नागरिक पत्रकारिता की भूमिका व नए मीडिया तक उसकी पहुंच ने अब सारी सीमाओं को तोड़ दिया है। कभी-कभी तो यहां तक देखने में आता है कि किसी खबर को सर्वप्रथम नागरिक पत्रकारिता के द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से सामने लाया गया और बाद में मुख्यधारा के मीडिया में वो खबर प्रमुखता से छा गई। नागरिक पत्रकारिता एक ओर जहां समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निवर्हन है वहीं दूसरी ओर मीडिया में समाज की सहभागिता बढ़ाने हेतु एक तरीका व अवसर भी है। हां फेक न्यूज, प्लांटेड न्यूज और सत्ता संस्थानों द्वारा प्रचारित पूर्वाग्रही सामग्री से सावधान रहने की विशेष आवश्यकता है। पत्रकारिता जो ऐसे लोगों द्वारा संचालित की जाती है, जो पेशेवर पत्रकार नहीं हैं, लेकिन वेबसाइटों, ब्लॉगों और सोशल मीडिया का उपयोग करके जानकारी का प्रसार करते हैं।
पूर्व में समाचार पत्रों में सीमित हस्तक्षेप या वैकल्पिक माध्यमों यथा छोटे छोटे बुलेटिन, पोस्टर, पैंफलेट या स्थानीय लघु अखबारों में अपनी बात प्रकाशित करते थे। नागरिक पत्रकार प्रशिक्षित पेशेवरों की तरह विश्वसनीय हैं या नहीं, इस पर निरंतर चिंताओं के बावजूद नागरिक पत्रकारिता ने अपने विश्वव्यापी प्रभाव का विस्तार किया है। आपदा क्षेत्रों में नागरिकों ने दृश्य से तत्काल टेक्स्ट और दृश्य रिपोर्टिंग प्रदान की है।
राजनीतिक उथल-पुथल से प्रभावित देशों में और अक्सर उन देशों में जहां सरकार द्वारा प्रिंट और प्रसारण मीडिया को नियंत्रित किया जाता है, लोगों ने हॉट स्पॉट के बारे में जानकारी साझा करने के लिए कई तरह के तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल किया है। इन घटनाक्रमों की पृष्ठभूमि में घूमना इस बात पर बहस थी कि क्या नागरिक पत्रकारिता शब्द अपने आप में सटीक है।
दक्षिण कोरिया में शब्द और अभ्यास दोनों घनीभूत हुए , जहां आॅनलाइन उद्यमी ओह योन-हो ने 2000 में घोषित किया कि ‘प्रत्येक नागरिक एक रिपोर्टर है’। ओह और तीन दक्षिण कोरियाई सहयोगियों ने 2000 में एक आॅनलाइन दैनिक समाचार पत्र शुरू किया, क्योंकि उन्होंने कहा, वे पारंपरिक दक्षिण कोरियाई प्रेस से असंतुष्ट थे।
पेशेवरों को काम पर रखने और अखबार छापने का खर्च वहन करने में असमर्थ। उन्होंने शुरुआत कीओहमीन्यूज, एक वेब साइट जो अपनी सामग्री उत्पन्न करने के लिए स्वयंसेवकों का उपयोग करती है।
साइट की सातवीं वर्षगांठ पर एक भाषण में, ओह, फर्म के अध्यक्ष और सीईओ, ने कहा कि समाचार साइट एक देश में 727 नागरिक पत्रकारों के साथ शुरू हुई और 2007 तक 100 देशों से रिपोर्टिंग करने वाले 50,000 योगदानकर्ताओं तक पहुंच गई। तब से इंटरनेट ने हजारों समाचार साइटों और लाखों ब्लॉगर्स को जन्म दिया है।
पारंपरिक समाचार मीडिया, पाठकों और दर्शकों की घटती संख्या से जूझते हुए, अपने स्वयं के पत्रकारों द्वारा अपनी स्वयं की वेब साइटों और ब्लॉगों के साथ मैदान में कूद पड़े, और कई समाचार पत्रों ने पाठकों को अपनी वेब साइटों पर सामुदायिक समाचार योगदान करने के लिए आमंत्रित किया।
