आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है। दुनिया के सभी देश योग दिवस को पूरी तन्मयता से मना रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक आज तकरीबन 25 करोड़ लोग अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस से प्रत्यक्ष-परोक्ष रुप से जुड़ेंगे।रिए संपूर्ण विश्व को योग की महत्ता से सुपरिचित कराया। महर्षि महेश योगी, परमहंस योगानंद और रमण महर्षि जैसे अनेक पुरोधाओं ने भी योग से पश्चिमी दुनिया को प्रभावित किया। यह योग की बड़ी उपलब्धि है कि उसके शास्त्रीय स्वरुप, दार्शनिक आधार और सम्यक स्वरुप को किसी अन्य धर्म ने नकारा नहीं है। यहां तक कि संसार को मिथ्या मानने वाले अद्वैतावादी भी योग का समर्थन किए हैं। अनीश्वरवादी सांख्य विद्वान भी योग का अनुमोदन करते हैं। बौद्ध ही नहीं मुस्लिम सूफी और ईसाई मिस्टिक भी किसी न किसी प्रकार अपने संप्रदाय की मान्यताओं और दार्शनिक सिद्धांतों के साथ योग का सामंजस्य किए हैं। सच तो यह है कि योग का किसी धर्म विशेष से संबंध नहीं है।
यह धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक सीधा-सा प्रायोगिक विज्ञान है जो जीने की कला सीखाता है। इसे एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति के रुप में भी देखा जाता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने एक स्थान पर कहा है कि योग: कर्मसु कौशलम अर्थात योग से कर्मों में कुशलता आती है। गीता में कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग की विशद् मीमांसा की गयी है।
बौद्ध धर्म में कहा गया है कि कुशल चितैकग्गता योग: अर्थात कुशल चित की एकाग्रता ही योग है। दूसरी शताब्दी के जैन पाठ तत्वार्थसूत्र के अनुसार योग मन, वाणी और शरीर सभी गतिविधियों का कुलयोग है। भारतीय दर्शन में, षड् दर्शनों में से एक का नाम योग है। भारत में योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम होता है।
योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण-पूर्व एशिया और श्रीलंका में फैला। सूफी संगीत के विकास में भारतीय योग अभ्यास का काफी प्रभाव है, जहां वे दोनों शारीरिक मुद्राओं आसन व प्राणायाम को अनुकूलित किया है।
प्राचीन काल में योग की इतनी अधिक महत्ता थी कि 11 वीं शताब्दी में भारतीय योगपाठ अमृतकुंड का अरबी व फारसी भाषाओं में अनुवाद किया गया। आज दुनिया के सभी देशों में योग की स्वीकार्यता बढ़ी है। चीन, सिंगापुर से लेकर अमेरिका तक में लाखों की संख्या में लोग योगासन कर रहे हैं। चीन में हाल के वर्षों में योग बड़े पैमाने पर लोकप्रिय हुआ है।
चिकित्सकों की मानें तो योग से न केवल व्यक्ति का तनाव दूर हो रहा है बल्कि मन व मस्तिष्क को शांति भी पहुंच रही है। योग के जरिए दिमाग और शरीर की एकता का समन्वय होता है। योग संयम से विचार व व्यवहार अनुशासित होता है। योग की सुंदरताओं में से एक खूबी यह भी है कि बूढे या युवा, स्वस्थ या कमजोर सभी के लिए योग का शारीरिक अभ्यास लाभप्रद है।
योगाभ्यास से रोगों से लड़ने की शक्ति में वृद्धि होती है। त्वचा पर चमक बनी रहती है और शरीर स्वस्थ, निरोग व बलवान रहता है तथा अंतश में शांति का उद्भव होता है। भारतीय योग और दर्शन में योग का अत्यधिक महत्व है। सच कहें तो आध्यामिक उन्नति या शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए योग की आवश्यकता एवं महत्व को प्राय: सभी दर्शनों एवं भारतीय धार्मिक संप्रदायों ने एकमत से स्वीकार किया है।
चूंकि योग एक वैज्ञानिक व प्रमाणिक पद्धति है इसलिए न तो अत्यधिक साधनों की जरुरत पड़ती है और न ही अत्यधिक धन खर्च करना पड़ता है। आधुनिक युग में योग की बढ़ती स्वीकार्यता का एक कारण यह भी है कि लोगों के जीवन में व्यस्तता एवं व्यग्रता का विस्तार हुआ है। अंग्रेजी दवाओं के इस्तेमाल से शरीर में कई किस्म की बीमारियां फैल रही हैं।
जबकि दूसरी ओर योगाभ्यास से शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव की संभावना नगण्य है। भारत के लिए गर्व की बात है कि योग को संयुक्त राष्ट्र संघ के शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन ‘यूनेस्को’ ने भी अपनी प्रतिष्ठित अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल कर लिया है।
उल्लेखनीय है कि यूनेस्को के अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों के दायरे में मौखिक परंपराओं और अभिव्यक्तियों, प्रदर्शन कलाओं, सामाजिक रीतियों-रिवाजों और ज्ञान इत्यादि को रखा जाता है। चूंकि अभी तक योग को खेल की विधा माना जाता था, इसलिए इसे अब तक इस सूची में शामिल होने का मौका नहीं मिला था।
लेकिन जब भारत सरकार द्वारा योग को दुनिया भर में स्थापित करने का प्रयास तेज हुआ और संयुक्त राष्ट्र को योग की सार्वभौमिक महत्ता से जुड़े प्रमाणिक दस्तावेज भेजा गया तो इथियोपिया के अदिस अबाबा में हुई संयुक्त राष्ट्र की इंटरगर्वनमेंटल समिति ने भारत के इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी।
उल्लेखनीय है कि योग से पहले भारत की 12 धरोहरें यूनेस्कों की सूची में शामिल हो चुकी हैं- जैसे छाऊ नृत्य, लद्दाख में बौद्ध भिक्षुओं का मंत्रोच्चारण, संकीर्तन-मणिपुर में गाने-नाचने की परंपरा, पंजाब में ठठेरों द्वारा तांब व पीतल के बर्तन बनाने का तरीका और रामलीला इत्यादि।
आज अगर योग को लेकर दुनिया का आकर्षण बढ़ा है और उसके सामर्थ्य और उपयोगिता को पहचाना गया है तो नि:संदेह यह योग की वैज्ञानिक महत्ता का प्रतिफल है। उल्लेखनीय है कि 21 जून 2015 को पहली बार योग दिवस मनाया गया। याद होगा कि 27 सितंबर 2014 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में दुनिया को योग की महत्ता को समझाया और 11 दिसंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने 21 जून को अंतराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी।
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