्रीलंका को प्रधानमंत्री के रूप में संभालेंगे। ताज कांटो का है और कठिनाइयों से लबरेज है। सुप्रीम कोर्ट और राष्टÑपति गोटबाया राजपक्षे स्वता: बीते एकाध दिनों से लगातार ऐसे फैसले ले रहे हैं जिससे देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था किसी भी तरह से सुधारी जा सके। इसलिए नए प्रधानमंत्री रानिल के काधों पर उम्मीदों का बड़ा भार लादा है। हालांकि अटपटे मन से उन्होंने प्रधानमंत्री का पद संभाला जरूर है, लेकिन भय उनके भीतर भी व्यायाप्त है। श्रीलंका में संचार-साधनों की भारी कमी है, इन कमियों के बीच उन्हें लीक से हटकर देश के लिए करना होगा। विपक्षी दलों ने उनसे साफ कहा है, उनके किसी फैसले का विरोध नहीं करेंगे, बस देश को सुधार दो। कोर्ट, प्रशासन, राजनीति, आवाम तमाम तंत्र उनके साथ चलने को राजी हुआ है। जिस बुरे दौर से श्रीलंका गुजर रहा है, ऐसी कल्पना श्रीलंकाइयों ने सपनों में भी नहीं की होगी। उन्हें आज ऐसे दिन देखने पड़ रहें हैं, जिससे उनका जीवन बदल गया है।
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नए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे यूनाइटेड नेशनल पार्टी यानी यूएनपी के प्रमुख नेता हैं। उन्हें श्रीलंका का सबसे अच्छा प्रशासक और ताकतवर देशों का समर्थक कहते हैं। भारत के अलावा अमेरिका के साथ उनके संबंध अच्छे रहे हैं। पर समस्याएं इस वक्त विकट हैं, इससे पहले भी वह चार बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। हालांकि तब की परिस्थितियों से आज के हालात से तुलना नहीं कर सकते। इस वक्त समूचा श्रीलंका तबाह हुआ पड़ा है। खाने से लेकर पीने की वस्तुओं से भी लोग मोहजात हुए हैं।
काम-धंधे, व्यापार, नौकरियां, स्कूल-कॉलेज सभी पर ताले जड़े हुए हैं। जनजीवन थम गया है। पर्यटकों ने आना बंद कर दिया है। ये ऐसा क्षेत्र है जो सरकार को अर्थव्यवस्था में मजबूती देता है। राजनीतिक उठापठक के बीच आर्थिक संकट के समुद्र में भी श्रीलंका गोता खा रहा है, उससे बाहर निकालना भी रानिल विक्रमसिंघे के समझ चुनौती होगी। प्रधानमंत्री पद की कमान भले ही उन्होंने संभाल ली है, पर जिन चुनौतियों से उन्हें अगले कुछ महीनों में लड़ना होगा, उसमें वह कितना सफल होते हैं, ये कहना तत्कालिक रूप से अभी जल्दबाजी होगा।
कुल मिलाकर, श्रीलंका को एक अनुभवी प्रशासक चाहिए था। शायद रानिल के मिलने से उनकी खोज पूरी होगी। वह बेदाग नेता हैं। बिना लाग लपेट और साफगोई से अपनी बात कहते हैं। निर्णय लेने में वह ज्यादा देरी नहीं करते। सबको साथ लेकर चलने में उन्हें महारथ हासिल है। रानिल के प्रधानमंत्री बनने पर भारत ने भी खुशी जाहिर की है। बधाई के साथ हमारे दूतावास ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के जद में रहकर गठित उनकी सरकार के सहयोगी बने रहेंगे। रानिल के राजनीतिक करियर को देखे तो ऐसा लगता है कि श्रीलंका को ऐसे ही नेता की इस वक्त जरूरत थी।
वह अपनी पार्टी यूनाइटेड नेशनल में 1994 से सर्वमान्य के नेता हैं। प्रशासन व प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने 7 मई 1993 से 18 अगस्त 1994, 8 दिसंबर 2001 से 6 अप्रैल 2004, 9 जनवरी 2015 से 26 अक्टूबर 2018 और 15 दिसंबर 2018 से 21 नवंबर 2019 तक देश की बागडोर संभाली। इसके अलावा वह सदन में दो बार नेता विपक्ष भी रहे। वह श्रीलंका में ही नहीं, बल्कि संसार भर में राजनीति पटल पर जाने पहचाने लोकप्रिय नेता हैं।
श्रीलंका की स्थिति इस वक्त ऐसी है जिसे राजनीतिक-प्रशासनिक गठजोड़ ही उभार पाएगा। बिगड़ी अर्थव्यवस्था में अगर रानिल कुछ महीनों में तीस-चालीस फीसदी भी सुधार कर पाते हैं तब भी उनकी बड़ी उपल्बिधी होगी। उनकी नियुक्ति इसलिए काफी अहम मानी जा रही है, क्योंकि श्रीलंका की आवाम को उनसे बड़ी उम्मीदें हैं। वह इकलौते ऐसे नेता हैं जिसपर जनता विश्वास करती है। राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संकट और हिंसा से वह बाहर निकाल पाएंगे, ऐसी उम्मीद वहां के लोग लगाए बैठे हैं।
श्रीलंका में बीते डेढ़ महीने से कानून-व्यवस्था चौपट हो चुकी है, उसे भी दुरूस्त करना होगा। सुरक्षा दृष्टि से इस पड़ोसी मुल्क को हमेशा से शांत प्रिय कहा जाता है। लिट्टे के आतंक से मुक्ती के बाद देश में अमनचैन लौटा था। लेकिन अचानक से उगता सूरत डूब गया, अर्थव्यवस्था धड़ाम हो गई। किसी की नजर ही लग गई।
इन सभी समस्याओं से रानिल विक्रमसिंघे को जूझकर समाधान निकालना होगा। बहुत जल्द कुछ ऐसा करना होगा जिससे आम जीवन कुछ सामान्य हो सके। जैसे भारत ने आर्थिक मदद, पेटृल, खाद्य सामग्री भेजी है, कुछ देशों को भी आगे आना होगा। इसके लिए प्रधानमंत्री रानिल को कुछ देशों से सहयोग की अपील भी करनी होगी।
बहरहाल, श्रीलंका में इस वक्त आपातकाल लगा है। सबसे पहले प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को इसे हटाना होगा, जिससे आम जनजीवन सामान्य हो पाएगा। संकट के इस दौर में समूचा विपक्ष एकजुट है और होना भी चाहिए। राजनीति करने के तो कई मौके आते हैं, लेकिन विपत्ति में सबको एक होना चाहिए। विपक्षी दलों ने सामूहिक रूप से अच्छी तस्वीरें पेश की हैं। 225 सदस्यों वाली श्रीलंकाई संसद में रानिल विक्रमसिंघे की पार्टी यूनाइटेड नेशनल पार्टी के मात्र सिंगल सीट है।
बावजूद इसके सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना, विपक्षी समगी जन बालावेगाया के एक धड़े और अन्य कई दलों ने संसद में विक्रमसिंघे को अपना बहुमत देकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर इस उम्मीद से बैठाया है कि वह अपने पुराने अनुभवों से देश को फिर पटरी पर ला पाऐंगे। भारत भी उम्मीद करता है कि नए प्रधानमंत्री जल्द से जल्द श्रीलंका को संकट से बाहर निकालें।