भारतीय जनता पार्टी के लोग हमेशा ही पिछली गैर भाजपाई सरकारों पर अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों का तुष्टिकरण करने का आरोप लगाते रहे हैं। और इसी दुष्प्रचार की बदौलत देश के बहुसंख्य हिन्दू समाज को अपने पक्ष में गोलबंद करने का काम भाजपा दशकों से करती रही है। मिसाल के तौर यदि यूपीए सरकार के दौर में हज पर जाने वाले यात्रियों को सब्सिडी दी जाती थी तो उसे यह तुष्टिकरण बताते थे। कोई राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री यदि ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की अजमेर शरीफ स्थित दरगाह अथवा किसी अन्य पीर फकीर की दरगाह पर सद्भावना के तहत अपनी ओर से मजार पर चढ़ाने के लिये चादर भेजता था तो वह भी इनकी परिभाषा के अनुसार तुष्टीकरण था। यहां तक कि रमजान के दिनों में यदि कहीं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या कोई मंत्री रोजा इफ़्तार का आयोजन करता था तो उसे भी तुष्टीकरण ही बताया जाता था।
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तुष्टिकरण के आरोपों की इसी नाव पर सवार होकर भाजपा ने 2014 में केंद्र की सत्ता संभाली। बहुसंख्यकवाद की राजनीति कर देश के बहुसंख्यक हिंदुओं को यह जताने का प्रयास किया कि मोदी सरकार हिंदू हितों का सम्मान व ध्यान रखने वाली एक ऐसी सरकार है जिसमें अब ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ की कोई गुंजाइश नहीं है। केंद्र की मोदी सरकार का ऐसा ही एक निर्णय था जनवरी 2018 में मुसलमानों को हज यात्रा के लिए दी जाने वाली सब्सिडी खत्म करने का फैसला लिया जाना। हालांकि सरकार द्वारा हज के अतिरिक्त दूसरी धार्मिक यात्राओं जैसे कैलाश मानसरोवर व ननकाना साहिब गुरुद्वारा की यात्रा के लिए भी सरकार की ओर से सब्सिडी दी जाती रही है।
जबकि मुसलमानों की ओर से किसी भी नेता, दल अथवा संगठन ने हज यात्रा के लिए सब्सिडी दिए जाने की मांग कभी नहीं की। बल्कि ठीक इसके विपरीत मुसलमानों का एक बड़ा तबका, अनेक मुस्लिम धार्मिक संस्थाएं तथा मुस्लिम हितों की बात करने वाले असदुद्दीन ओवैसी जैसे सांसद भी हज सब्सिडी को खत्म करने की मांग करते रहे। मोदी सरकार ने 2018 में ही हज सब्सिडी समाप्त कर इसे मुस्लिम अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण समाप्त करने के अपने एजेंडे के रूप में दर्शाया। उस समय सरकार की ओर से यह भी बताया गया कि हज सब्सिडी समाप्त करने के सरकार के फैसले से 700 करोड़ रुपये बचेंगे और ये पैसे अल्पसंख्यकों की शिक्षा विशेषकर मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर खर्च किए जाएंगे।
इसी तरह देश में रमजान महीने में नेताओं द्वारा इफ़्तार पार्टी दिए जाने की काफी पुरानी परंपरा है। देश में हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई भाईचारे तहत यह सिलसिला प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बंटवारे के कुछ समय बाद ही शुरू किया था। उस समय कांग्रेस के तत्कालीन पार्टी कार्यालय 7 जंतर मंतर पर पंडित नेहरू इफ़्तार पार्टी दिया करते थे। हालांकि 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद इफ़्तार पार्टी का यह सिलसिला कुछ वर्षों तक थम गया था।
परंतु 1971 के भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश युद्ध में पाकिस्तान की ऐतिहासिक पराजय के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1972 में दिल्ली में एक बहुत बड़ा ईद मिलन समारोह आयोजित किया था। देश में सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने की गरज से पूरे राष्ट्रपति भवन व प्रधानमंत्री निवास से लेकर देश के अनेक केंद्रीय मंत्री,मुख्यमंत्री के आवास व अनेक पार्टी मुख्यालयों पर इफ़्तार पार्टियां हुआ करती थीं।
परंतु 25 जुलाई, 2017 को जब रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली उसी समय उन्होंने यह निर्णय लिया कि राष्ट्रपति भवन एक सार्वजनिक इमारत है, यहां सरकार या कर दाताओं के पैसों से किसी भी धार्मिक त्योहार का आयोजन नहीं होगा। और राष्ट्रपति के इस फैसले के साथ ही राष्ट्रपति भवन में स्वतंत्रता के बाद से चली आ रही इफ़्तार पार्टी की परंपरा समाप्त हो गई।
परंतु पिछली सरकारों पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाने वाली भाजपा सरकार तथा भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा मुसलमानों के संदर्भ में किए जाने वाले कई फैसले आश्चर्यचकित करने वाले हैं। इसमें स्कूल ड्रॉप-आउट बच्चों को ब्रिज कोर्स करवा कर मेनस्ट्रीम एजुकेशन में लाया जाना|
मदरसों को मुख्यधारा में लाने के लिए वहां हिंदी, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान की शिक्षा दिया जाना, अल्पसंख्यक वर्ग के पांच करोड़ छात्रों को अगले पांच साल में छात्रवृत्तियां दिये जाने की घोषणा करना तथा अल्पसंख्यकों के शैक्षिक संस्थानों में आधारभूत संरचना को मजबूत किए जाने जैसी घोषणाएं महत्वपूर्ण हैं। इनके अतिरिक्त सामुदायिक भवन इत्यादि खोलने के लिए शत प्रतिशत फंडिंग की व्यवस्था किए जाने की भी सरकार की योजना है। सरकार द्वारा हज के कोटे में भी वृद्धि गई है।
संघ के अधीन संचालित होने वाले संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संरक्षक डॉ इंद्रेश कुमार का मत है कि हम सभी एक साथ तभी तरक़्की कर सकते हैं यदि हम नफरत को दफ़्न कर दें। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि हम सांप्रदायिक सद्भाव को और बढ़ाएं। डॉ इंद्रेश कुमार के अनुसार, इस रमजान से हम एक नई शुरुआत करने जा रहे हैं। इफ्तार पार्टियों का आयोजन करने जा रहे हैं।
परंतु सरकार की मुस्लिम हितकारी योजनाओं और आरएसएस के इफ़्तार पार्टियों के आयोजन से यह सवाल जरूर खड़ा होता है कि जब पिछली सरकारों में यही अथवा इस तरह के निर्णय होते थे तो यही आज के ‘सद्भाव के तथाकथित ध्वजवाहक’ उन फैसलों को मुस्लिम तुष्टिकरण बताते थे? आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि यदि यही काम वह करें तो तुष्टिकरण और ये करें तो सद्भाव?