नैमिषारण्य (जो लखनऊ के पास है) में भीलों में शबर जाति का कृपालु नाम का एक व्यक्ति ‘वृक्ष नमन मंत्रविद्या जानता था। मंत्र उसके अलावा केवल उसके पुत्र को ही पता था। उसकी विद्या में ऐसा प्रभाव था कि खजूर के वृक्ष झुक जाते थे और उनका रस वह एकत्र करता था। महर्षि वेदव्यास जी ने उसको उस विद्या का प्रयोग करते देख लिया। जनसमाज को ज्ञान का प्रकाश प्रदान करने में रत व्यास जी को वह मंत्र जान लेने की जिज्ञासा हुई। व्यास जी ज्यों ही पूछने के लिए उसके नजदीक गए, वैसे ही कृपालु भाग खड़ा हुआ। व्यास जी उसके घर गए तो जैसे ही उसने देखा कि ये मेरे घर की ओर आ रहे हैं, वह घर से भी भाग गया। वह भील किसी भी कीमत पर व्यास जी से भेंट करना नहीं चाहता था। जब बहुत बार व्यास जी निराश होकर लौटे तो उसके बेटे को उन पर दया आ गई। थोड़ी विधि कराके बेटे ने मंत्र दे दिया। रास्ते में व्यास जी ने एक नारियल के वृक्ष को लक्ष्य करके मंत्र जपा। वृक्ष झुक गया। उन्होंने एक नारियल तोड़ लिया। फिर वृक्ष अपनी जगह पर जाए ऐसा मंत्र किया और अपने आश्रम में आ गए। कृपालु भील आया तो बेटे ने सारी हकीकत बता दी। वह नाराज हो गया कि मूर्ख है तू! वेदव्यास जी इतने बड़े महापुरुष हैं कि उनके पास ऋषि-मुनि और अवतारी पुरुष आकर माथा टेकते हैं, भगवान श्रीकृष्ण भी उनका आदर करते हैं। ऐसे व्यास जी को हम मंत्र कैसे दे सकते हैं? अगर हम मंत्र दें और उनमें श्रद्धा नहीं हो-उन्होंने हमारा आदर नहीं किया तो मंत्र सफल नहीं होगा। जो मंत्र और मंत्रदाता का आदर नहीं करता उसको मंत्र फलता नहीं है। भीलपुत्र वेदव्यास जी के पास गया तो व्यास जी उठकर उसको लेने गए और आसन पर बैठाकर उसका सत्कार किया। घर जाकर उसने अपने पिता को सारा वृत्तांत कह सुनाया। पिता ने कहा, सचमुच, व्यास जी महान हैं। ऐसी महानता का परिचय और कोई नहीं दे सकता।