Thursday, May 8, 2025
- Advertisement -

जी-20 की अध्यक्षता टोकन मात्र है

Samvad 52


29उम्मीद है कि आप सभी को आज का अखबार खोलते ही संपादकीय पृष्ठ पर मुख्य आलेख भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देखने को मिला होगा। मेरे लिए भी यह एक सुखद आश्चर्य था। फिर दिमाग में कौंधा कि देखते हैं यदि अंग्रेजी में लिखा है तो हिंदी के अखबारों में भी होना चाहिए। देखा तो पता चला कि क्या हिंदी क्या अंग्रेजी, लगभग सभी अखबारों में नरेंद्र मोदी जी आज छाए हुए हैं। सभी लेखों की विषय वस्तु एक ही है, जी-20 समूह की अध्यक्षता अब भारत के हाथों में है, और अगले एक साल तक भारत इसका सिरमौर रहने वाला है। जी-20 देशों की अध्यक्षता कोई भाग्य से छींका फूटना नहीं है, बल्कि यह एक रोटेशन में सबको बारी-बारी से मिलता रहता है। इसमें कुल जमा 20 सदस्य हैं, जिसमें 19 देश हैं अर्जेंटीना, आॅस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका। यूरोपीय संघ को 20 वें देश के रूप में रखा गया है और स्पेन इसमें स्थायी अतिथि के तौर पर है, और हर वर्ष इसका आयोजन किया जाता है।

जी-20 की अध्यक्षता मिलने से किसी को गफलत में रहने की जरूरत नहीं है। जी-20 समूह असल में जी-7 का ही एक विस्तार है, और इसे अंजाम देने वाला देश अमेरिका ही है, जिसकी सरपरस्ती में दुनिया के धनी देश जी-7 और नाटो के तहत समूची दुनिया का ठेका संभाले हुए हैं। असल में जी-20 की शुरूआत तो वित्त मंत्रियों की बैठक से हुआ करती थी, जिसे बाद में स्थानापन्न कर देश के मुखियाओं ने ले ली है। 1999 में इसकी शुरूआत हुई और 2008 में आई आर्थिक मंदी से इसे राष्ट्राध्यक्षों के द्वारा अधिग्रहीत कर लिया गया। इसकी अध्यक्षता बारी-बारी से की जाती है, लेकिन अमेरिका पहले ही दो बार इसकी अध्यक्षता कर चुका है।

सबसे पहले पहली बार 2008 में जार्ज डब्ल्यू बुश के द्वारा 14-15 नवंबर को वाशिंगटन में और इसके बाद अगले ही वर्ष 2009 में सितंबर माह में पीट्सबर्ग में बराक ओबामा ने इसकी अध्यक्षता की थी। वर्ष 2009 को ही पहले छमाही में इसकी अध्यक्षता 2 अप्रैल को ब्रिटेन के हाथों में थी। 2011 से इसे वार्षिक आयोजन करार दिया गया और फ्रस ने इसकी अध्यक्षता की थी। अभी तक लगभग सभी देशों ने इसकी अगुआई हासिल कर ली है। विकासशील देशों में अब सिर्फ भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की बारी है, जो उन्हें क्रमश: 2023, 24 और 25 में मिलनी है।

इसके बाद से चक्का फिर से घूम जायेगा। इसलिए इसको लेकर कुछ बड़ा सोचने की बात करना मूर्ख बनाने से अधिक नहीं है। उल्टा, ध्यान से देखेंगे तो इन जी-20 देशों में भारत सबसे गरीब है। जीडीपी के आधार पर प्रति व्यक्ति आय के मामले में 2022 में भारत की आय जहां 2,466 डॉलर के साथ सबसे कम है, वहीं सबसे अमीर अमेरिकी है, 75,120 डॉलर। यहाँ तक कि 4691 डॉलर प्रति व्यक्ति आय के साथ इंडोनेशिया भी भारत से दुगुनी मजबूती से खड़ा है।

दक्षिण अफ्रीका प्रति व्यक्ति आय 6,739 डॉलर, ब्राजील 8857, तुर्की 9961, चीन 12,970 और रूस की 14,665 डॉलर प्रति व्यक्ति आय है। बाकी देशों की प्रति व्यक्ति आय तो भारत की तुलना में दसियों गुना अधिक है। ऊपर से जी-20 बनाया ही अपने हित साधन के लिए है, तो इसमें भारत को सदारत मिलती है तो वह इससे क्या हासिल कर सकता है, यह सहज बुद्धि से समझा जा सकता है।

