गुरुकुल में चल रहे प्रशिक्षण का आज आखिरी दिन था। उनके गुरु ने अपने सभी शिष्यों की एक परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने एक पारदर्शी पात्र लेकर उसमें पानी भर दिया और उसमें नीचे एक छेद कर उसे पेड़ पर लटका दिया। और उसी पेड़ की चोटी पर एक ध्वज लगा दिया और सभी शिष्यों से कहा, तुम सब एक एक कर इस पात्र के पानी खतम होने तक उस ध्वज को जो शिष्य जितनी बार छूकर आएगा वही विजेता होगा।
और हर शिष्य को अपनी बारी आने पर इस पात्र को पानी से स्वयं भरकर पेड़ पर लटकाना होगा। और कोई भी शिष्य यह गिनने की कोशिश नहीं करेगा वह कितनी बार ध्वज छूकर आ गया है। सब अपने लक्ष्य पर ही पूरा ध्यान रखेंगे। सभी शिष्यों ने गुरु के बताए अनुसार अपनी पूरी क्षमता लगाकर परीक्षा दी।
लेकिन जब गुरु ने परीक्षा का परिणाम घोषित किया तो वह सब हैरान रह गए। एक दुबले पतले शिष्य को विजेता घोषित कर दिया। उत्सुकता वश एक शिष्य ने गुरु से पूछ लिया, गुरु आपने इसे विजेता घोषित कैसे किया यह तो बहुत दुबला पतला है इसने ध्वज को पेड़ पर चढ़कर हमसे अधिक बार कैसे छू लिया होगा?
गुरु मुस्कराए और बोले, पुत्र तुम सब जब ध्वज को छू रहे थे तो तुम्हारा आधे से अधिक ध्यान पात्र के पानी पर था। वह खाली तो नहीं हो गया है। और इसका केवल अपने लक्ष्य पर था। इसने पात्र के पानी की तरफ ध्यान न देकर अपना समस्त ध्यान अपने लक्ष्य पर लगाया।
और यह आप सबसे अधिक बार ध्वज को छूकर आया। इसलिए कहता हूं कोई भी कार्य क्यों न हो आपका पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर केंद्रित होना चाहिए। तभी आप सफलता प्राप्त कर सकते हो।
प्रस्तुति: तारावती सैनी
What’s your Reaction?
+1
+1
2
+1
+1
+1
+1
+1