Tuesday, January 7, 2025
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क्या भटक गए हैं योगी और साध्वी?

Sanskar 7


SHALINI KAUSHIKसाधु (पुरुष), साध्वी (महिला)), जिसे साधु भी कहा जाता है, एक धार्मिक तपस्वी, भिक्षु या हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में कोई भी पवित्र व्यक्ति है, जिसने सांसारिक जीवन को त्याग दिया है। उन्हें कभी-कभी वैकल्पिक रूप से योगी, संन्यासी या वैरागी के रूप में जाना जाता है। संस्कृत शब्द साधु (अच्छे आदमी) और साध्वी (अच्छी महिला) उन त्यागियों को संदर्भित करते हैं, जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए समाज के किनारों से अलग जीवन जीने का विकल्प चुना है। साधु का अर्थ है जो ‘साधना’ का अभ्यास करता है या आध्यात्मिक अनुशासन के मार्ग का उत्सुकता से अनुसरण करता है। हालांकि अधिकांश साधु योगी हैं, सभी योगी साधु नहीं हैं। एक साधु का जीवन पूरी तरह से मोक्ष (मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति), चौथा और अंतिम आश्रम ( जीवन का चरण), ध्यान और ब्रह्म के चिंतन के माध्यम से प्राप्त करने के लिए समर्पित है। साधु अक्सर साधारण कपड़े पहनते हैं, जैसे हिंदू धर्म में भगवा रंग के कपड़े और जैन धर्म में सफेद या कुछ भी नहीं, जो उनके संन्यास (सांसारिक संपत्ति का त्याग) का प्रतीक है। हिंदू धर्म और जैन धर्म में एक महिला भिक्षुणी को साध्वी कहा जाता है और कुछ ग्रंथों में आर्यिका के रूप में।

साधु बनना लाखों लोगों द्वारा अनुसरण किया जाने वाला मार्ग है। एक पिता और तीर्थयात्री होने के नाते, यह एक हिंदू के जीवन में चौथा चरण माना जाता है, पढ़ाई के बाद, लेकिन अधिकांश के लिए यह एक व्यावहारिक विकल्प नहीं है। एक व्यक्ति को साधु बनने के लिए वैराग्य की आवश्यकता होती है। वैराग्य का अर्थ है दुनिया को छोड़कर कुछ हासिल करने की इच्छा (पारिवारिक, सामाजिक और सांसारिक लगाव को तोड़ना)।

साधू परंपरा के भीतर कई संप्रदाय और उप-संप्रदाय हैं, जो विभिन्न वंशों और दार्शनिक स्कूलों और परंपराओं को दर्शाते हैं, जिन्हें अक्सर ‘संप्रदाय’ कहा जाता है। प्रत्येक संप्रदाय में कई ‘आदेश’ होते हैं, जिन्हें परंपरा कहा जाता है आदेश के संस्थापक के वंश के आधार पर। प्रत्येक संप्रदाय और परम्परा में कई मठवासी और युद्ध अखाड़े हो सकते हैं। साधु बनने की प्रक्रिया और अनुष्ठान संप्रदाय के अनुसार भिन्न होते हैं; लगभग सभी संप्रदायों में, एक साधु को एक गुरु द्वारा दीक्षा दी जाती है, जो दीक्षा को एक नया नाम, साथ ही एक मंत्र, (या पवित्र ध्वनि या वाक्यांश) प्रदान करता है, जो आमतौर पर केवल साधु और गुरु के लिए जाना जाता है और हो सकता है ध्यान अभ्यास के भाग के रूप में दीक्षा द्वारा दोहराया गया।

कई संप्रदायों में महिला साधु (साध्वी) मौजूद हैं। कई मामलों में त्याग का जीवन लेने वाली महिलाएं विधवा होती हैं और इस प्रकार की साध्वी अक्सर तपस्वी यौगिकों में एकांत जीवन जीती हैं। साध्वी को कभी-कभी कुछ लोगों द्वारा देवी या देवी के रूपों के रूप में माना जाता है और उन्हें सम्मानित किया जाता है। ऐसी कई करिश्माई साध्वी हैं जो समकालीन भारत में धार्मिक शिक्षकों के रूप में प्रसिद्धि के लिए बढ़ी हैं, जैसे आनंदमयी मां, शारदा देवी, माता अमृतानंदमयी और करुणामयी। ये होता है साधू और साध्वी का जीवन, जो सांसारिक मोह-माया से दूर, एकांत में भगवद्-भक्ति में लीन रहते हैं और कभी कभी धर्म के, शास्त्रों के प्रवचन द्वारा हम अज्ञानी मनुष्यों का मार्गदर्शन करते हैं। किंतु आज के साधू-संत और साध्वी एक नई राह का ही अनुसरण करते हुए नजर आ रहे हैं और वह राह है घोर प्रपंचों से, कुटिलताओं से भरी राजनीति की राह।

आज साधू-संन्यासी मंत्री बन रहे हैं, मुख्यमंत्री बन रहे हैं। जबकि एक संन्यासी वह होता है जो अपनी देह को सांसारिक रूप से त्यागकर वैराग्य को ग्रहण कर चुका है और एक साधु को एक गुरु द्वारा दीक्षा दी जाती है, जो दीक्षा को एक नया नाम, साथ ही एक मंत्र, (या पवित्र ध्वनि या वाक्यांश) प्रदान करता है, जो आमतौर पर केवल साधु और गुरु के लिए जाना जाता है। अर्थात अब वैराग्य ग्रहण करने पर साधू हो या साध्वी का कोई सांसारिक व्यक्तित्व रह ही नहीं गया है फिर वह राजनीतिक पद को कैसे ग्रहण कर सकता है?

ऐसे ही, देवी, धार्मिक शिक्षिका का दर्जा पाने वाली साध्वी वैराग्य एकांत जीवन जीने के लिए और मोक्ष की प्राप्ति की राह सुगम बनाने हेतु भगवान की भक्ति में लीन रहने के लिए संन्यास का मार्ग अपनाती हैं। जैन साधू-साध्वी तो यात्रा के लिए वाहन का प्रयोग भी अनुचित समझते हैं। आज की बदलती जा रही राजनीतिक परिस्थितियों में साध्वी द्वारा मोबाइल फोन का और उस पर ट्विटर जैसी आलोचनात्मक एप्प का इस्तेमाल कर विरोधी दलों के नेताओं पर अशोभनीय टिप्पणियों का प्रयोग क्या हिंदू धर्म का पतन काल नहीं कहा जा सकता है? जबकि ये सभी जानते हैं कि ज्ञान का सही दिशा में इस्तेमाल ही देश और समाज को उन्नति की राह पर पहुंचा सकता है और हिंदू धर्म सदैव से ही ज्ञान की राह पर चलने वाला रहा है और निश्चित रूप से आगे भी विश्वास है कि यह भटकाव खत्म होगा और हिंदू धर्म ज्ञान की ही राह का अनुसरण करेगा और सनातन धर्म की अपनी छवि को बरकरार रखेगा।


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