उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों की मनमानी के चलते आज तक पूरे प्रदेश में महज 3 करोड़ 50 लाख से थोड़े ही ज्यादा बिजली उपभोक्ता हैं। उत्तर प्रदेश में बिजली के कई-कई घंटे के कट के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो धीरे से जोर का झटका दे मारा है, उससे बिजली उपभोक्ताओं को तो परेशानी बाद में होगी, बिजली कर्मचारियों को अभी से परेशानी होने लगी है। दरअसल, उत्तर प्रदेश में बिजली की समस्या और महंगी बिजली को लेकर काफी हंगामा पिछले करीब 6 साल में हुआ है, जबसे भाजपा की सरकार यानि मुख्यमंत्री योगी के नेतृत्व वाली सरकार बनी है। पहले योगी सरकार ने बिजली के धंधे में घाटा दिखाकर उसे पीपीपी यानि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर बिजली की सप्लाई शुरू की, जिसके बाद आम लोगों, खासकर व्यापारियों ने महंगी बिजली और बिजली की आधी-अधूरी आपूर्ति को लेकर आवाज बुलंद की, यहां तक कि सरकार की इन दोनों व्यवस्थाओं के खिलाफ कई जगह धरने-प्रदर्शन भी हुए, खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र बनारस में बुनकरों और दूसरे उद्योग धंधे वाले व्यापारियों ने सरकार की पॉलिसी का जमकर विरोध किया, लेकिन उसका कुछ खास फायदा नहीं हुआ और सरकार अपनी मनमानी बिजली को लेकर करती रही।
इसके बाद करीब दो साल से अडानी की कंपनी के प्रीपेड स्मार्ट मीटर जबरन घर-घर लगाए जाने लगे और ये काम बिजली विभाग के कर्मचारियों से पुलिस की मौजूदगी में सरकार कराने लगी, जिसका काफी विरोध पहले भी हुआ और अभी भी हो रहा है, क्योंकि स्मार्ट मीटर अभी तक पूरे नहीं लग सके हैं और ये काम अभी चल रहा है। लेकिन अब सरकार ने सारी हदें पार करते हुए भारी-भरकम घाटा दिखाकर बिजली विभाग को निजी हाथों में सौंपने के लिए हरी झंडी दे चुकी है। शुरू में योगी सरकार 75 जिलों में से दक्षिणांचल और पूर्वांचल के 42 जिलों की बिजली आपूर्ति का जिम्मा प्राइवेट कंपनियों को देगी और उसके बाद में बाकी जिलों में यही तरीका अपनाया जाएगा।
हैरत की बात ये है कि महंगी बिजली देने, जुर्माना वसूलने और 24 घंटे बिजली न देने के बावजूद पिछले 24 सालों में पावर कॉरपोरेशन और उसकी कंपनियों का बिजली घाटा 1.10 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। सिर्फ पिछले साल का ये घाटा 46 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है। सरकार का कहना है कि अगर उसने बिजली विभाग को प्राइवेट हाथों में नहीं दिया, तो उसे वित्त वर्ष 2025-26 में 50 से 55 हजार करोड़ रुपए और वित्त वर्ष 2026-27 में 60 से 65 हजार करोड़ रुपए बिजली कंपनियों को और देने पड़ सकते हैं। और सरकार से बड़ी मदद मिलने के बावजूद बिजली कंपनियों का दावा है कि उन पर 70 हजार करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ चुका है। सरकार के बिजली विभागों को निजी हाथों में देने के फैसले के बाद ही डिस्कॉम के बोर्ड आॅफ डायरेक्टर्स ने पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन को नए सिरे से कंपनी बनाने और बिजली विभाग को प्राइवेट हाथों में देने के लिए निर्णय लेने का अधिकार दे दिया है। लेकिन इससे बिजली विभाग के कर्मचारियों में रोष है और वो हड़ताल पर जाने को मजबूर हो चुके हैं।
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने सरकार के इस निर्णय को चुनौती देने के लिए उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया है कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131(4) और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार, डिस्कॉम स्वतंत्र है और पावर कॉरपोरेशन को उन पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। लेकिन इससे पहले ही पावर कॉरपोरेशन ने डिस्कॉम के बोर्ड आॅफ डायरेक्टर्स से बिजली विभाग को प्राइवेट करने या दूसरे फैसले लेने का अधिकार हासिल कर लिया था। इसलिए सरकार के बिजली विभाग को प्राइवेट हाथों में देने में अब बिजली कर्मचारी और लोग ही एकजुट होकर रोक सकते हैं, नहीं तो अगले साल तक सभी उपभोक्ताओं को महंगी बिजली मिलेगी और बिजली कर्मचारी प्राइवेट कंपनियों के लिए मामूली तनख्वाह पर काम करते नजर आएंगे। सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल को लेकर भी उत्तर प्रदेश सरकार पाबंदी की अधिसूचना जारी कर चुकी है, जिसमें साफ कहा गया है कि उत्तर प्रदेश अत्यावश्यक सेवाओं का अनुरक्षण अधिनियम, 1996 के तहत अगले 6 महीने तक कोई भी हड़ताल निषिद्ध रहेगी। ऐसे में न सिर्फ बिजली उपभोक्ताओं के लिए, बल्कि बिजली विभाग में कार्यरत सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए भी उत्तर प्रदेश सरकार ऐसे प्रबंध कर रही है, जिससे महंगी बिजली मनमानी सप्लाई पर तो मिलेगी ही, बल्कि बिजली विभाग में सरकारी नौकरियों का भी रास्ता बंद होगा, और जो सरकारी बिजली कर्मचारी अभी हैं, जिनका रिटायरमेंट अगले साल के खत्म होने से पहले नहीं है, हो सकता है कि उन्हें घर बैठना पड़े या उन्हें निजी कंपनियों के साथ बहुत ही कम तनख्वाह में काम करना पड़े और उपभोक्ताओं के तो कहने ही क्या।