Monday, December 23, 2024
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अंधकार युग में प्रवेश करती भारतीय राजनीति

Samvad 48

Tanveer Jafree 01गोदी मीडिया, प्रचार तंत्र, झूठ, धर्म, अतिवाद व बहुसंख्यवाद के बल पर देश को चाहे जो भी सपने दिखाये जा रहे हों, परंतु हकीकत तो यही है कि भारतीय राजनीति में मूल्यों व नैतिकता के स्तर का जितना पतन गत 10-15 वर्षों के दौरान होता दिखाई दिया है उतना पहले कभी नहीं हुआ। जो विपक्ष सत्ता संतुलन के लिये जरूरी समझा जाता था जिस विपक्ष को भारतीय सत्ता पक्ष हमेशा मान सम्मान दिया करता था, उसकी आलोचनाओं व संशोधन पर गंभीर हुआ करता था, वही विपक्ष, अब सत्ता को दुश्मन नजर आने लगा है।

गत दस वर्षों में जिस तरह भारतीय जनता पार्टी द्वारा विपक्ष को कमजोर यहां तक कि समाप्त करने के मकसद से जो हथकंडे अपनाए गए हैं वह पूरी दुनिया ने देखा है। चुनाव जीतकर आयी सरकारों को गिराना, विपक्षी नेताओं को तरह तरह के आरोपों में उलझाना,फिर उन्हें दलबदल के बाद आरोप मुक्त कर देना,न केवल कथित भ्रष्टाचारियों को आरोप मुक्त करना बल्कि अपने पाले में लाने के बाद इन्हीं भ्रष्ट विपक्षियों को मंत्री, मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री जैसे पदों से नवाजना, विपक्ष को राष्ट्रविरोधी, अयोग्य, देशद्रोही, साबित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देना, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार व महंगाई जैसे जरूरी मुद्दों के बजाये धर्म, जाति, क्षेत्र, खान पान व जीवन शैली जैसे निजी मुद्दों में लोगों को उलझाये रखना, अल्पसंख्यक विरोध की राजनीति के बहाने बहुसंख्य मतों को साधने की कोशिश करना जैसी अनेक कोशिशें वर्तमान समय में सत्ता पक्ष द्वारा केवल इसी एकमात्र उद्देश्य के लिए की जा रही हैं, ताकि किसी भी सूरत में विपक्ष समाप्त हो जाए और उन्हें सत्ता न छोड़नी पड़े।

सत्ता की लाख कोशिशों के बावजूद वर्तमान समय में विपक्षी राजनीति की धुरी समझा जाने वाला गांधी-नेहरू परिवार आज भी कश्मीर से कन्याकुमारी तक अपनी पहुँच बनाये रखने वाला तथा प्रतिष्ठा व सम्मान हासिल करने वाला राजनैतिक परिवार है। मोतीलाल नेहरू, स्वरूप रानी नेहरू, कमला नेहरू, जवाहरलाल नेहरू की स्वतंत्रता संग्राम में रही अग्रणी भूमिका से लेकर इंदिरा गांधी व राजीव गाँधी की कुर्बानियों तक ने यह साबित कर दिया है कि यह कोई ऐसा राजनैतिक घराना नहीं जिसे नजरअंदाज या फरामोश किया जा सके।

दर्जनों मुकदमों में राहुल को उलझाया गया। पिछली लोकसभा में तो उनकी लोकसभा सदस्यता तक छीन ली गयी। उसके बाद आनन-फानन में उनका सरकारी मकान खाली करवा लिया गया। इस परिवार का केवल मनोबल गिराने के लिए विभिन्न सरकारी एजेंसीज द्वारा सोनिया व राहुल गांधी से घंटों लंबी पूछताछ की गयी, नतीजा शून्य निकला। करोड़ों रुपए राहुल की छवि धूमिल करने व उन्हें ‘पप्पू’ साबित करने में खर्च कर दिए गए। भाजपा का पूरा आई टी सेल इसी बात को दुषप्रचारित करने में आज तक लगा हुआ है कि इस परिवार के पूर्वज मुस्लिम थे। पिछले लोकसभा चुनावों में पूरे देश ने दुष्प्रचार का वह स्तर देखा भी है जबकि भाजपा द्वारा यह प्रचारित किया जा रहा था कि यदि कांग्रेस (इंडिया गठबंधन ) सत्ता में आई तो यह राम मंदिर पर बुलडोजर चलवा देंगे। आपका मंगल सूत्र छीनकर मुसलमानों को दे देंगे। आपकी भैंस खोल ले जाएंगे। नेहरू गांधी परिवार से इनकी ईर्ष्या का कारण ही यही है कि यह परिवार वास्तविक भारतीय तहजीब का प्रतिनिधित्व करता है। ांधीवादी सिद्धांतों पर चलने वाला दल है।

पिछले दिनों लोकसभा में राहुल गांधी को राजनैतिक दुष्चक्र में उलझाने का एक और सुनियोजित षड्यंत्र रचा गया। भाजपा के सांसद पूर्व मंत्री व ‘गोली मारो सालों कसे’ जैसे आपत्तिजनक नारों के आविष्कारक तथा परिवारवादी राजनीति का नमूना अनुराग ठाकुर, सांसद बांसुरी स्वराज और हिमांग जोशी द्वारा पार्लियामेंट स्ट्रीट पुलिस थाने में राहुल गांधी के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता की धारा 109, 115, 125 131 और 351 के तहत प्राथमिकी दर्ज करायी गई है। उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के सांसद मुकेश राजपूत ने संसद में हुई धक्का मुक्की के बाद अपने सिर में चोट लगने का आरोप लगाया। उधर कांग्रेस पक्ष के अनुसार भाजपा सांसदों ने राहुल गांधी व कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ धक्का-मुक्की की।

संसद में यह शर्मनाक दृश्य उस समय देखे गए जब गृह मंत्री अमित शाह ने संविधान निर्माता बाबा साहब भीम राव अंबेडकर के नाम के साथ कुछ ऐसे शब्द बोल दिये जिससे विपक्ष भड़क उठा। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से भाजपा के ही अनेक मंत्री व सांसद तथा कई वरिष्ठ नेता संविधान बदलने और मनु स्मृति को बतौर संविधान लागू करने की संभावना पर सार्वजनिक रूप से चचार्एं करते रहे हैं। परंतु भाजपा ने इन चर्चाओं से पार्टी को अलग तो जरूर रखा परंतु ऐसे नेताओं के विरुद्ध कोई कार्रवाई कतई नहीं की। यहीं से विपक्ष को यह कहने का अवसर मिल गया कि की भाजपा संविधान विरोधी है तथा संविधान को समाप्त करना चाह रही है। तभी से अनेक विपक्षी सांसद सदन में अक्सर संविधान की पुस्तिका हाथों में लेकर उसे प्रदर्शित करते नजर आते हैं।

उधर भाजपा भी इस विषय पर असमंजस में रहती है कि यदि वह संविधान या बाबा साहब के विरुद्ध सार्वजनिक व आधिकारिक तौर पर कुछ कहती बोलती है तो जो थोड़े बहुत दलित वोट उसे मिलते हैं वह भी उसके हाथों से छिटक सकते हैं। कहना गलत नहीं होगा कि सत्ता पर काबिज रहने की इन्हीं आकांक्षाओं के चलते भारतीय राजनीति घोर अंधकार युग में प्रवेश करती दिखाई दे रही है।

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