हमारे समाज के संतुलित विकास के लिए यह बेहद आवश्यक है कि मानव का अच्छे ढंग से सर्वांगीण विकास हो, जिसके लिए प्रत्येक व्यक्ति का स्वस्थ होना बेहद आवश्यक है। भुखमरी से प्रभावित देशों की ताजा सूची आई है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 के आंकड़ों में भारत छह पायदान नीचे खिसककर 121 देशों में से 107वें स्थान पर पहुंच गया। भारत का स्कोर 29.1 है। वैश्विक सूची में भारत दक्षिण एशियाई देशों में से सिर्फ युद्धग्रस्त देश अफगानिस्तान से बेहतर है। पाकिस्तान को इसी इंडेक्स में 26.1 का स्कोर मिला है, उसकी रैकिंग 99 है। बांग्लादेश का स्कोर 19.6 और रैंकिंग 84 है तो नेपाल का स्कोर 19.1 और रैंकिंग 81। वहीं म्यांमार को 15.6 का स्कोर दिया गया है। श्रीलंका का स्कोर 13.6 है। भुखमरी को मापने का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों में से एक ‘2030 तक शून्य भुखमरी’ का शिखर हासिल करना है। अभी जो ग्लोबल हंगर इंडेक्स आया है, उसे दो यूरोपियन एनजीओ कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेलथूंगरहिल्फ ने मिलकर जारी किया है। रिपोर्ट तैयार करने के लिए डेटा संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के अलावा यूनिसेफ, फूड एंड एग्रीकल्चर आॅर्गनाइजेशन (एफएओ) समेत कई एजेंसियों से लिया गया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) तैयार करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के तीन पैमाने हैं-खाने की कमी, बच्चों के पोषण स्तर में कमी और बाल मृत्यु-दर। इन्होंने चार पैमानों पर देशों को रैंक किया है। ये हैं- अंडरनरिशमेंट, चाइल्ड स्टंटिंग, चाइल्ड वेस्टिंग और चाइल्ड मॉर्टलिटी यानी अल्पपोषण, बाल बौनापन, बाल अपव्यय और बाल मृत्यु दर। चार संकेतकों के आधार पर रिपोर्ट तैयार हुई है। कुपोषण, जो अपर्याप्त भोजन की उपलब्धता को दर्शाता है। इसकी गणना कुपोषित आबादी की गणना से निकाली जाती है। इसमें भी उन लोगों की गणना खासतौर पर शामिल है, जिनकी कैलोरी सेवन की मात्रा अपर्याप्त है। चाइल्ड वेस्टिंग यानी भयंकर कुपोषण का पैमाना। इसे पांच साल से कम उम्र के ऐसे बच्चों की गणना करके निकाला जाता है, जिनका वजन उनकी लंबाई के सापेक्ष कम होता है। चाइल्ड स्टंटिंग का पैमाना लगभग स्थायी कुपोषण को दर्शाता है। इसकी गणना पांच साल से कम उम्र के बच्चों से की जाती है, जिनका वजन उनकी उम्र के लिहाज से कम होता है। बाल मृत्युदर वास्तव में अपर्याप्त पोषण और अस्वस्थ वातावरण को भी सामने लाती है। इसकी गणना पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर से की जाती है। आंशिक तौर पर ये पोषण की कमी से होने वाली मौतों का मिश्रित आंकड़ा होता है।
2030 सतत विकास एजेंडा के लक्ष्य 2 का उद्देश्य भूख और हर तरह के कुपोषण को मिटाना और खेती की उत्पादकता दोगुनी करना है। सबके लिए पौष्टिक आहार लगातार सुलभ कराने के लिए टिकाऊ आहार उत्पादन और खेती की विधियों की आवाश्यकता होगी। दुनिया के सभी देश एसडीजी हासिल करने की दिशा में काम करें यह जरूरी है ताकि पूरा विश्व इन लक्ष्यों को हासिल कर सके। दुनिया भर की आबादी का 17.7 प्रतिशत हिस्सा भारत में रहता है, यानी अगर भारत और भारतीयों के जीवन का सतत विकास नहीं होता है, तब तक दुनिया भर में यह लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा, और भारत के अच्छे प्रदर्शन के लिए जरूरी है कि सरकार हर क्षेत्र में बेहतर कार्य करे। भुखमरी दूर करने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि हर किसी के पास स्वस्थ जीवन जीने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में अच्छी गुणवत्ता वाला भोजन उपलब्ध हो।
दक्षिण एशिया पर भुखमरी का बोझ अब भी सबसे अधिक है। 28.1 करोड़ अल्पपोषित लोगों में भारत की 40 प्रतिशत आबादी शामिल है। हम अपना आहार कैसे उगाते और खाते हैं इस सबका भूख के स्तर पर गहरा असर पड़ता है, पर ये बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। अगर सही तरह से काम हो तो खेती और वन विश्व की आबादी के लिए आमदनी के अच्छे स्रोत, ग्रामीण विकास के संचालक और जलवायु परिवर्तन से हमारे रक्षक हो सकते हैं। खेती दुनिया में रोजगार देने वाला अकेला सबसे बड़ा क्षेत्र है, दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी और भारत में कुल श्रमशक्ति के 54.6 प्रतिशत हिस्से को खेती में रोजगार मिला है।
भारत के परिपेक्ष्य में बात करें तो नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुछ राज्यों को छोड़कर लगभग सभी राज्यों में भुखमरी की स्थिति अत्यंत गंभीर है। भुखमरी से निजात पाने के लिए भारत द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन अधिकांश राज्यों का प्रदर्शन आशानुरूप नहीं है। मात्र पांच ऐसे राज्य हैं, जो भूख की समस्या से निपटने के लिए सबसे अच्छा काम कर रहे हैं। ये पाँच राज्य हैं-पंजाब, केरल, गोवा, मिजोरम और नगालैंड। वहीं झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मेघालय तथा राजस्थान में यह समस्या लगातार बनी हुई है। भूख की समस्या से निजात पाने में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश,उत्तराखंड, हरियाणा, तमिलनाडु और कर्नाटक समेत कई राज्यों का प्रदर्शन ठीक-ठाक है। भुखमरी खत्म करने में राज्य सरकारें विफल रही हैं। इस विफलता का एक प्रमुख कारण राज्यों और देश की आबादी को माना जा रहा है। अब कोविड-19 महामारी के बाद भुखमरी की समस्या और भी भीषण बन गई है। सौभाग्य से हमारे पास अन्न के पहाड़ मौजूद हैं, जिनका तीव्र और विवेकपूर्ण इस्तेमाल इस संकट को बड़ी हद तक सुलझा सकता है। लेकिन इसके वितरण की चुनौती को हल करना पड़ेगा। नहीं तो भारत की एक बड़ी आबादी भूख का सामना नहीं कर पाएगी।