कन्फ्यूशियस चीन के एक प्रसिद्ध दार्शनिक और संत हुए हैं। इन्हें चीनी संतों का प्रतिमान माना जाता है। एक बार एक साधक ने कन्फ्यूशियस से पूछा, मन पर संयम कैसे रखा जा सकता है? कन्फ्यूशियस ने कहा, मैं इसका एक सीधा सा उपाय बताता हूं, एक छोटा सा सूत्र देता हूं, अच्छा पहले यह बताओ, क्या तुम कान से सुनते हो? अच्छी तरह सोचकर जवाब देना। साधक बोला, हां, मैं कान से ही सुनता हूं। इसमें कन्फ्यूशियस ने असहमति जताते हुए कहा, मैं नही मान सकता कि तुम सिर्फ कान से ही सुनते हो।
तुम मन से भी सुनते हो और उसमे लिप्त होकर अशांत हो जाते हो। इसलिए आज से केवल कान से सुनना आरंभ कर दो। मन से सुनना बंद करो। इसी तरह तुम सिर्फ आंख से देखते हो और केवल जीभ से चखते हो, यह मैं नही मान सकता। तुम मन से भी देखते और चखते हो। आज से केवल आंख से देखना और जीभ से चखना आरंभ करो। मन से देखना और चखना बंद कर दो। मन पर अपने आप संयम हो जाएगा।
इस सूत्र का मूलमंत्र है की सिर्फ कान से सुनो, आंख से देखो और जीभ से चखो, उसमे मन को मत जोड़ो। यही मन को नियंत्रित और संयमित करने की पहली सीढ़ी है। मनुष्य जब अपनी इंद्रियों के साथ मन को जोड़ देता है , वो मन को और शक्तिशाली बना देता है और शक्तिशाली मन हमें आध्यात्मिकता से दूर ले जाता है, क्योंकि मन ही काल का दास है। काल जैसा जैसा कहता है, मन मनुष्य से उसी के अनुसार कर्म करवाता है।