कुछ समूहों ने अपनी ‘हाइपरलोकल’ आॅनलाइन समाचार साइटों को अपने पड़ोस में होने वाली घटनाओं या रुचि के विशेष विषयों को कवर करने के लिए शुरू किया जो कि बड़े मीडिया संगठनों द्वारा रिपोर्ट नहीं किए गए थे।
21वीं सदी की राजनीतिक घटनाओं में नागरिक पत्रकारिता ने प्रमुख भूमिका निभाई है। वेबसाइटजून 2009 में ईरानी राष्ट्रपति चुनाव के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान सूचना के प्रसार के लिए ट्विटर ने खुद को एक उभरते हुए आउटलेट के रूप में स्थापित किया।
सरकारी सेंसरशिप को दरकिनार करने के लिए गैर-पारंपरिक मीडिया की क्षमता। मिस्र में, 2011 के विद्रोह के दौरान राष्ट्रपति हसनी मुबारक की सरकार का विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं ने अक्सर सोशल नेटवर्किंग वेब साइट फेसबुक पर समूह बनाकर खुद को संगठित किया।
सिटिजन जर्नलिज्म शब्द जिसे हम नागरिक पत्रकारिता भी कहते हैं, आज आम आदमी की आवाज बन गया है। यह समाज के प्रति अपने कर्तव्य को समझते हुए, संबंधित विषय को कंटेंट के माध्यम से तकनीक का सहारा लेते हुए अपने लक्षित समूह तक पहुंचाने का एक जज्बा है।
वर्तमान में नागरिक पत्रकारिता कोई नया शब्द नहीं रह गया है, बल्कि आज इस विधा से न जाने कितने ही लोग अपनी सशक्त भूमिका को निभाते हुए दिखाई देते हैं। आज नागरिक पत्रकारिता के माध्यम से किए गए प्रयासों से अनेक सकारात्मक परिवर्तन अपने आस-पास होते हुए दिखाई भी देते हैं। जैसे-जैसे नागरिक पत्रकारिता की व्याप्ति ब़ढ़ रही है, वैसे-वैसे इसके तौर-तरीकों में भी बदलाव दिखाई देने लगा है।
आज शब्दों के साथ-साथ वर्चुअल मीडिया, न्यू मीडिया, क्रॉस मीडिया का महत्व भी बढ़ गया है। इसलिए नागरिक पत्रकारिता के लिए अब कलम के साथ-साथ मोबाइल की ताकत, न्यू मीडिया की तकनीक व पहुंच को समझना भी आवश्यक हो गया है।
प्रश्न यह पूछा जाता है कि हम नागरिक पत्रकार क्यों बनें? तो हम देख रहे हैं जिसे मुख्य धारा का मीडिया कहा जाता है वह न जाने कितने दबावों के असर में काम करता है। बाजार, व्यवसाय, पूंजीवादी हित आदि दबाव प्रत्यक्ष हैं। इसलिए उपरोक्त प्रश्न के सही चिंतन व विश्लेषण से ही सार्थक नागरिक पत्रकार बनने की दिशा तय होती है।
तभी नागरिक पत्रकार किसी मीडिया संस्थान से न जुड़े होने के बावजूद भी निष्पक्ष भाव से समाचार सामग्री का सृजन कर पाएगा। नागरिक पत्रकारिता के कारण ही कौन से समाचार प्रकाशित एवं प्रसारित होंगे, ये निर्णय अब केवल कुछ मुठ्ठी भर लोगों का नहीं रह गया है।
सही मायने में नागरिक पत्रकारिता आम आदमी की अभिव्यक्ति है। आम आदमी से जुड़ी ऐसी अनेक कहानियां हैं जो परिर्वतन की वाहक बनती हैं। व्यवस्था का ध्यान आकर्षित करना हो या व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करना हो, नागरिक पत्रकारिता ने धीरे-धीरे एक प्रभावी जरिया बनकर उभरना प्रारंभ किया था।
नागरिक पत्रकारिता जहां पर एक अवसर व अपनी भूमिका को निभाने का एक सशक्त माध्यम दिखाई देता है, वहीं इसमें अनके प्रकार की चुनौतियाँ भी हैं। नागरिक पत्रकारिता की सही से समझ व अवधारणा को लेकर भी कभी-कभी विरोधाभास दिखाई देता है। समाज में इसका स्पष्ट व एक जैसे स्वरूप का निर्धारण भी अभी दिखाई नहीं देता।
