इन दिनों देश का राजनीतिक माहौल गर्माया हुआ है। आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा की तैयारियां भी जोरों पर हैं। राजनीतिक हलकों में मोदी सरकार की नौ साल की उपलब्धियों के प्रचार पर जोर को इसी के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाया है। संसद के विशेष सत्र (17वीं लोकसभा का 13वां सत्र और राज्यसभा के 261वां सत्र) में पांच बैठकें होंगी। इस विशेष सत्र के एजेंडे के बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है। खैर पक्ष-विपक्ष का एक ही सपना है कि किसी तरह से 2024 में केंद्र की सत्ता हाथ लगे। पिछली दो बार में केंद्र की सत्ता में मोदी सरकार की मजबूती लगातार बढ़ रही है, वही उसके खिलाफ देश में महंगाई, बेरोजगारी और सरकार के विरोधियों की मुखालफत करने वालों पर कार्रवाई के चलते एक माहौल खड़ा हो रहा है।
केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ बन रहे इसी माहौल का फायदा विपक्षी दल अपने गठबंधन इंडिया की एकता के दम पर मिलकर उठाना चाहते हैं और वहीं केंद्र की मोदी सरकार अपने खिलाफ बने इस माहौल के अलावा विपक्ष के सत्ता पाने के अरमानों पर पानी फेर देना चाहती है। इसी सोच के चलते केंद्र की मोदी सरकार विपक्ष के सबसे मजबूत हिस्से पर हर तरह से चोट करना चाहती है।
यही वजह है कि केंद्र की मोदी सरकार सबसे ज्यादा उन्हीं नेताओं पर हमलावर है, जो या तो अपने राज्य में बहुत ताकतवर हैं या फिर बहुत तेजी से जिनकी राजनीतिक ताकत में इजाफा हो रहा है। ऐसे नेताओं पर ईडी, सीबीआई उनके काले कारनामों की फाइलों के जरिए या फिर भ्रष्टाचार के आरोपों के जरिए कार्यवाही करने में जुटी हैं।
दरअसल, केंद्र की मोदी सरकार के पिछले करीब सवा नौ सालों से ऊपर के कार्यकाल में देश भर के विपक्षी और विरोधी नेताओं, पूंजीपतियों के यहां ईडी ने तकरीबन 3 लाख जगहों पर छापेमारी की। आम आदमी पार्टी के नेता और सांसद संजय सिंह ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया था कि केंद्र की मोदी सरकार के पिछले 9 साल के कार्यकाल में ईडी ने 3 लाख छापे मारे, जिनमें महज 0.5 फीसदी मामलों में ही उसे कुछ हासिल हो सका।
राजनीतिक और छापेमारी के मामलों के जानकार कहते हैं कि सीबीआई का भी तकरीबन यही हाल है। वास्तव में ये दोनों संस्थाएं भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने के लिए हैं, लेकिन अब इनका काम भ्रष्टाचार रोकने की जगह सरकार विरोधी ताकतों, बल्कि सरकार का सत्ता रथ रोकने वाली ताकतों को डरा-धमकाकर या तो भाजपा के साथ लाना है या उन्हें कमजोर करना है।
बहरहाल, जानकार बता रहे हैं कि ये दोनों संस्थाएं अब और तेजी से काम करेंगी, खास तौर पर ईडी की जांच और गिरफ्तारी 10 सितंबर के बाद से 15 सितंबर के बीच बहुत तेज होने वाली है। हालांकि मेरा ऐसा मानना है कि अभी 10 सितंबर तक देश में किसी विपक्षी या विरोधी नेता के खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी, जिससे मोदी सरकार पर तानाशाही का या फिर बदले की भावना से काम का आरोप लगे और दुनिया भर के नेताओं की नजर में प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार की छवि साफ हो। क्योंकि दिल्ली में होने जा रहे जी-20 समिट में दुनिया के कई दर्जन देशों के पचासों नेता शामिल होंगे।
