- अस्पताल पहुंचाने को घंटों के इंतजार के बाद भी नहीं आयी एम्बुलेंस
- ई-रिक्शा में डालकर पूरे शहर में भटके, लेकिन नहीं मिल सका कहीं भी इलाज
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: लिसाड़ीगेट के उमर नगर के मोइनुद्दीन की मौत ने सरकार के गरीबों को मुफ्त इलाज के दावों की पोल खोलकर रख दी। यह इस बुजुर्ग की नहीं बल्कि सरकारी दावों की मौत है। मोइनु कई दिन से बीमार थे।
परिवार की माली हालत भी अच्छी नहीं थी, लेकिन घर वालों ने कहीं सुना था कि सरकार की ओर से गरीबों के लिए मुफ्त इलाज का इंतजाम किया गया है। उनके लिए मुफ्त एम्बुलेंस की सहूलियत सरकार की ओर से दी गयी है।
इस उम्मीद में कि किसी से नंबर लेकर एम्बुलेंस के लिए कॉल किया। बताए गए नंबर पर लगातार घंटी जाती रही, लेकिन किसी ने रिसीव नहीं किया।
अचानक हालत बिगड़ने लगी तो परिवार वाले ई रिक्शा में डालकर इस अस्पताल से उस अस्पताल घंटों भटकते रहे। सरकारी अस्पताल पहुंचे तो मेडिकल का रास्ता दिखा दिया।
यूं ही भटकते रहे, आखिर सांसों ने जिस्म का साथ छोड़ दिया। इलाज की तलाश में मोइनु को लेकर घर निकले परिजन लौटे तो उनके साथ मोइनु की लाश थी।
मोहल्ले वालों का कहना है कि यह ठीक है कि वो बीमार था, लेकिन हालत ऐसी भी नहीं थी कि मौत हो जाती। यदि वक्त पर एम्बुलेंस पहुंच गयी होती और इलाज मिल गया होता तो लाश नहीं कुछ दिन बाद ठीक होकर मोइनु ही घर आता। लेकिन इस मौत ने सरकार के गरीबों को मुफ्त इलाज के दावों की पोल खोल कर रख दी।
स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर एक से बढ़कर एक दावे किए जाते हैं। अफसरों के नाम पर स्वास्थ्य विभाग में पूरी फौज मौजूद है। अस्पतालों के नाम पर जिला अस्पताल व मेडिकल के अलावा तमाम सीएचसी व पीएचसी मौजूद हैं। उसमें हमारे आपके टेक्स के पैसे पहलने वाले अफसरों और कर्मचारियों की पूरी फौज है।
पब्लिक के टैक्स के पैसे से पगार पाने वाले तमाम अफसर व सिस्टम मोइनु की मौत के लिए जिम्मेदार है। गरीब है अखबारों में खबर छपेगी और बात खत्म।
कोई नहीं पूछेगा घंटों कॉल किए जाने के बाद भी एम्बुलेंस क्यों नहीं पहुंची। इलाज नहीं मौत मिली इसके लिए किस की जिम्मेदारी है। यह इकलौती मौत नहीं है जिसने सरकारी दावों की पोल खोलकर रख दी है। जनाब जिला अस्पताल या मेडिकल में चक्कर काटिए ऐसे कई मामले कवरेज को मिलेंगे।
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