- पुलिस ने बरामद की 3470 किताबें
- नकली एनसीईआरटी की किताबों का पुराना धंधा है शहर में
हर बार पकड़ी जाती हैं किताबें, मामला हो जाता है रफादफा
राजनीतिक कनेक्शन के कारण भी पुलिस हो जाती है सुस्त
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: थाना ब्रहमपुरी पुलिस द्वारा एनसीईआरटी की नकली किताबें बनाने वाले गिरोह का भंडाफोड़ करते हुए चार आरोपीगिरफ्तार करते हुए 3470 किताबें व एक छोटा हाथी बरामद किया गया है। पुलिस लाइन में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में सहायक पुलिस अधीक्षक विवेक यादव ने बताया कि एनसीईआरटी की नकली किताबों के साथ का अभियुक्त अभिलाष राजपूत पुत्र राजकुमार निवासी सूर्यापुरम शास्त्री कालोनी, रहीशुद्दीन पुत्र नूर मोहम्मद निवासी श्याम नगर, आबिल उर्फ आदिल पुत्र ईदू मेवाती निवासी भोपाल की कोठी अनार वाली मस्जिद के पास थाना लिसाड़ी गेट मेरठ एवं सत्येन्द्र कुमार पुत्र ब्रजपाल सिंह निवासी देवलोक को गिरफ्तार किया गया। जिनके कब्जे से नकली 3470 किताबें व एक टाटा एस बरामद किया गया।
…तो कीमतों के कारण एनसीईआरटी किताबों की पायरेसी
मेरठ: एनसीईआरटी की नकली किताबों का धंधा क्रांतिधरा पर काफी सालों से चल रहा है। हर बार किताबें पकड़ी जाती हैं और हायतौबा मचती है लेकिन बाद में सब सेटिंग से मामला निपट जाता है। नकली किताबों के पीछे तर्क और कुतर्क भी बहुत हैं। एक वर्ग का कहना है कि एनसीईआरटी जिन लोगों को किताबें छापने को देता है वो जरुरत के हिसाब से किताबें नहीं छापते हैं और बच्चोंं को साल भर परेशान रहना पड़ता है। वहीं दूसरा वर्ग पायरेसी के खिलाफ है और छापेमारी का समर्थन करता है।
24 अगस्त 2020 को मेरठ पुलिस और एसटीएफ ने परतापुर क्षेत्र से करीब 35 करोड़ की एनसीईआरटी की नकली किताबें और मशीनरी बरामद की थी। पुलिस ने फैक्ट्री और गोदाम समेत तीन जगहों को सील कर दिया था। छापेमारी के दौरान गैंग के सरगना की राजनीतिक पृष्ठभूमि का पता चला था। इस घोटाले की जांच में फॉरेंसिक, पुलिस, एसटीएफ, जीएसटी और एनसीईआरटी समेत कई एजेंसियां लगाई गई थी।
नकली किताबें छापने के मामले ने तूल पकड़ा तो मुख्य आरोपी सचिन गुप्ता के चाचा संजीव गुप्ता को बीजेपी से निलंबित कर दिया गया था। संजीव गुप्ता उस वक्त भाजपा के महानगर उपाध्यक्ष थे। फर्जी किताब छापने के इस मामले में बड़ी कार्रवाई करते हुए महानगर बीजेपी अध्यक्ष मुकेश सिंघल ने निलंबन पत्र जारी किया था। इस मामले में 8 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था।
इस गोरखधंधे की जांच में पता चला था कि बरामद की गईं 342 तरह की अलग-अलग किताबें नकली थीं लेकिन किताबों में एनसीईआरटी का वॉटरमार्क असली था। ऐसे में आशंका जताई जा रही थी कि धोखाधड़ी का कनेक्शन एनसीईआरटी से जुड़ा हो सकता है। एनसीईआरटी की किताब के हर पन्ने पर वॉटरमार्क होता है। नकली किताबों पर भी प्रत्येक पन्ने पर वॉटरमार्क था।
सचिन गुप्ता के पास एनसीईआरटी की किताबें प्रकाशित करने की कोई अनुमति नहीं थी। एनसीईआरटी की टीम ने पुलिस को सारे दस्तावेज सौंप दिए थे। पुलिस की जांच में सामने आया था कि संजीव गुप्ता और सचिन गुप्ता पिछले आठ साल से नकली किताबों का धंधा चला रहे थे। 2013 में भी संजीव गुप्ता की प्रिटिंग प्रेस में एनसीआरटी की डुप्लीकेट किताबें पकड़ी गई थीं।
उस समय भी एनसीईआरटी इंटेलीजेंस की टीम ने टीपीनगर पुलिस के साथ छापा मारा था। उस समय सत्ताधारी नेताओं के हस्तक्षेप के बाद मामला रफा दफा कर दिया गया था। नकली किताबें बेचने के प्रकरण में सदर स्थित एक चर्चित बुक स्टोर का नाम सामने आया था। यह पुस्तक विक्रेता बीस से अधिक वर्षों से स्कूलों की पुस्तकों के विक्रय का काम करता है। स्टोर से कैंट क्षेत्र के सभी स्कूलों की किताबें खरीदी जाती हैं।
अधिकांश स्कूलों में इसी स्टोर से किताबें जाती हैं। माना जा रहा है कि इसी बुक स्टोर से यह नकली किताब खरीदी गई थी। जिसे अधिक लाभ पर बेचा गया था। पुस्तक विक्रेताओं के अनुसार जो किताब विक्रेता नकली किताबों को बेचते हैं वो भी अपराधी हैं। इस खेल में वो विक्रेता भी एक कड़ी हैं जिनके माध्यम से किताबें बच्चों, स्कूलों तक पहुंचती हैं।
पुलिस उन विक्रेताओं पर शिकंजा क्यों नहीं कस रही। न ही एनसीईआरटी इस पर कोई कार्रवाई कर रहा है। आखिर ये नकली किताब कौन से स्टोर से खरीदी गईं या कहां से बेची जाती हैं। बुक सेलर एसोसिएशन हमेशा से कहता आ रहा है कि पुलिस को नकली किताबों को बेचने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिये, ऐसे लोगों की एसोसिएशन मदद नहीं करेगा।