Sunday, August 3, 2025
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भारत ने खींच दी नई लकीर

Samvad 52


OMKAR CHAUDHARYकराची से सूचना आ रही है कि अमेरिकी तट रक्षक बल के दो जहाज छह से नौ अक्तूबर तक वहां रहे हैं। जहाजों का वहां पहुंचना एक और संकेत है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच रिश्ते फिर से मजबूत हो रहे हैं। अमेरिकी नौसेना की सेंट्रल कमांड की ओर से बयान जारी कर इन जहाजों के पाकिस्तान पहुंचने की पुष्टि भी की गई है। ये जहाज ऐसे समय पड़ौसी देश में पहुंचे हैं, जब पाक सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा हाल ही में अमेरिकी यात्रा से लौटे हैं और वहां उन्हें गार्ड आफ आर्नर से नवाजा गया है। मध्य पूर्व में इक्कीस देश आते हैं, जहां अमेरिका का पांचवां बेड़ा तैनात है। अरब की खाड़ी, ओमान की खाड़ी, लाल सागर और हिंद महासागर का एक हिस्सा मध्य पूर्व में आता है। यह पच्चीस लाख स्क्वायर मील तक फैला हुआ है। स्वेज नहर, होरमुज और जलडमरूमध्य के साथ यमन और बाब अल मंडेब के जलडमरूमध्य जल मार्ग इसी क्षेत्र में पड़ते हैं। इस लिहाज से यह बहुत अहम क्षेत्र माना जाता है और वहां अमेरिकी बेड़े की उपस्थिति के खास मायने हैं। भारत न केवल दक्षिण चीन सागर, प्रशांत और हिंद क्षेत्र पर करीबी नजर रखता है बल्कि मध्य पूर्व की गतिविधियों को भी नजर अंदाज नहीं करता है। कराची में अमेरिकी जहाजों की उपस्थिति एक अहम घटना मानी जा रही है।

यह घटना इस कारण और भी अहम मानी जा रही है क्योंकि हाल में भारत ने अपनी विदेश नीति में जो नई लकीर खींची है, उससे न केवल यूरोपीय देश अपितु अमेरिका भी बौखलाया हुआ है। वह कुछ ऐसे बयान दे रहा है और कदम ले रहा है, जिन्हें कूटनीति के हिसाब से भारत के लिए कड़े संदेश भेजने के तौर पर देखा जा रहा है। सितंबर में अमेरिका की ओर से पाकिस्तान को एफ-16 के रखरखाव के नाम पर 450 मिलियन डालर के पैकेज का ऐलान किया गया था। बाइडन प्रशासन की मानें तो यह पैकेज काउंटर टेररिज्म आपरेशंस के लिए बहुत जरूरी था। भारत की ओर से इस अमेरिकी तर्क का न केवल विरोध किया गया बल्कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यहां तक कह दिया कि अमेरिका किसे बेवकूफ बना रहा है। क्या किसी को नहीं पता कि वह क्या कर रहा है और क्यों कर रहा है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान में तैनात अमेरिकी राजदूत डोनाल्ड ब्लोम ने हाल ही में पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर के लिए आजाद कश्मीर का प्रयोग किया था। सात अक्तूबर को जब वह पीओके के दौरे पर गए तो भारत इस पर कड़ा विरोध दर्ज कराया।

सवाल है कि अमेरिका ने इधर कुछ महीनों में ऐसे काम करने क्यों शुरू कर दिए हैं, जो भारत को असहज करते हों अथवा हमारे आस-पड़ौसियों के साथ-साथ दुनिया को ऐसे संकेत देते हों कि अमेरिका भारत से नाराज है। इसे समझने के लिए हमें वैश्विक घटनाओं पर भारत के रुख में आई स्पष्टता, बेबाकी और तटस्थता को समझना होगा। विदेश मंत्री के हाल के बयानों को देखना होगा । रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ में आए प्रस्तावों पर भारत के रुख को समझना होगा। भारत ने बिल्कुल साफ कर दिया कि वह इस या उस के साथ आंख मूंदकर खड़ा होने को तैयार नहीं है। राष्ट्र हित, वैश्विक स्थिरता और शांति उसके लिए अहम है। इनकी अनदेखी कर न वह अमेरिकी प्रस्तावों का समर्थन करेगा और न रूस को ब्लैंक चेक देगा। प्रधानमंत्री यदि एससीओ सम्मिट में ब्लादिमीर पुतिन से दो टूक कहते हैं कि यह दौर युद्ध का नहीं है और समस्याओं के समाधान के लिए वार्ता ही एकमात्र रास्ता है तो वह रूस को नुकसान पहुंचाने के लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा लाए गए प्रस्तावों का विरोध भी करता है । भारत पश्चिम की उन सलाहों और दबावों के आगे भी झुकने को तैयार नहीं है कि रूस से तेल खरीदना बंद दें क्योंकि इससे उसकी आर्थिक मदद हो रही है।

