एक जंगल में बहुत ही पहुंचे हुए ऋषि रहते थे। ऋषि ने कई वर्षों की लंबी तपस्या और साधना के बाद चमत्कारिक शक्तियां और सिद्धियां प्राप्त की थी। इन शक्तियों और सिद्धियों के कारण ऋषि में अहंकार आ गया था।
ऋषि को झूठे अहंकार से बचाने के लिए एक दिन भगवान ने एक महात्मा का रूप धारण किया और ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। ऋषि ने महात्मा जी का आदर सत्कार किया , भोजन और कुछ देर विश्राम कर लेने के बाद दोनों सत्संग और धार्मिक चर्चा के लिए बैठ गए।
तभी महात्मा के रूप में आए भगवान ने ऋषि से पूछा, महाराज, मैंने सुना है कि आपके पास अनेक प्रकार की दुर्लभ सिद्धियां और शक्तियां है। क्या आप मुझे कुछ चमत्कार दिखा सकते हैं? क्या आप किसी को मार भी सकते हैं? ऋषि बोले, आपने ठीक सुना है।
तभी आश्रम के सामने से एक हाथी गुजरता नजर आया। उसे देखकर महात्मा ने ऋषि से कहा, क्या आप इस विशालकाय हाथी को मार सकते हैं? ऋषि ने अपने कमंडल में से थोड़ा पानी हाथ में लेकर मंत्र फूंका और देखते ही देखते हाथी पर दे मारा। इसके तुरंत बाद उस विशालकाय हाथी के प्राण-पखेरू उड़ गए।
महात्मा ने कहा, आपने मेरे कहने पर इस हाथी को मारा है, इसलिए अब इसकी हत्या का पाप मुझे ही लगेगा। अत: महाराज, आप इसे अब जीवित कर दीजिए। ऋषि ने पुन: अपना मंत्र फूंका और हाथी को जीवित कर दिया। महात्मा बोले, महाराज, आप में तो विलक्षण शक्ति है।
आपने हाथी को मार दिया और उसे पुन: जीवित भी कर दिया। परंतु इससे आपको या किसी को क्या मिला? इन चमत्कारों का क्या अर्थ है? इन सिद्धियों का प्रयोजन क्या है? महात्मा की बात सुनकर ऋषि सोच में पड़ गए। उन्हें समझ आ गया कि जिस उपलब्धि पर उन्हें बहुत गर्व है, वह तो मिथ्या है। झूठी उपलब्धि पर गर्व कैसा? क्योंकि इन उपलब्धियों से मनुष्य शक्ति मिल सकती है, पर मुक्ति नहीं।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा
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