अली खान
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में फल न केवल पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, बल्कि लाखों किसानों की आजीविका का माध्यम भी हैं। प्रकृति प्रदत्त इन उपहारों की मिठास, रंगत और सुगंध वर्षों से भारतीय जीवनशैली का हिस्सा रहे हैं। परंतु वर्तमान समय में इन फलों को कृत्रिम रूप से पकाने की जो प्रवृत्ति विकसित हो रही है, वह न केवल हमारी खाद्य प्रणाली को दूषित कर रही है, बल्कि स्वास्थ्य पर भी गंभीर संकट उत्पन्न कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि फलों को जल्दी पकाने के लिए उपयोग में लाए जा रहे रसायनों, विशेषकर कैल्शियम कार्बाइड ने समस्या को और भी जटिल बना दिया है। हमारे स्वास्थ्य और कृषि को नुकसान पहुंचा रहा है।
कैल्शियम कार्बाइड मुख्यत: औद्योगिक उपयोग के लिए निर्मित एक रसायन है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य एसिटिलीन गैस का उत्पादन करना होता है। यह गैस जब फलों के संपर्क में आती है, तो वह कृत्रिम रूप से उनकी पकने की प्रक्रिया को तेज कर देती है। परंतु यह प्रक्रिया एक विषैली प्रक्रिया भी होती है। इस रसायन से उत्पन्न एसिटिलीन गैस के साथ-साथ आर्सेनिक और फॉस्फीन जैसी विषैली गैसें भी उत्पन्न होती हैं, जो मानव शरीर के अंगों—विशेष रूप से मस्तिष्क, यकृत, हृदय और गुर्दों पर गहरा दुष्प्रभाव डालती हैं। भारत में फल उत्पादन की स्थिति गौर करने लायक है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के अनुसार, भारत में वर्ष 2022-23 में कुल 100.31 मिलियन टन फलों का उत्पादन हुआ, जिनमें प्रमुख फलों में आम, केला, सेब, अंगूर, संतरा, पपीता और अमरूद शामिल हैं। भारत का उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य सबसे बड़े फल उत्पादक हैं। इन क्षेत्रों से निकले फलों की भारी मात्रा देश के कोनों-कोनों तक पहुंचती है। लेकिन इनमें से लगभग 30 फीसदी फल कच्ची अवस्था में ही बाजारों तक पहुंचते हैं, जिन्हें वहां व्यापारिक दृष्टि से जल्दी बेचने हेतु रासायनिक विधियों द्वारा पकाया जाता है। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से शहरी मंडियों—दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और चेन्नई में अधिक देखी जाती है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने वर्ष 2006 के अधिनियम के अंतर्गत कैल्शियम कार्बाइड के उपयोग को मनुष्यों के खाद्य पदार्थों में पूरी तरह प्रतिबंधित किया है। इसके बावजूद भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार देश के 42 फीसदी प्रमुख महानगरीय फल विक्रेताओं द्वारा इस प्रतिबंधित रसायन का उपयोग किया जा रहा था। इसका मुख्य कारण कम निरीक्षण कर्मियों की उपलब्धता और निगरानी तंत्र की कमजोरी। देश भर में खाद्य निरीक्षण के लिए मात्र 300 के करीब निरीक्षक कार्यरत हैं, जो इतने विशाल भौगोलिक क्षेत्र के लिए बेहद अपर्याप्त हैं।
स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से, कैल्शियम कार्बाइड से पके फलों का सेवन बेहद खतरनाक सिद्ध हो सकता है। मेडिकल रिसर्च संस्थानों के मुताबिक, यह रसायन दीर्घकालिक प्रभाव डालता है। एआईआईएमएस दिल्ली की एक रिपोर्ट बताती है कि नियमित रूप से तीन महीने तक कैल्शियम कार्बाइड से पके फल खाने वाले 78 फीसदी लोगों के शरीर में कोशिकीय संरचना में परिवर्तन और यकृत एंजाइम असंतुलन पाया गया। यह रसायन शरीर के तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव डालता है जिससे सिरदर्द, चक्कर आना, स्मृति ह्रास और अनिद्रा जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त, यह रसायन हृदय की धड़कनों को असंतुलित कर सकता है, उच्च रक्तचाप उत्पन्न कर सकता है और यकृत की कार्यक्षमता में अवरोध उत्पन्न कर सकता है। पाचन तंत्र पर इसका प्रभाव भी उल्लेखनीय है, क्योंकि इससे गैस, अपच, उल्टी, दस्त और पेट दर्द जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। त्वचा संबंधी समस्याएं, आंखों में जलन और एलर्जी की प्रतिक्रियाएं भी आम हैं।
प्रश्न है कि यदि कैल्शियम कार्बाइड से फल नहीं पकाए जाएं तो विकल्प क्या हैं। पारंपरिक भारतीय पद्धतियों में फल पकाने के कई प्राकृतिक और सुरक्षित उपाय हैं। उदाहरण के लिए, फलों को बांस की टोकरियों में भरकर, भूसे में दबाकर या अखबार में लपेटकर कुछ दिनों में प्राकृतिक रूप से पकाया जाता था। इन विधियों से फल धीरे-धीरे पकते थे, लेकिन इनमें पोषक तत्व और सुगंध पूरी तरह सुरक्षित रहती थी। आज इस विधि को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, एफएसएसएआई ने एक वैकल्पिक विधि के रूप में एथीलीन गैस के उपयोग की अनुमति दी है। यह गैस एक प्राकृतिक हार्मोन की भांति कार्य करती है और फलों को सुरक्षित रूप से पकाती है। इसे 100 पीपीएम तक सुरक्षित माना गया है। परंतु इसका प्रयोग सीमित है क्योंकि छोटे व्यापारियों को इसकी जानकारी नहीं है, प्रशिक्षण की कमी है और एथीलीन जनरेटिंग चेंबर महंगे होते हैं। जब तक इस दिशा में एकजुट होकर कार्य नहीं करेंगे, जीवन की सुरक्षा पर संकट मंडराता रहेगा।