- एमबीबीएस मुन्नाभाइयों के बजाय खुलासे पर कार्रवाई, सैकड़ों मरीज भर्ती, कोरोना टेस्ट नहीं
- डाक्टर हैं नहीं, मुन्नाभाई एमबीबीएस सरीखे कर रहे हैं आईसीयू में मरीजों का इलाज
- बूचड़खानों में तब्दील हो चुके झोलाछाप नुमा नर्सिंग होम को नोटिस देकर भूला स्वास्थ्य विभाग
शेखर शर्मा |
मेरठ: डाक्टरों के नाम पर बजाय एमबीबीएस मुन्नाभाई सरीखों के खिलाफ कार्रवाई के स्वास्थ्य विभाग ने मुन्नाभाई सरीखों का सच उजागर करने वाले इन्फेक्शन प्रिवेशन टीम के सदस्य के खिलाफ ही कार्रवाई कर दी। उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। वहीं, दूसरी ओर जिन मुन्नाभाई सरीखों का खुलासा किया गया था उनके नर्सिंग होमों पर फाइलों में सील लगी होने के बाद भी वो बेधड़क चल रहे हैं। कोई रोकने टोकने वाला नहीं है।
जानलेवा कोरोना के ताबड़तोड़ हमले और सैकड़ों मरीज आईसीयू में भर्ती, लेकिन टेस्ट किसी का भी नहीं। नौबत यही तक ही नहीं। आईसीयू में भर्ती मरीजों के इलाज के लिए डाक्टर नहीं हैं, बल्कि इलाज का पूरा जिम्मा मुन्नाभाई एमबीबीएस सरीखे डाक्टरों के कंधों पर है।
ऐसे डाक्टर जिन्हें यह तक नहीं पता कि उन्होंने कौन-सी डिग्री ली है और क्या पढ़ाई की है। मेरठ में ऐसे एक दो नहीं बल्कि नर्सिंग होम व प्राइवेट अस्पताल के नाम पर 100 से ज्यादा बूचड़खाने व गांव देहात तथा शहर के पिछडे घनी बस्ती वाले इलाकों में क्लीनिक चलाए जा रहे हैं।
कोरोना को लेकर जो प्रोटोकॉल आईसीएमआर और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी तय किए गए हैं। उसे इन बूचड़खाना नुमा नर्सिंग होमों में सरेआम कत्ल किया जा रहा है। न कोई पूछने वाला है और न ही स्वास्थ्य विभाग के किसी अफसर को इतनी फुर्सत है कि मौके पर जाकर ऐसे नर्सिंग होमों की खबर ले सकें। मरीजों की जिंदगी की मानों कोई कितन ही अब बाकी नहीं रह गयी है।
आईसीयू संभाल रहे, डिग्री का पता नहीं
महानगर के हापुड़ रोड सहित कई इलाकों में ऐसे नर्सिंग होम की बाढ़ आयी हुई है। जिनमें डाक्टरों के बजाय आईसीयू ऐसा पैरामेडिकल स्टाफ संभाल रहा है। जिसको अपनी डिग्री तक की जानकारी नहीं है। आईएमए के पूर्व सचिव व स्वास्थ्य विभाग की इन्फेक्शन प्रिवेंशन टीम के पूर्व सदस्य डा. अनिल नौसरान ने ऐसे नर्सिंग होमों की असलियत उजागर करने का काम किया था। जांच में जब आईसीयू में ड्यूटी कर रहे पैरामेडिकल स्टाफ से उनकी डिग्री पूछी तो वह मौके से भाग खडे हुए।
न काबिल डाक्टर और न ही ट्रेंड स्टाफ
मरीजों को इलाज के नाम पर मौत बांट रहे इन नर्सिंग होमों में न तो काबिल डाक्टर ही नजर आएंगे न ही टेÑंड स्टाफ। दरअसल, काबिल डाक्टर व ट्रेंड नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टाफ को इसलिए नहीं रखा जाता क्योंकि वो जितनी सेलरी पर आते हैं। उससे बहुत कम सेलरी पर मुन्नाभाई एमबीबीएस सरीखा स्टाफ मिल जाता है। पिछले दिनों जिन नर्सिंग होम व अस्पतालों की चेकिंग की गयी, उनमें से किसी में भी काबिल डाक्टर या ट्रेंड पैरामेडिकल व नर्सिंग स्टाफ नहीं मिला। आठवीं पास युवक नर्सिंग का काम कर रहे थे।
बड़ा सवाल : जिम्मेदार कौन?
मरीजों को इलाज के नाम पर मौत बांट रहे इन बूचड़खाना नुमा नर्सिंग होम के संचालन के लिए जिम्मेदार स्वास्थ्य विभाग है या फिर वो सिस्टम जिसके कंधों पर सभी को सुगमता से स्वास्थ्य मिले यह जिम्मेदारी है। आईएमए सचिव स्वयं स्वीकार करते हैं कि सिस्टम की मर्जी के बगैर इस प्रकार के बूचड खाने चलना संभव नहीं है। मेरठ में करीब 100 से 150 ऐसे नर्सिंग होम संचालित किए जा रहे हैं।
जिनका स्वास्थ्य विभाग में रजिस्ट्रेशन तक नहीं है। उनका कहना है कि नॉन मेडिकल को नर्सिंग होम के लाइसेंस बांटे जाने से इसी प्रकार की समस्याएं खड़ी होती हैं। इसके लिए जितने जिम्मेदार नर्सिंग होम संचालक हैं। उतनी ही जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग की भी है।
नोटिस देकर भूल गए सीएमओ
कोरोना संक्रमण के चलते इन्फेक्शन प्रिवेंशन टीम जिसको ऐसे नर्सिंग होम में इन्फेक्शन प्रिवेशन की जांच की जिम्मेदारी दी गयी थी उसकी रिपोर्ट सीएमओ कार्यालय में दाखिल कर दी गयी। रिपोर्ट के आधार पर सीएमओ के स्तर पर कुछ नोटिस भी जारी किए गए, लेकिन नोटिस से आगे स्वास्थ्य विभाग नहीं बढ़ पाया है।
ये कहना है टीम के सदस्य का
कोरोना इन्फेक्शन प्रिवेशन टीम के पूर्व सदस्य डा. अनिल नौसरान का कहना है कि जो कुछ भी निरीक्षण के दौरान नजर आया वह बेहद डरावना था। स्वास्थ्य विभाग के संरक्षण के बगैर यह संभव नहीं है। जो रिपोर्ट तैयार की गयी है। उससे अब शासन को भी अवगत कराया जाएगा। हालांकि इस संबंध में जब स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से बात की गयी तो उनका कहना था कि जो भी किया नियमानुसार किया गया है।