वहीं दूसरी तरफ ब्रिक्स समूह की स्थापना इसके ठीक उलट है। ब्रिक्स समूह की स्थापना भी जी-20 के साथ-साथ 2009 में हुई थी। अर्थशास्त्री जिम ओ नील ने 2001 में ब्रिक को उन उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के रूप में नाम दिया था, जिनके बार में अनुमान है कि 2050 तक ये देश सामूहिक रूप से दुनिया को निर्णायक दिशा देने की स्थिति में पहुँच जायेंगे। इसका अर्थ है मौजूदा दौर में जो काम जी-7 देश और नाटो कर रहे हैं, वह काम अगले 20 वर्षों में ब्रिक्स देशों को हस्तगत होने जा रहा है। इस हस्तांतरण में भारत भी एक बड़ा हिस्सेदार है। उसके पास तब दुनिया की सबसे बड़ी आबादी होगी, सबसे बड़ी संख्या में युवा होंगे। अब तक तीन बार भारत के पास ब्रिक्स सम्मेलन की अध्यक्षता करने का अवसर मिल चुका है।

भले ही शुरू-शुरू में इसे हल्के में लिया गया, लेकिन हाल के वर्षों में ब्रिक्स ने सेंटर स्टेज लेना शुरू कर दिया है। दुनिया में आर्थिक प्रभुत्व अभी भी धनी उत्तरी ध्रुवीय देशों के हाथों में बना हुआ है, लेकिन यह छीजता जा रहा है और तेजी से एशिया उसे स्थानापन्न करता जा रहा है। यह 250 वर्षों से अधिक समय से उत्तरी गोलार्ध की चौधराहट, औपनिवेशिक युग और उत्तर औपनिवेशिक युग के चंगुल से मुक्ति का अवसर है, जिसमें वैश्विक स्तर पर युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। कोविड-19 महामारी ने जहां एक बार फिर से वैश्विक जनमत को स्पष्ट चेतावनी दे दी है कि सामूहिकता, भाईचारे और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर ही मनुष्य अब जीवित रह सकता है, वहीं ग्लोबल वार्मिंग लगातार अपनी चेतावनी को उच्चतर स्वर में हमारे सामने पेश कर रहा है।

लेकिन हम सभी इस बात से भली भांति परिचित हैं कि जैसे शेर शाकाहारी नहीं हो सकता है, उसी प्रकार शोषण पर परजीवी की तरह अभी तक जी रहे साम्राज्यवादी देशों के लिए अबाध लाभ की स्थिति से अचानक से अश्वेतों और औपनिवेशिक दक्षिणी गोलार्ध के बराबर या पीछे चले जाने की स्थिति नाकाबिले बर्दाश्त होने वाली है। ऐसे में, जी-20 देशों की अध्यक्षता सिर्फ टोकन मात्र है, जिसके बारे में यदि हम खामख्याली पालते हैं, तो भारत का ही अहित होने जा रहा है। आज से 10 वर्ष पहले तक ब्रिक्स देशों के समूह में चीन के बाद भारत और ब्राजील को ही देखा जाता था। लेकिन आज स्थिति बदल गई है।

आज चीन ने अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली है, साथ ही रूस भी बड़ी तेजी से उभरा है। कल को ब्राजील फिर से लूला डी सिल्वा के राष्ट्रपति बनने से खुद को मजबूत स्थिति में रख सकते हैं। ब्रिक्स देशों के समूह में शामिल होने के लिए सऊदी अरब, ईरान, तुर्की, अर्जेन्टीना ने अपनी-अपनी अर्जी दे दी है। उगते सूरज को सलाम करने वाले लोग कभी कम नहीं होंगे। मुख्य सवाल है कहीं हम


janwani address 9

spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर, जानिए क्यों पीएम मोदी ने इस सैन्य अभियान को दिया ये नाम?

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Opration Sindoor पर PM Modi ने की सुरक्षाबलों की सराहना, Cabinet Meeting में लिया ये फैसला

जनवाणी ब्यूरो |नई दिल्ली: भारत द्वारा पाकिस्तान और पाकिस्तान...
spot_imgspot_img