Monday, October 14, 2024
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मोह और अज्ञान

Amritvani


एक महिला अपने पति से आए दिन शिकायत करती थी कि अपनी सहेलियों में मैं ही गरीब हूं। सबके पास सोने का हार है, मेरे पास नहीं। शायद मेरी यह इच्छा जीवन में कभी पूरी नहीं होगी। पत्नी की रोज-रोज की शिकायत से पति परेशान हो गया। आखिर एक दिन उसने चमचमाता हुआ सोने का हार पत्नी के गले में डाल दिया। पत्नी खुशी से निहाल हो गई।

दस दिन के बाद एक शादी के आयोजन में हार पहन कर गई। वहां हार चोरी हो गया। लौट कर आई तो चेहरा उतरा हुआ था। पति ने कारण पूछा तो बोली, ‘हार खो गया। मेरा नसीब ही खोटा था। अपनी गलती और लापरवाही से इतना बड़ा नुकसान हो गया।’

पति ने पत्नी की बात सुनी, तो धीरे से मुस्करा दिया। पत्नी तमक कर बोली, ‘मेरी इतनी कीमती चीज खो गई और तुम्हें हंसी आ रही है। दे सकते हो दोबारा वैसा ही हार?’ पति ने कहा, ‘क्यों नहीं दे सकता? दो घंटे बाद ही दूसरा हार ले लेना।’ पति ने यह बात इतनी लापरवाही से कही कि पत्नी को शक हो गया।

उसने कहा, ‘लॉटरी निकली है क्या? इतना पैसा तुम कब से रखने लगे?’ पति ने कहा, ‘इतने पैसे की जरूरत ही नहीं है। वैसे हार के लिए पचास रुपये ही पर्याप्त हैं।’ पत्नी समझ गई कि हार नकली था।

उसका दुख दूर हो गया, लेकिन एक दूसरा दुख उस पर सवार हो गया कि पति उससे झूठ बोल रहा है, उसे धोखा दे रहा है। वास्तव में दु:ख पैदा होता है अपने मोह के कारण, अज्ञान और आवेश के कारण। अगर मोह, अज्ञान और आवेश आपके भीतर है, तो दुख कोई न कोई कारण ढूंढ ही लेगा।


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