बीती 26 फरवरी को दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री की मनीष सिसोदिया को 2021-22 आबकारी नीति में कथित भ्रष्टाचार के संबंध में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किया है और इसके बाद सिसोदिया ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। सिसोदिया के पास शिक्षा, वित्त, योजना, भूमि औरभवन, सेवाएं, पर्यटन, कला-संस्कृति और भाषा, जागरूकता, श्रम और रोजगार, लोक निर्माण विभाग के अलावा स्वास्थ्य, उद्योग, बिजली, गृह, शहरी विकास, सिंचाईऔर बाढ़ नियंत्रण व जल विभाग जैसे कुल 18 मंत्रालय थे और जेल में पहले से ही बंद दिल्ली सरकार के अहम मंत्री सत्येंद्र जैन के ऊर्जा, जल, स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी आ गए थे। सिसोदिया सभी विभागों की 12-12 तक बैठकें तक लेते रहे थे। संबंधित विभाग के अधिकारी व कर्मचारी अब चर्चा कर रहे हैं कि सिसोदिया के तरीके से अन्य किसी मंत्री के लिए सरकार का कामकाज चला पाना आसान नहीं है।
मनीष सिसोदिया के इस्तीफे के बाद अब उनके प्रमुख विभाग वित्त, पीडब्ल्यूडी, गृह औरजल की जिम्मेदारी कैलाश गहलोत को सौंपी गई हैं। दूसरी तरफ राजकुमार आनंद को शिक्षा, और स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है। गहलोत के पास पहले से परिवहन मंत्रालय की जिम्मेदारी है। मंत्रियों की नियुक्ति होने तक गहलोत वित्त, योजना, लोक निर्माण विभाग, बिजली, गृह, शहरी विकास, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण तथा जल विभाग का अतिरिक्त प्रभार संभालेंगे। और दिल्ली सरकार के लिए एक लिहाज से कठिन इसलिए भी माना जा रहा है, क्योंकि मौजूदा समय में सरकार आगामी वित्त वर्ष के लिए बजट की तैयारी कर रही है।
ऐसे में वित्त विभाग की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। सिसोदिया सरकार में शुरू से ही वित्त मंत्री रहे हैं और आप सरकार केआने के बाद से सरकार का बजट तीस हजार करोड़ से पचहतर करोड़ तक जा पहुंचा है, लेकिन यह सब कैसे आगे जारी रह पाएगा, यह प्रश्न केजरीवाल को बहुत विचलित कर रहा है। सिसोदिया मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बाद इकलौते ऐसे मंत्री हैं, जिनका कद अन्य सभी मंत्रियों से ऊपर माना जाता है। फरवरी 2020 में केजरीवाल द्वारा विभाग छोड़ने के बाद सिसोदिया ही मुख्यमंत्री के पोर्टफोलियो वाले विभाग देख रहे थे।
अब थोडा और गंभीरता से सोचें तो दिल्ली सरकार के मुख्य सिपलेसहार मनीष सिसोदिया एकतौर पर पूरी सरकार को संचालित कर रहे थे और जैसा भी सही सरकार को चला रहे थे, लेकिन अब केजरीवाल के सामने कई तरह की चुनौतियां आड़े आ रही हैं। क्या नए मंत्री उतनी जल्दी चीजों को टेकओवर कर लेंगे, जितनी बेहतर तरीके से संचालित हो रही थी। स्पष्ट है कि किसी भी नए मंत्री को काम समझने में समय लगेगा। सिसोदिया को लंबे समयसे काम करते हुए अनुभव हो चुका था। दिल्ली सरकार के जिन सभी विभागों को वह संचालित कर रहे थे, उन सब में उनको महारत हासिल हो चुकी थी। जैसा कि सिसोदिया के पास दिल्ली सरकार के अहम विभाग थे, जिनमें सक्रियता हमेशा अधिक बनी रहती थी। शिक्षा विभाग की बात करें तो वह सभी विभागों में इसको समय देते थे। सरकार ने इस विभाग के दम पर अपना बहुत प्रचार-प्रसार किया।
दिल्ली सरकार ने वर्ष 2017-18 में दिल्ली के स्कूलों 10,000 कक्षाओं का निर्माण कराया था। दिल्ली सरकार ने अपने बजट का एक चौथाई यानि 25 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा के क्षेत्र में निवेश किया था। इसके अलावा सरकार ने प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों से स्कूलों की स्वच्छता, रखरखाव और मरम्मत आदि के बोझ को कम करने के लिए सभी स्कूलों में एक प्रबंधक की नियुक्ति भी की थी। इस प्रकार के अधिकांश प्रबंधक सेवानिवृत्त सैनिक हैं। लेकिन आश्चर्यकी बात यह है कि जहां एक ओर मनीष सिसोदिया को शिक्षा जैसे अहम विभाग दिए वहीं दूसरी ओर शराब से संबंधित विभाग देने पर भी कई केजरीवाल पर कई सवाल खडेÞ हो रहे हैं। दिल्ली में जब भी शिक्षा को लेकर कोई बहस चली उसके केंद्र में केजरीवाल न होकर मनीष सिसोदिया ही रहते थे। आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल के अलावा ऐसा कोई दूसरा नेता नहीं है, जो मनीष से ज्यादा लोकप्रिय हो।
जिस शिक्षा नीति को अरविंद केजरीवाल मॉडल कहकर प्रचारित किया जाता रहा, उसे लोग मनीष मॉडल समझने लगे। ऐसे में इस तरह की चर्चाएं भी जन्म लेने लगी हैं कि अब मनीष ब्रांड केजरीवाल के लिए खतरा बन सकते हैं। अधिकांश फोरम पर मनीष का शिरकत करना और उनके काम की चर्चा होना उनके बढ़ते कद का प्रतीक कहा जा सकता है। अरविंद केजरीवाल का पिछला इतिहास प्रमाण है कि उन्होंने अपने सबसे अधिक लोकप्रिय नेताओं को उस समय पार्टी से बाहर किया, जब वे बेहद लोकप्रिय नेता रहे। इसी वजह से चर्चा हो रही है कि कहीं भीतरखाने मनीष को निपटाने को निपटाने में केजरीवाल का हाथ तो नहीं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी देख रहे मनीष को शराब नीति की जिम्मेदारी क्यों? शराब नीति पर मनीष की बदनामी लगभग तय थी। शराब को लेकर हमेशा विवाद की आशंका रहती है, लेकिन इसके बावजूद सिसोदिया को इसकी जिम्मेदारी से अलग नहीं किया गया। क्या इसके पीछे मनीष को हाशिए पर लाने की कोई मंशा तो नहीं थी। दिल्ली के विभागों में रिश्वत बाजी के किस्से हमेशा से प्रचलित रहे हैं, जिन पर अभी पूर्ण रुप से शिकंजा नहीं कसा गया, लेकिन पहले से फिर कुछ सुधार दिखा था, जिसके लिए अधिकारियों पर सरकार की निगाह टेढ़ी है। लेकिन अब आगे की स्थिति तो नए मंत्रियों की कार्यशैली व ईमानदारी पर टिकी है।