गांधीजी जो कहते थे, उसे स्वयं भी करते थे, यह अटूट सत्य था। कस्तूरबा गांधी बीमार रहती थीं। एक दिन गांधीजी ने उन्हें सलाह दी कि तुम नमक खाना छोड़ दो, तो अच्छी हो जाओगी। कस्तूरबा ने कहा-नमक के बिना भोजन कैसे किया जाएगा। गांधीजी बोले-नमक छोड़कर देखो तो सही।
कस्तूरबा ने प्रतिवाद करते हुए कहा-पहले आप ही छोड़कर देखिए न? उसी दिन से गांधीजी ने नमक का प्रयोग करना छोड़ दिया। गांधीजी अपनी बात के स्वयं प्रेरक बन गए। उन्होंने कहा था कि वैसे भी मनुष्यों को जितनी भी बीमारियां हैं, उसमें उसके खान-पान का दोष ही अधिक है।
गांधीजी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 9 अगस्त 1942 को गांधीजी के गिरफ्तार हो जाने पर बा ने शिवाजी पार्क (बंबई) में, जहां स्वयं गांधीजी भाषण देने वाले थे, सभा में भाषण करने का निश्चय किया, किंतु पार्क के द्वार पर ही अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। दो दिन बाद वे पूना के आगा खां महल में भेज दी गर्इं, जहां गांधीजी पहले से गिरफ्तार कर भेजे जा चुके थे।
उस समय वे अस्वस्थ थीं। 15 अगस्त को जब यकायक गांधीजी के निजी सचिव महादेव देसाई ने महाप्रयाण किया तो वे बार-बार यही कहती रहीं महादेव क्यों गया, मैं क्यों नहीं? बाद में महादेव देसाई का चितास्थान उनके लिए शंकर-महादेव का मंदिर सा बन गया। वे नित्य वहां जातीं, समाधि की प्रदक्षिणा कर उसे नमस्कार करतीं।
वे उस पर दीप भी जलवातीं। यह उनके लिए सिर्फ दीया नहीं था, बल्कि इसमें वह आने वाली आजादी की लौ भी देख रही थीं। कस्तूरबा बा की दिली तमन्ना देश को आजाद देखने की थी, पर उनका गिरफ्तारी के बाद उनका जो स्वास्थ्य बिगड़ा, वह फिर अंतत: उन्हें मौत की तरफ ले गया और 22 फरवरी 1944 को वे सदा के लिए सो गई।