विदेश मंत्री एस जयशंकर अभी आस्ट्रेलिया में थे। मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि लंबा समय गुजरा है, जब अमेरिका और पश्चिमी देशों ने भारत को उसकी जरूरत के हथियार नहीं दिए। ऐसे में रूस ने हमारी जरूरतों को समझते हुए हथियारों की आपूर्ति की। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के बजाय अमेरिका तब तानाशाह देशों को हर तरह के हथियार उपलब्ध करवाता रहा। रूस के साथ भारत के दीर्घकालिक संबंध हैं, जो कि हमारे हित में हैं। बिना नाम लिए उन्होंने शीतकाल की चर्चा करते हुए कहा कि उस समय अमेरिका और पाकिस्तान गहरे दोस्त थे और उसी दौर में पाकिस्तान में सेना प्रमुखों के रूप में तानाशाही शासन रहा। उन्होंने साफ कर दिया कि भारत अपने हितों को ही सर्वोच्च स्थान पर रखेगा। कोई दूसरा देश क्या चाहता है, यह अब उसके लिए मायने नहीं रखता है। गौरतलब बात यह है कि जब भारत रूस से एस-400 प्रणाली खरीदने के लिए समझौता कर रहा था, उस समय तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दे डाली थी कि भारत पर कई तरह की पाबंदियां लगाई जा सकती हैं परंतु भारत अमेरिका की धमकियों में नहीं आया।

हम अगर हाल के विदेश मंत्री के अलग-अलग देशों के दौरों, बयानों आदि का विश्लेषण करें तो पाते हैं कि भारत विदेश नीति के मोर्चे पर पहले की अपेक्षा अधिक स्पष्ट और आक्रामक हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध में हमारी भूमिका बिल्कुल स्पष्ट रही है। प्रधानमंत्री पुतिन को भी नसीहत देते हुए दिखे हैं तो उन्होंने यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की से भी संपर्क बनाए रखा है। अमेरिका और उसके सहयोगी नाटो देशों के रूस के प्रति आक्रामक रुख का भी समर्थन नहीं किया है तो रूस को भी पूरी तरह क्लीन चिट देने से परहेज किया है। हां, रूस के खिलाफ निंदा संबंधी जो प्रस्ताव जिस रूप में लाए गए, भारत ने उनसे भी किनारा किया है। हाल में रूस ने लुहांस्क, डोटस्क, खेरासन और जैपसोरिजिया पर जिस तरह कब्जा किया, भारत ने उसका भी समर्थन नहीं किया है। यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र संघ में उइगर मुसलमानों के मुद्दे पर एक प्रस्ताव के जरिए जब अमेरिका ने चीन को घेरने की कोशिश की तो भारत ने उसमें भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। यानी भारत ने दुनिया के मठाधीशों को साफ कर दिया है कि हम मुद्दों के आधार पर फैसला करेंगे कि हमारा रुख क्या होगा। आजादी के बाद शीतयुद्ध के समय भी हम गुटनिरपेक्ष थे, आज उस पर और दृढ़ता से कायम हैं यह दुनिया को बता रहे हैं। विदेश मंत्री का वो एक कड़ा बयान बदले हुए भारत का परिचय देने के लिए काफी है, जब उन्होंने यूरोप को फटकारते हुए कह दिया था कि भारत ने सोचना बंद कर दिया है कि दुनिया उसके बारे में क्या सोच रही है। लगे हाथ उन्होंने यह नसीहत भी दे डाली थी कि यूरोप यह न समझे कि उसकी समस्या दुनिया की समस्या है और उसका दुनिया के अन्य देशों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है।


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