Saturday, May 10, 2025
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गिग इकॉनोमी, चुनौतियां और संभवनाएं

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NARPENDRA ABHISHEK NRAP 1इंटरनेट एक बहुत शक्तिशाली व्यापार मंच है। बहुत से लोग नेटवर्क के माध्यम से अच्छी आमदनी सृजित करने में सक्षम हैं, आज डिजिटल होती दुनिया में रोजगार की परिभाषा और कार्य का स्वरूप भी तेजी से बदल रहा है। एक नई वैश्विक अर्थव्यवस्था तेजी से उभरकर सामने आ रही है, जिसको नाम दिया जा रहा है ‘गिग इकॉनोमी’ का। गिग इकॉनोमी एक मुक्त बाजार प्रणाली है जिसमें आम रूप से अस्थायी कार्य अवसर मौजूद होते हैं और विभिन्न संगठन अल्पकालिक संलग्नताओं के लिए स्वतंत्र कर्मियों के साथ अनुबंध करते हैं। वित्तीय सेवा मंच (फाइनेंशियल सर्विसेस प्लेटफॉर्म) ‘स्ट्राइडवन’ द्वारा इस महीने जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 तक, भारत के कुल कार्यबल का लगभग 4 प्रतिशत हिस्सा ‘गिग सेक्टर’ से होने की उम्मीद है।

इसके द्वारा साल 2024 तक लगभग 2.35 करोड़ श्रमिकों को रोजगार दिए जाने की उम्मीद है-यह साल 2020-21 में केवल 80 लाख कार्यबल के 1.5 प्रतिशत- से तीन गुना वृद्धि होगी। हाल के वर्षों में इस प्रकार के कार्य की लोकप्रियता बढ़ी है क्योंकि यह कर्मियों के लिये अधिक लचीलापन एवं स्वतंत्रता प्रदान करता है और व्यवसायों के लिये एक लागत प्रभावी समाधान हो सकता है।

गिग कर्मचारी सर्वव्यापक नए कार्यबल हैं। वे लोग हैं जो हमें आॅनलाइन आॅर्डर किए गए भोजन को प्राप्त करते हैं, हमें घर से कार्यालय या कहीं भी ले जाते हैं और आम तौर पर ऐसी कई सेवाएं प्रदान करते हैं जिन पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। भारत मे गिग इकॉनोमी के विकास के पीछे दो मूलभूत कारक हैं। पहली तो देश में हुए तकनीकी विकास ने इसे पनपने में योगदान दिया है।

तकनीकी परिवर्तनों ने अनुबंध करना बहुत आसान बना दिया है और फ्रीलांसरों के लिए काम ढूंढना भी संभव बना दिया है। दूसरे कारक है कि भारत में कड़े श्रम कानूनों के कारण, कई कंपनियां अनुबंधित श्रम बल रखना पसंद करती हैं। भारत में अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण और श्रम मोर्चे पर सुधार जैसे दोनों कारकों में कई बदलाव किए गए हैं।

भारत सरकार को गिग इकॉनोमी के विकास पर ध्यान ज्यादा देने की जरूरत है। क्योंकि वर्तमान में, भारतीय अर्थव्यवस्था समावेशी विकास की कमी के कारण बेरोजगारी का सामना कर रही है। गिग इकॉनोमी में जॉब्स के निर्माण से भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा, भारतीय कृषि से उपजी बेरोजगारी की समस्या का सामना कर रहे है।

गिग इकॉनोमी ऐसे ग्रामीण युवाओं को लाभकारी रोजगार प्रदान करने में सक्षम होगी। इससे प्रतिस्पर्धा में सुधार होने की भी पूरी संभावना है। काम की मात्रा के आधार पर कम वक्त के लिए फ्रीलांसर श्रमिकों को काम पर रखने से कंपनियों को अपने वर्क फोर्स को तर्कसंगत बनाने और लागत को कम करने में मदद मिलती है। इससे कंपनियों की कंपटीशन और स्किल्स में सुधार होता है।

गिग इकॉनोमी कर्मियों के लिए नौकरी की सुरक्षा और लाभों की कमी को लेकर चिंताएँ भी मौजूद हैं। अनुमान है कि भारत में भविष्य में गिग इकॉनोमी का और विस्तार होगा और इसलिये इसे कर्मियों के अधिकारों की रक्षा और उनके प्रति उचित व्यवहार सुनिश्चित करने के लिये सरकारी नियमों एवं नीतियों द्वारा समर्थित होना चाहिये। भारत में कई तरह के गिग कामगार श्रम संहिता के दायरे में नहीं आते हैं और स्वास्थ्य बीमा एवं सेवानिवृत्ति योजनाओं जैसे लाभों तक उनकी पहुँच नहीं है।

फ्लोरिश वेंचर्स के एक शोध के अनुसार, महामारी से पहले अधिकांश गिग इकॉनोमी वर्कर्स 25,000 रुपये से ऊपर कमाते थे, जबकि महामारी के बाद, दस में से नौ कर्मचारी 15,000 रुपये से कम कमा रहे थे। इस उच्च आय में उतार-चढ़ाव के कई संभावित कारण है।

भारत में गिग कर्मियों को प्राय: पारंपरिक कर्मचारियों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है और वे उनकी तरह कानूनी सुरक्षा से भी वंचित होते हैं। गिग इकॉनोमी व्यापक रूप से टेक्नोलॉजी और इंटरनेट एक्सेस पर निर्भर करती है, जो फिर उन लोगों के लिये एक बाधा उत्पन्न करती है जिनके पास इन संसाधनों तक पहुंच नहीं है और यह आय असमानता को और बढ़ा देता है।

गिग कर्मी पारंपरिक कर्मचारियों के समान सामाजिक संबंध और समर्थन प्रणाली से वंचित हो सकते हैं, क्योंकि वे प्राय: स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं और भौतिक कार्यस्थल का अभाव रखते हैं।

भारत सरकार को गिग इकॉनोमी के लिए स्पष्ट विनियम एवं नीतियां स्थापित करनी चाहिए ताकि गिग कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो और कंपनियों को जवाबदेह ठहराया जा सके। सरकार को गिग कर्मियों के कौशल में सुधार और उनकी आय अर्जन क्षमता को बढ़ाने के लिये शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिए।


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