बीते दिनों दादरा और नगर हवेली में नौ साल के एक लड़के के अपहरण के बाद धन-दौलत पाने के लिए मानव बिल की रस्म के तहत उसका सिर काट दिया। इस दौरान उसके शरीर के टुकड़े कर दिए गए। इस मामले की तह तक जाने के लिए सौ से अधिक पुलिसकर्मी लगाए गए थे। इस प्रकरण में अहम बात यह थी कि इसमें नाबालिग भी शामिल है। हालांकि ऐसे खबरें हमें ज्यादा चौंकाने वाली नहीं लगतीं, चूंकि हमारे देश में ऐसी घटनाएं कहीं न कहीं से हर रोज सुनने को मिलती हैं। लेकिन इस मामले में एक किशोर भी शामिल है, जिसकी आयु 18 वर्ष बताई जा रही है और वह पिछले कुछ सालों से बलि लेने का काम कर रहा है। जरा पल भर के लिए सोचिए कि जिस अवस्था वो इन कामों को अंजाम दे रहा था तो उस आधार पर आकलन किया जाए तो लगता है कि मन में मानव जीवन की संचालन प्रक्रिया के प्रति कितनी नकारात्मकता चल रही होगी। क्या वह कभी शिक्षा की ओर अग्रसर हो पाएगा, शायद इस जन्म में कभी भी नहीं। ऐसे मामलों में आरोपी को पकड़ना भी बेहद मुश्किल होता है, क्योंकि बलि देने वाला कोई अपना ही होता है और वह लगभग कोई साक्ष्य नहीं छोड़ता। देशभर में हर रोज ऐसे मामलों को सुलझाने के लिए पुलिस बल कम पड जाता है चूंकि ऐसे काम गांव व जंगलों में ज्यादा होते हैं। ऐसी जगहों पर तकनीकी का अभाव होता है और सबूत मिलना बहुत मुश्किल हो जाता है। मानव बलि के अधिकतर मामलों में शरीर को पूर्णत: नष्ट कर दिया जाता है। जानकारी दे दी जाए कि दुनिया के सभी धर्मों में जीव हिंसा या फिर पशु बलि को महापाप माना गया है। धर्म शास्त्रों के अनुसार जो धर्म प्राणियों की हिंसा का समर्थन करता है, वह धर्म कभी भी कल्याणकारी व किसी भी स्थिति में लाभकारी नहीं हो सकता क्योंकि किसी की आत्मा का हनन करके कोई खुश नहीं होता। जीव चाहे मानव रूप में हो या जानवर उसको उसकी संरचना भगवान ने की है और भगवान के बनाए कानून को तोड़ना हर स्थिति में अपराध है।
धर्म गुरुओं के अनुसार आदिकाल में धर्म की रचना संसार में शांति और उद्धार करने के उद्देश्य से की गई थी। इस बात से यह पूर्ण रुप से स्पष्ट हो जाता है कि यदि धर्म का उद्देश्य यह न होता तो उसकी इस संसार में आवश्यकता ही न रहती। लेकिन कुछ अज्ञानियों व मूर्खों ने अपने फायदे के लिए इसमें पशु बलि जैसे परंपरा को जोड़ दिया जो हजारों वर्षों से चली आ रही है और यह बात यहां तक आकर नहीं रुकी। इसके बाद इनसे भी बडेÞ महामूर्ख आए और उन्होंने पशु बलि को नर बलि में बदल दिया। हम कई बार ऐसी घटनाओं के विषय में सुनते हैं कि यदि आपके घर में किसी बच्चे का जन्म हुआ और उसके पैदा होने पर आपको आर्थिक नुकसान हुआ तो कुछ मूर्ख तांत्रिक लोग उसकी बलि देने के लिए बोलते हैं। इसके अलावा दूसरा उदाहरण को भी बताते हैं कि यदि आपके घर में किसी लड़की की शादी होकर आई और उसके आने से यदि कोई नुकसान हो जाता है तो लोग उसकी बलि तक देने के लिए भी बोलते हैं और हद तो तब हो जाती है जब लोग यह कह कर बलि देते हैं कि किसी इंसान में शैतानी आत्मा है। इसके अलावा भी कई तरह के बेहद अजीबोगरीब तरह के उदाहरण सामने आते हैं। पहले तो इसमें अशिक्षित वर्ग सीमित था लेकिन कहीं जगह तो शिक्षित के साथ हर तरीके संपन्न परिवार भी ऐसी बातों पर विश्वास रखने लगे।
अब प्रश्न यह सवाल उठता है की क्या हिंदू धर्म में पशु बलि देना परंपरा की देन है या फिर हिंदू धर्मग्रंथों में पशुबलि या नरबलि को बड़ा अपराध घोषित किया हुआ है। जानकारी दे दी जाए कि हिंदू धर्म में पशुबलि को पाप माना गया है और नरबलि का कहीं भी कोई जिक्र नहीं है। जो लोग हिंदू धर्म में किसी भी प्रकार की बलि का समर्थन करते हैं उन्हें यह सोचना होगा कि आदिकाल में देवताओं एवं ऋषियों ने जिस विश्व-कल्याणकारी धर्म का ढांचा जिस आधार पर तैयार किया है, उससे यह तय हो जाता है कि नर में ही नारायण है और अपने का मारकर हम अधर्म को जीता रहे हैं। धर्म के नाम पर वो पशुओं व मानव का वध करके हिंदू धर्म को लगातार बदनाम किया जा रहा है।
गांव व छोटे इलाकों से लोग पढ़ लिख कर दुनिया में अपना परचम लहरा रहे हैं और बीते दो दशकों में जिस तरह भारत जैसे देश की तस्वीर बदली है, वह दुनिया ने देखी है, लेकिन पता नहीं क्यों हम इस बलि की प्रथा से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। लेकिन हम यहां किसी के भरोसे पर न रहकर स्वयं इस जाल से बाहर निकलना होगा। तांत्रिकों को पूरी तरह कानून ने प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन हम ही इनको जन्म दे देते हैं चूंकि जरा सी परेशानी हम सबसे पहले अपना सब्र खो देते हैं और गलत दिशा में चले जाते हैं। ऐसे तांत्रिकों के विषय में सबसे पहले यह समझना होगा कि यह लोग अपना भला तो कर नहीं पाते तो यह दूसरों का कैसे करेंगे। इस ऐसे लोगों से बचकर रहिए और कठिनाई से घबराइये नहीं। संकट तो हर पर कभी न कभी आता जरूर है और उसे चुनौती के रुप में स्वीकार करके आगे बढ़िए।