नागरिक पत्रकारिता के नाम पर किसी के जीवन के व्यक्तिगत पहलू जिसका समाज से सीधा-सीधा कोई सरोकार नहीं है एवं सनसनीखेज खबरों को सोशल मीडिया के माध्यम से दिखा देना भी एक बड़ी चुनौती है। झूठ और उन्माद फैलाना, अंधविश्वास का प्रसार करना, अपराध को मंडित करना, चकाचौंध के प्रति सशक्त आकर्षण ऐसी चुनौतियां हैं जिनसे लक्ष्यभ्रष्ट होने की स्थिति बनती है।
इससे समाज में अनैतिकता की वृद्धि होती है। इन सब चुनौतियों के बावजूद भी नागरिक पत्रकारिता में असीम संभावना है। वर्तमान तकनीक के माध्यम से पत्रकारिता के मूल्यों को ध्यान में रखते हुए, उपलब्ध माध्यमों का प्रयोग कर व्यक्ति नागरिक पत्रकारिता के रूप में अपने को स्थापित कर सकता है।
नागरिक पत्रकारिता से शुरू होकर मुख्य मीडिया तक का सफर आज असंभव नहीं रह गया है। बस आवश्यकता है तो नागरिक पत्रकारिता के प्रति ठीक समझ विकसित करने की।
इसके लिए उसे नागरिक पत्रकारिता के प्रकार, माध्यम एवं अभ्यास के तरीकों को अपनाना होगा। उसे यह समझना होगा कि नागरिक पत्रकारिता लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का एक मंच है। सूचना के अधिकार को किस प्रकार नागरिक पत्रकारिता का पर्याय बनाया जा सकता है यह भी उसको सीखना होगा।
भाषा की शुद्धता और उसका स्तर बनाए रखना भी इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नागरिक पत्रकारिता करते हुए किस प्रकार के विषयों का चयन किया जाए और उन्हें अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए छायाचित्र, वीडियो व ग्राफिक्स के महत्व को भी उसे समझाना होगा।
कंज्यूमर स्नैपशॉट सर्वे के अनुसार कोरोना लॉकडाउन से पहले एक यूजर सोशल मीडिया पर औसतन रोज 150 मिनट बिताता था। वहीं 75 प्रतिशत यूजर्स ने जब फेसबुक, वॉट्सऐप औप ट्विटर पर ज्यादा टाइम खर्च करना शुरू किया तो यह डेली 150 मिनट से बढ़कर 280 मिनट हो गया।
वर्तमान में भारत में तकरीबन 450 मिलियन सोशल मीडिया यूजर हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि सोशल मीडिया के सही उपयोग द्वारा सिटिजन जर्नलिज्म कैसे समाज व आम आदमी की आवाज बन सकता है। सिटिजन जर्नलिज्म की संभावना व भूमिका आने वाले समय और अधिक बढ़ने वाली है। ह्यकभी भी युद्ध नहीं जीता जाता, बल्कि छोटे-छोटे मोर्चे जीतने के बाद ही युद्ध जीता जाता हैह्ण।
इसी प्रकार सिटिजन जर्नलिज्म के रूप में आज छोटे-छोटे मोर्चो पर हमें अपनी भूमिका तय करनी होगी। उसके लिए जिस प्रकार के प्रशिक्षण, योग्यता व समझ की आवश्यकता है उसे सीखना होगा। तभी सिटिजन जर्नलिज्म के माध्यम से समाज में हम जिस प्रकार के सकारात्मक परिवर्तन को लाना चाहते है, वो ला पायेंगे।
यानि भरोसे से कहा जा सकता है कि इस राह का भविष्य उज्ज्वल है। हां सावधानी अपेक्षित है क्योंकि हर चीज के दो पहलू होते हैं अच्छे और बुरे। अच्छाई के सामने बुराई और सही के सामने गलत बातें दुगने वेग से आगे बढ़ती हैं। यह समझना आवश्यक है।
What’s your Reaction?
+1
+1
1
+1
+1
+1
+1
+1