Tuesday, July 9, 2024
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ईश्वर पर विश्वास

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Amritvani 22


हिमालय की एक पवित्र एवम धार्मिक नगरी, जो गंगाजी के तट पर स्थित है, एक समय की बात है वहां एक संत रहा करते थे। वह जन्म से अंधे थे। उनका नित्य का एक नियम था कि वह सायंकाल ऊपर गगनचुंबी पर्वतों में भ्रमण करने के निकल जाते और हरी का संकीर्तन करते जाते। एक दिन उनके एक शिष्य ने उन से प्रश्न किया, बाबा आप हर रोज इतने ऊंचे-ऊंचे पर्वतों पर भ्रमण करने हेतु जाते हैं, वहां गहरी गहरी खाइयां भी हैं और आप तो आंखों से देख भी नहीं सकते हो। क्या आपको भय नहीं लगता? बाबा ने कोई उत्तर नही दिया और शाम के समय शिष्य को साथ ले चले। जब बाबा और शिष्य पहाड़ों के मध्य पहुंच गए तो बाबा ने अपने शिष्य से कहा की जैसे ही कोई गहरी खाई मार्ग में आए तो मुझे बताना। दोनों चलते रहे और जैसे ही गहरी खाई आई, शिष्य ने बाबा को बताया की बाबा गहरी खाई आ चुकी है। बाबा ने कहा की मुझे इसमें धक्का दे दो। उसने कहा, बाबा मैं आपको धक्का कैसे दे सकता हूं?

आप तो मेरे गुरुदेव हैं। मैं तो अपने किसी शत्रु को भी इस खाई में नहीं धकेल सकता। बाबा ने फिर कहा, में कहता हूं कि मुझे इस खाई में धक्का दे दो। यह मेरी आज्ञा है और मेरी आज्ञा की अवहेलना तुम्हे नरक का भोगी बनाएगी। शिष्य ने कहा, बाबा मैं नरक भोगने किए तैयार हूं, पर मैं आपकी इस आज्ञा का पालन नहीं कर सकता। तब बाबा ने शिष्य से कहा, अरे, नादान बालक जब तुझ जैसा साधारण प्राणी मुझे खाई में नहीं धकेल सकता, तो बता मेरा मालिक भला कैसे मुझे खाई में गिरने देगा? उसे तो सिर्फ गिरे हुओं को उबारना आता है। वह कभी भी किसी को गिरने नही देता। शिष्य की समझ में आ गया की परमपिता परमेश्वर हमेशा, हर स्थिति में, प्रत्येक जीव के साथ है, जरूरत उस पर विश्वास करते हुए, अपने सत्कर्म करते जाने की है।
-प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा


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