हमारे देश में रबी अर्थात शीत ऋतु में मुख्य रूप से गेहूं, जौ, राई-सरसों, अलसी,चना, मटर,मसूर, गन्ना आदि फसलों की खेती की जाती है। फसलोत्पादन को प्रभावित करने वाले वातावरणीय कारकों यथा वर्षा जल, तापक्रम, आद्रता, प्रकाश आदि के अलावा जैविक कारकों जैसे कीट, रोग व खरपतवार प्रकोप से फसल उपज का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है। इन सभी फसल नाशकों में से खरपतवारों द्वारा फसल को सर्वाधिक नुकसान होता है।
खरपतवारों के प्रकोप से दलहनी फसलों में 75 से 90 प्रतिशत, तिलहन फसलों में 25 से 35 प्रतिशत तथा गेहूं व जौ आदि खाद्यान्न फसलों में 10 से 60 प्रतिशत तक पैदावार घट जाती है। सही समय पर खरपतवार नियंत्रित कर लिया जावे तो हमारे खाद्यान्न के लगभग एक तिहाई हिस्से को नष्ट होने से बचा कर देश की खाद्यान्न सुरक्षा को अधिक मजबूत किया जा सकता है। खेत में खरपतवार फसल के साथ पोषक तत्वों, हवा, पानी और प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते है जिससे फसल उपज की मात्रा एवं गुणवत्ता में गिरावट हो जाती है।
प्रभावशाली ढ़ंग से खरपतवार नियंत्रण के लिए हमें खरपतवारों का ज्ञान होना अति आवश्यक है। रबी फसलों के साथ उगने वाले प्रमुख खरपतवारों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
बथुआ (चिनोपोडियम एल्बम), कृष्णनील (एनागेलिस आरवेंसिस), जंगली पालक (रूमेक्स डेन्टाटस), हिरनखुरी(कन्वावुलस आर्वेंसिस), सफेद सेंजी (मेलीलोटस एल्बा), पीली सेंजी (मेलीलोटस इंडिका) जंगली रिजका (मेडीकागो डेन्टीकुलाटा), अकरा-अकरी (विसिया प्रजाति), जंगली गाजर (फ्यूमेरिया पारविफ़्लोरा), चटरी-मटरी (लेथाइरस अफाका),सत्यानाशी (आरजीमोन मेक्सिकाना) आदि।
संकरी पत्तीवाले खरपतवार
गेहूंसा या गुल्ली डण्डा (फेलेरिस माइनर), जंगली जई (एवीना फतुआ), दूबघास(साइनोडान डेक्टीलोन)आदि।
मोथा कुल के खरपतवार
मौथ (साइप्रस प्रजाति ) आदि।