Monday, July 14, 2025
- Advertisement -

हाशिमपुरा: जहां सिसकियां अब भी ‘सिसकती’ हैं

  • आज ही के दिन हुई थी घटना, इंसानियत हो गई थी शर्मसार

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: शहर के दामन पर वैसे तो दंगों के न जाने कितने ही बदनुमा दाग लग चुके हैं, लेकिन 1987 के दंगों के दौरान हाशिमपुरा काण्ड ने पूरी इंसानियत को ही झकझोर कर रखा दिया था। 22 मई 1987 को जुमा अलविदा का दिन था। शाम की इफ्तारी की तैयारियां चल रही थीं कि अचानक पीएसी, सेना पुलिस, महिला पुलिस और साथ में लोकल पुलिस दनदनाती हुई मोहल्ले में घुस गई। इसके बाद हैवानियत का जो नंगा नाच हुआ उसकी टीस आज तक हाशिमपुरा के लोगों के दिलों में गुबार की तरह बाकी है।

यहां के बुजुर्ग वैसे तो अब इस अध्याय पर बात करना मुनासिब नहीं समझते, कहते हैं कि अब यह चैप्टर क्लोज हो चुका है। हांलाकि वो यह दलील जरूर देते हैं कि उनके बच्चों के साथ जो कुछ हुआ उसकी टीस तो हमेशा उनके दिलों में बाकी रहेगी लेकिन साथ ही साथ वो यह भी कहते हैं कि मरने के बाद ऊपर वाले की अदालत में वो इस मुकदमे की खुद पैरवी करेंगे और खुदा से इंसाफ मांगेगे। घटना में अपनों को खो चुके लोगों की आंखों के आंसू अब सूख चुके हैं। यह लोग बताते हैं कि उस दिन फोर्स ने मोहल्ले के सभी घरों के मर्दों को घरों से बाहर निकाल कर सड़क पर बैठाया

और फिर उनमें से जवान लड़कों को छांट छांट कर पीएसी ने ट्रकों में भरा और फिर मुरादनगर स्थित गंग नहर के पास हैवानियत का खेल खेला। एडवोकेट रियासत अली बताते हैं कि हाशिमपुरा कांड में गाजियाबाद स्थित पीएसी की 41वीं वाहिनी के 19 पुलिसकर्मियों को दोषी पाया गया था और इन सभी के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की गई थी। वैसे अब तक इन 19 पीएसी के जवानों में से कई की स्वभाविक मौत हो चुकी है। इनमें कुश कुमार, ओम प्रकाश और प्लाटून कमांडर सुरेन्द्र पाल भी शामिल हैं।

ये थी केस की हिस्ट्री

इस घटना की रिपोर्ट बाबुद्दीन व मुजीबुर्रहमान ने दर्ज कराई थी। इन दोनों के अलावा तीन अन्य जुल्फिकार नासिर, उस्मान व नईम का नाम भी घटना के चश्मदीद ों में शामिल है। घटना की दो एफआईआर दर्ज हैं। पहली थाना लिंक रोड गाजियाबाद में (एफआईआर नम्बर 141/87) व दूसरी थाना मुरादनगर, गाजियाबाद में (एफआईआर नम्बर 147/87)। उक्त एफआईआर गाजियाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी नसीम अहमद के आदेश पर दर्ज हुई थीं। इसके बाद 1994 में सीबीसीआईडी ने चार्जशीट लगाई।1994 से लेकर 2000 तक सेशन कोर्ट गाजियाबाद में मामला चला तथा मुल्जिमों के 23 बार वारंट हुए लेकिन उन पर कोई अमल नहीं हुआ।

इसके बाद पूर्व पार्षद यामीन (अख्तर मस्जिद, मेरठ) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की कि इस केस में पारदर्शिता बनी रहे लिहाजा इसे यूपी से बाहर की अदालत में स्थानांतरित किया जाए। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते मामला तीस हजारी कोर्ट दिल्ली के सुपुर्द कर दिया गया। मामले के शीघ्र निपटारे के लिए इसे फिर फास्ट ट्रैक कोर्ट को सौंपा गया। हाशिमपुरा काण्ड में सरकार की ओर से सतीश टम्टा को सरकारी वकील नियुक्त किया गया था। जबकि दूसरी ओर से लक्ष्मण दास मुआल व एक अन्य वकील मामले में पैरवी कर रहे थे। इसके अलावा मेरठ के जुनैद यामीन एडवोकेट भी सरकारी वकील की मदद को थे।

आज भी सुनसान है ‘अंधी वाली हवेली’

हाशिमपुरा की तंग गलियों में अंधी वाली हवेली में दंगों से पहले भरे पूरे परिवार रहा करते थे। आज भी यह हवेली एक प्रकार से सुनसान है। हाशिमपुरा कांड में अपनों को गंवा चुके कई लोगों की निगाहें आज भी हवेली के दरवाजे पर गढ़ी रहती हैं। बताते चलें कि इस हवेली के कुल 9 लोगों को पुलिस उस दिन उठा कर ले गई थी जो आज तक घर नहीं लौटे। इस हवेली में रहने वाले अब्दुल हमीद, अब्दुल गफ्फार, जमीर अहमद, नसीम, सलीम, नईम व कय्यूम के परिजन आज तक उनका इंतजार करते नहीं थकते।

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Muzaffarnagar News: नाबार्ड के 44वें स्थापना दिवस पर छपार में गूंजा ‘एक पेड़ माँ के नाम’ का नारा

जनवाणी संवाददाता |मुजफ्फरनगर: राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक...

Saharanpur News: सहारनपुर में सावन के पहले सोमवार को शिवालयों में उमड़ी भक्तों की भीड़

जनवाणी संवाददाता |सहारनपुर: सावन के पहले सोमवार को सहारनपुर...
spot_imgspot_img