नमस्कार,दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। हाल ही में हुई देश के मशहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन साहब की मौत की खबस से हर कोई हैरान रह गया है। उस्ताद ने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में 73 वर्ष की आयु में अंतिम सास ली। दरअसल,बीती रात यानि रविवार को रक्तचाप की समस्या के चलते अमेरिका के एक अस्पताल के आईसीयू में जाकिर हुसैन को भर्ती कराया गया था।
जिसके बाद आज सोमवार को उन्होंने अलविदा कह दिया। इस खबर को सुन पूरी म्यूजिक और बॉलीवुड इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ पड़ी। वहीं, कईं सेलेब्स ने उनकी याद में अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दुख जाहिर किया। ऐसे में अपने तबले के साथ जुगलबंदी करने वाले जाकिर हुसैन की कैसी रही पहचान और उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से चलिए जानते हैं..
जाकिर उस्ताद को क्रिकेट का था बहुत शौक
दरअसल, जाकिर हुसैन को बचपन में क्रिकेट खेलने का बहुत शौका था। पुराने के एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वो बचपन में क्रिकेटर बनना चाहते थे। वहीं उनके अब्बा उस्ताद अल्ला रक्खा कुरैशी साहब हमेशा से चाहते थे कि वो तबला वादक बनें पर वो बेटे काे क्रिकेट खेलने से मना नहीं करते थे। हालांकि, एक बार क्रिकेट खेलते हुए जाकिर की उंगली टूट गई। इसके बाद अब्बा ने उन्हें क्रिकेट खेलने से सख्त मना कर दिया।
इस फिल्म में हुसैन साहब को मिला था ऑफर
जाकिर हुसैन ने एक इंटरव्यू में फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ से जुड़ा किस्सा सुनाया था। उन्होंने कहा था, ‘मेरे पिता और मशहूर फिल्म निर्देश्क के.आसिफ बहुत अच्छे दोस्त थे। बचपन में पिता के मित्र शौकत मुझे फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ के सेट पर ले गए थे।
जब दिलीप कुमार साहब से हुई जाकिस हुसैन की मुलाकात
मोहन स्टूडियो में शीश महल लगा हुआ था और ‘प्यार किया तो डरना क्या..’ गाने कि शूटिंग चल रही थी। सेट पर शौकत जी ने मेरी मुलाकात एक्टर दिलीप कुमार साहब से करवाई। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा और फिर डायरेक्टर के.आसिफ को देखकर बोले ठीक है। मतलब यह था कि उन्होंने मुझे फिल्म में युवा सलीम के रोल के लिए फाइनल कर लिया था।
हालांकि, बाद में आसिफ साहब ने जब मेरे पिता से बात कि तो अब्बा नाराज हा गए। वो अपने दोस्त से लड़ पड़े। उन्होंने कहा कि जाकिर को तबला बजाना है। हमें इसे एक्टर वगैराह नहीं बनाना है। तो वहीं से मेरी फिल्म बनने से पहले ही एडिट हो गई।‘
12 साल की उम्र में बजाया था 20 मिनट तक तबला
अपनी पहली अदाकारी का किस्सा साझा करते हुए जाकिर हुसैन साहब ने कहा था, ‘मैं बचपन में पिता जी के साथ मशहूर सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान साहब के कार्यक्रम में गया था। हम वो कार्यक्रम देखने गए थे पर पिता जी ने मुझे स्टेज पर बिठा दिया। तब मैं मात्र 12 साल का था और मैंने उस्ताद के साथ 20 मिनट तबला बजाया।
तब उन्होंने मुझे जो 100 रुपए दिए थे उन्हें मैंने अब तक संभाल कर रखा है। यह मेरे लिए करोड़ों रुपए बराबर था। खास बात यह थी कि 7 साल की उम्र में मेरी पहली संगत भी उस्ताद अली अकबर खान साहब के साथ ही हुई थी।
अपनी कलाकारी को लेकर क्या बोले जाकिर हुसैन?
म्यूजिशियन नंबर 1 और नंबर 2 की होड़ से हमेशा बचने वाले जाकिर हुसैन ने एक कार्यक्रम में खुद से जुड़ा मजेदार किस्सा सुनाया था। उन्होंने कहा, ‘एक बार मैं सैन फ्रांसिस्को में था। इमिग्रेशन के लिए गया था। वहां पर मेरा नाम सुनकर और मेरा लुक देखकर मुझे साइड कर दिया गया।
ऑफिसर्स ने मुझसे कई सवाल पूछे.. फिर बोले आप पंडित रवि शंकर को जानते हैं? मैंने कहा हां..। तो बोले- बताइये, उनके बाद वर्ल्ड में इंडिया के दूसरे टॉप म्यूजिशियन कौन से हैं? उनका सवाल सुनते ही मेरी पत्नी बोलीं- वो यहीं हैं आप चाहें तो गूगल कर लें।’ जाकिर हुसैन साहब ने आगे कहा, ‘आप नंबर 1 और नंबर 2 में अटके हैं पर मुझे पता है कि ऐसे कई बेहतरीन कलाकार हैं जो मेरे जैसा और मुझसे बेहतर तबला बजाते हैं।’
कोई उस्ताद बोले जाकिर हुसैन को नहीं था पंसद
जाकिर हुसैन साहब को कभी पसंद नहीं आता था कि उन्हें कोई उस्ताद बोले। वो अक्सर कहते थे कि मैं उस्ताद नहीं हूं, सिर्फ जाकिर हूं। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि कुछ ऑर्गनाइजर्स ने अपने शोज की टिकट बेचने के लिए मेरे नाम के आगे उस्ताद लगाना शुरू कर दिया। मुझे खुद को उस्ताद बुलाना पसंद नहीं।
आगे उन्होंने बताया कि वो हमेशा स्टेज पर पहुंचने के बाद तय करते हैं कि उन्हें क्या बजाना है। वो कुछ भी प्लान नहीं करते। सबकुछ मूड और पब्लिक के रिस्पॉन्स पर तय होता है।