संजय कुमार मिश्रा, जिन्हें 15 सितंबर को अपना पद छोड़ना पड़ेगा। यहां मैं छोड़ना पड़ेगा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि 1984 बैच के भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी संजय कुमार मिश्रा को रिटायरमेंट के बाद अक्टूबर 2018 में तीन महीने के लिए प्रवर्तन निदेशालय के अंतरिम निदेशक के रूप में मोदी सरकार ने नियुक्त किया था। फिर उनका कार्यकाल बढ़ाकर उन्हें ईडी का निदेशक यानि प्रमुख बना दिया और धीरे-धीरे उनका तीन बार कार्यकाल बढ़ाया।
मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और संजय कुमार मिश्रा को 15 सितंबर तक ही अपनी सेवाएं देने का मौका दिया। आरोप लगते रहे हैं कि संजय कुमार मिश्रा प्रधानमंत्री मोदी के बहुत खास अधिकारियों में से एक हैं और उन्होंने अपने ईडी प्रमुख के तकरीबन इन पांच सालों के कार्यकाल में केंद्र की मोदी सरकार के मन मुताबिक काम किया है।
जाहिर है कि अब अपने ईडी प्रमुख के कार्यकाल के इन आखिरी दिनों में संजय कुमार मिश्रा सरकार के प्रति अपनी पूरी वफादारी दिखाकर ईडी प्रमुख के पद से विदा होना चाहेंगे। ताकि उन्हें उनकी वफादारी का बेहतर से बेहतर इनाम मिल सके।
ईडी प्रमुख संजय कुमार मिश्रा जी-20 समिट के बाद 11 सितंबर से 15 सितंबर तक कुछ बड़ी कार्यवाहियां करने जा रहे हैं। कुछ विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी भी हो सकती है। जिन नेताओं को गिरफ्तार किया जा सकता है, उनमें दो तो मुख्यमंत्री हैं। जानकारों का दावा कहां तक सही साबित होगा, यह तो नहीं पता, लेकिन जिन दो मुख्यमंत्रियों की तरफ जानकार इशारा कर रहे हैं, उनके खिलाफ लंबे समय से ईडी की कार्रवाई चल रही है और इन दो नेताओं की वजह से उनके राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की दाल गलती नहीं दिख रही है।
मोदी सरकार एक तरफ छोटे-बड़े विपक्ष नेताओं को कमजोर और सीधा करने की कोशिश में लगी है, तो दूसरी तरफ विपक्षी दलों का गठबंधन इंडिया मोदी सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ है। विपक्षी दलों की एक मंच पर एक बैनर तले यह बैठक ऐसे दौर में हो रही है, जब महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी ने वहां की शिवसेना में दोफाड़ करके महा अघाड़ी सरकार को गिराकर अपनी सरकार बनाने के बाद राकांपा को भी तोड़ दिया और पार्टी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार को भी तोड़कर उप मुख्यमंत्री बना दिया।
विपक्षी गठबंधन इंडिया की चुनावी तैयारी से भारतीय जनता पार्टी सकते में है, जिसकी वजह से मोदी सरकार ने रसोई गैस के सिलेंडर पर सीधे दो सौ रुपए कम कर दिए, और अब सुनने में आ रहा है कि सरकार पेट्रोल और डीजल के भाव भी कम करने को मजबूर होगी। हालांकि पिछले 9 सालों में बढ़ी महंगाई के मुकाबले ये राहत कुछ नहीं है और इस राहत को लोग महज चुनावी राहत मानकर चल रहे हैं।
इसलिए इतना सब करते हुए भी अमृतकाल में जी रही मोदी सरकार विपक्षी एकता और जनता के विरोध से चैन से नहीं बैठ पा रही है और पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों और उसके बाद 2024 के लोकसभा चुनावों में बहुमत से जीतने के लिए युद्ध स्तर पर हर संभव कोशिश कर रही है।
कुछ जानकार तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि चुनाव जीतने के लिए मोदी सरकार समय से पहले लोकसभा चुनाव करा सकती है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी, खास तौर पर प्रधानमंत्री मोदी किसी भी हाल में सत्ता से बाहर नहीं होना चाहते। जानकारों का कहना है कि जब मोदी मैजिक बहुत हद तक खत्म हो चुका है, तब भी प्रधानमंत्री मोदी का कॉन्फिडेंस लेबल कैसे बरकरार है, यह सवाल बहुत गहरे से सोचने की आज जरूरत है।