नीलू गरीब था, लेकिन उसका दिल बड़ा ही उदार था। वह गरीबों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता था। एक दिन, नीलू ने अपने गांव के एक साधू बाबा को देखा जो बड़ी गहन तपस्या कर रहे थे। नीलू ने साधू बाबा के पास जाकर प्रणाम किया और उनसे पूछा, बाबा, आप इतनी कठिन तपस्या क्यों कर रहे हैं? साधू बाबा ने हंसते हुए कहा, बेटा, मैं इस तपस्या से आत्मा को शुद्ध कर रहा हूं और मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास कर रहा हूं। नीलू ने सोचा, बाबा तो इतनी तपस्या कर रहे हैं, मुझे भी कुछ करना चाहिए। तब नीलू ने तय किया कि वह भी तपस्या करेगा। नीलू ने अपने गांव के पास एक पुराना वृक्ष देखा, जिस पर कुछ बर्फबारी के कारण पौधे सूख गए थे। उसने वहां जाकर उसे पानी देना शुरू किया। हर दिन, वह उस वृक्ष के पास जाकर पानी देता और उसका ध्यान रखता। कुछ महीनों बाद, वृक्ष ने हरी-भरी पत्तियां फिर से उगाना शुरू किया। नीलू का दिल खुशी से भर गया। एक दिन, जब वह साधू बाबा के पास गया और उसने अपनी कठिन तपस्या के बारे में बताया, तो साधू बाबा ने उसके प्रयास को सराहा। उन्होंने नीलू को यह सिखाया कि हर कार्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और नेकी का फल हमें कभी न कभी जरूर मिलता है। नीलू ने इस अनुभव से सीखा कि कर्म बोध का मतलब है कि हमें अपने कर्मों को ईमानदारी से करना चाहिए, चाहे हमारे पास जितने भी संघर्ष हों। उसने अपने कर्मों में सच्चाई और ईमानदारी लाने का संकल्प लिया और देखा कि नेकी का फल कभी न कभी जरूर मिलता है।