Friday, July 5, 2024
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अमृतवाणी: इंसान का फर्ज

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यह उन दिनों की बात है, जब यातायात के साधन केवल ऊंट और घोड़े हुआ करते थे। एक काफिला मदीना शहर में हजरत मोहम्मद साहब से मिलने पहुंचा। दुआ सलाम और खैरियत मालूम करने के बाद वे लोग आराम से बैठ गए। बातचीत होने लगी। तभी हजरत मोहम्मद साहब को कुछ ख्याल आया तो उन्होंने पूछा, ‘आप लोगों ने अपने ऊंट और घोड़े वगैरह कहां बांधे हैं?’ उनमें से एक बुजुर्ग, जो उस काफिले का सरदार था, बोला, ‘हम उन्हें बाहर ही अल्लाह की हिफाजत में खुला छोड़ आए हैं।’ तब हजरत मोहम्मद साहब ने फरमाया, ‘वे बेजुबान पशु हैं। खुला छोड़ने पर भटक कर इधर-उधर जा सकते हैं, जिससे तुम्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। तुम्हारी यह बात बिलकुल सही है कि सबकी हिफाजत करने वाला अल्लाह ही है, लेकिन हमें सबसे पहले अपना काम सही ढंग से करना चाहिए। अल्लाह ने हमें जो क्षमता और सूझबूझ दी है, उसका हमें इस्तेमाल करना चाहिए। हम अल्लाह पर सब कुछ छोड़ने की बात कहकर दरअसल अपनी जवाबदेही से भागना चाहते हैं और ऐसे लोगों का अल्लाह भी साथ नहीं देता। इसलिए हर एक अक्लमंद इंसान का फर्ज है कि वह पहले अपने काम को सही तरह से अंजाम दे। फिर उसकी सफलता-असफलता अल्लाह पर छोड़ दे। नहीं तो बाद में पछताने के अलावा कुछ नहीं रहता। इसलिए तुम जाओ और अपने घोड़ों व ऊंटों को मजबूती के साथ खूंटे से बांधो। फिर उनकी हिफाजत अल्लाह पर छोड़ दो। काफिले के लोगों ने अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की और अपने पशुओं को बांध आए। यह वाकया हमें बताता है कि अल्लाह भी पहले कर्म करने की बात करता है। जब कर्म ही नहीं किया जाएगा, तो अल्लाह की मदद भी कहां से आएगी। अल्लाह हमेशा ही कर्म करने वालों के साथ होता है।
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