कोरोना महामारी के खिलाफ जिस धैर्य और हिम्मत के साथ पूरे देश ने लड़ाई लड़ी, वो स्वागतयोग्य है। स्वदेशी टीके ने भी चिकित्सा जगत में नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं। देश में टीकाकरण की संख्या 110 करोड़ के करीब पहुंच गई है। भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में इतने कम समय में ये रिकार्ड कायम हुआ है, जिसकी तारीफ पूरी दुनिया में हो रही है। कोरोना से लड़ाई में टीके को सबसे अधिक कारगर हथियार माना गया है। लेकिन इन सारी उपलब्धियों में चिंता बढ़ाने वाली बात यह है कि अभी भी आबादी का बड़ा हिस्सा टीके से परहेज कर रहा है। वहीं टीके की एक डोज लगवाने के बाद दूसरी डोज न लगवाने वालों की बड़ी संख्या देश में है। ये हालात तब हैं जब देश में लगभी एक सौ 9 करोड़ से अधिक लोगों को टीके की पहली डोज लगा चुका है, कुछ विसंगतियां हमारी चिंता बढ़ाने वाली साबित हो रही हैं जो कहीं न कहीं कोरोना के खिलाफ जीती जा रही लड़ाई को कमजोर कर सकती हैं।
भारत में 16 जनवरी से कोरोना का टीका लगना शुरू हुआ था। पहले चरण में फ्रंटलाइन वर्कर को लगा और दूसरे चरण में 60 साल से ऊपर और 45 साल वालों को जिनको दूसरी बीमारी है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 टीके की पहली खुराक ले चुके 11 करोड़ से अधिक लोगों ने दो खुराकों के बीच निर्धारित अंतराल समाप्त होने के बाद भी दूसरी खुराक नहीं लगवाई है। आंकड़े बताते हैं कि छह सप्ताह से अधिक समय से 3.92 करोड़ से अधिक लाभार्थियों ने दूसरी खुराक नहीं ली है।
इसी तरह करीब 1.57 करोड़ लोगों ने चार से छह सप्ताह देरी से और 1.5 करोड़ से अधिक ने दो से चार सप्ताह देरी से कोविशील्ड या कोवैक्सीन की अपनी दूसरी खुराक नहीं ली है। जानकारों का कहना है कि कई कारणों के कारण आम लोग वैक्सीन लगवाने से बच रहे हैं। इनमें खास वजह दिहाड़ी पर काम करने वाले सोचते हैं कि वैक्सीन लेने के बाद उनके काम पर असर पड़ेगा।
कई लोग ऐसे भी जिन्हें लगता है कि वैक्सीन की एक खुराक ले ली है और ये काफी है। बुजुर्ग और दिव्यांग जन भी वैक्सीन के लिए सेंटर पर जाने में परहेज कर रहे हैं। ऐसे सभी लोगों को वैक्सीन जब उनके घर के दरवाजे पर ही मिलेगी ताकि वैक्सीनेशन कवरेज तेजी से हो सकेगा।
आईसीएमआर के पूर्व महानिदेशक एनके गांगुली ने के अनुसार ये बहुत फायदेमंद होगा. ये यूनिक अभियान है। डोर टू डोर वैक्सीनेशन नहीं हो पाता है क्योंकि लॉजिस्टिक्स काफी डिफिकल्ट है इसका इस अभियान में जिसमें जोर दिया जाएगा कि जिन्होंने वैक्सीन की एक भी डोज नहीं ली है उन्हें डोज दिया जाए और जिन्होंने दूसरी डोज नहीं ली है, उन्हें दूसरी डोज दी जाए। भारत में 10 करोड़ से ज्यादा ऐसे लोग हैं जिन्होंने समय निकल जाने के बाद भी दूसरी खुराक नहीं ली है।
ऐसे समय में जब देश में कोविशील्ड व कोवैक्सीन के अलावा स्पूतनिक-वी वैक्सीन उपलब्ध हैं और उनका भारत में ही उत्पादन हो रहा है, टीके लगाने में उदासीनता का कारण समझ से परे है। देश में पर्याप्त मात्रा में टीके उपलब्ध हैं और देश अब जरूरतमंद देशों को निर्यात का भी मन बना चुका है।
ऐसे में जब पहले टीके की खुराक ले चुके लोग दूसरा टीका लेने में कोताही बरत रहे हैं तो अधिकारियों को भी ऐसे लोगों को टीका लगाने के लिये तैयार करने के लिये अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। यह चिंता की बात है कि पिछले दिनों इस गंभीर समस्या के बाबत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री द्वारा आहूत बैठक में कुछ उत्तरी राज्यों ने भाग नहीं लिया।
भले ही हमने सौ करोड़ टीकाकरण का मनोवैज्ञानिक लक्ष्य छू लिया हो लेकिन अभी तीसरी लहर का खतरा टला नहीं है। ऐसे में कोई ऐसी चूक नहीं होनी चाहिए जो कालांतर आत्मघाती साबित हो।
भारत जैसे बड़ी आबादी और सीमित संसाधनों वाले देश में यह गर्व की बात है कि हम देश की 76 फीसदी आबादी को टीके की एक खुराक और बत्तीस फीसदी लोगों को दोनों खुराक दे चुके हैं। विगत में कई वैज्ञानिक अध्ययन इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि टीके की एक खुराक की तुलना में दो खुराक कोविड-19 के खिलाफ अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षा प्रदान करती है।
ऐसे में यह विश्वसनीय निष्कर्ष स्वयं में प्रमाण है और लोगों को दोनों डोज लेने के लिये प्रेरित करने के लिये पर्याप्त प्रयास होने चाहिए। यदि इसके बावजूद लोग दुराग्रह-अज्ञानता वश दूसरा टीका लगाने आगे नहीं आते उन्हें प्रेरित करना चाहिए कि वे जितना जल्दी हो सके, दूसरा टीका लगा लें।
वैक्सीन से जुड़ी रिपोर्ट के मुताबिक टीके के दूसरे डोज के दो हफ्ते बाद ही संक्रमण का खतरा पूरी तरह कम होता है। इसके लिए केंद्र व राज्यों को मल्टी-मीडिया साधनों और जागरूकता अभियानों के जरिये लोगों को इस मुहिम में शामिल करने को प्रेरित किया जाना चाहिए।
दरअसल, कुछ लोगों की लापरवाही सुरक्षा श्रृंखला को तोड़ सकती है और बड़ी समस्या की वजह बन सकती है। टीकाकरण से छूटे से नागरिकों को अपनी व दूसरों की जान की परवाह करते हुए यथाशीघ्र टीकाकरण करवाना चाहिए।