अक्सर किसान अपने खेत में हानिकारक कीटों को लेकर परेशान रहते हैं, लेकिन आप ये नहीं जानते होंगे की मछली, मेंढक, सर्प, छिपकली इत्यादि के द्वारा कीटों को खाया जाता है। ये काफी हद तक कीटों को नियंत्रित करते हैं। आइए जानते हैं कैसे…
-मछली के द्वारा जल में अंडे देने वाले कीटों एवं जल में जीवनचक्र पूरा करने वाले कीटों को भोजन के रूप में लिया जाता है।
-जल में मच्छरों के द्वारा दिए गए अंडे, मछली द्वारा खाने से इनकी संख्या प्रभावित होती है।
-मेंढक द्वारा खेत में कीटों एवं रात्रिकाल में प्रकाश से आकर्षित कीटों को खाया जाता है।
-इसी तरह छिपकली द्वारा भी रात्रि में कीट नियंत्रण किया जाता है।
-सांप के द्वारा छोटे कीट तथा चूहों से रोकथाम की जाती है।
5खेत में दिन के समय गिरगिट द्वारा कीटों को भोजन बनाया जाता है।
-मुर्गी एवं बत्तख को धान के खेत में प्रभावी रूप से टिड्डे का नियंत्रण करते पाया जाता है।
-खेत की जुताई के समय मैना एवं कौए द्वारा कोट अंडा, लार्वा एवं प्यूपा को खाया जाता है।
-चने के खेत में पक्षियों द्वारा फलीबेधक लार्वा का आसानी से नियंत्रण किया जाता है, तिल के शलभ का बडा आकार होने के कारण यह पक्षियों द्वारा पसंद किया जाता है ।
-इसके अलावा भंडारण में रखे अनाज में कीट लग जाने पर इसे मैदान में फैलाया जाता है , जिसे गौरैया द्वारा आसानी से खाया जाता है।
कीटों के प्रबंधन में सावधानियां
कीटों के प्रबंधन में कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी हैं। कई बार किसान अनजाने में अपना नुकसान कर लेते हैं। कीट प्रबंधन में क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, आइए जानते हैं…
-धनिया, गेंदा, सरसों, गाजर, अजवायन जैसे नेक्टर उत्पन्न करने वाले पौधे लगाने चाहिए।
-खेत में पड़े अवशेषों को जलाना नहीं चाहिए।
-जैव कीटनाशी का प्रयोग करना चाहिए।
-परभक्षी कीटों को प्रात: या शाम के समय खेत में छोड़ना चाहिए।
-विपरीत मौसम जैसे-वर्षा, आंधी- तूफान के समय लाभकारी कीटों को खेत में नहीं छोड़ना चाहिए।
-एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए आइस बॉक्स का प्रयोग करना चाहिए।
-फसल विशेष के अनुसार पैरासिटायड उपयोग करना चाहिए।
-परभक्षी कीटों को खेत में छोड़ने से पहले पूर्ण भोजन देना चाहिए , अन्यथा वे आपस में शत्रु होकर एक दूसरे को खाने लगते हैं।
-पेड़ पर परभक्षी कीटों को छोड़ने के बाद जमीन पर गोलाई में पीड़कनाशी डालना चाहिए , जिससे चींटियां ऊपर तक न जा सकें।
-कीट प्रबंधन के लिए ई टीएल का इंतजार नहीं करना चाहिए अन्यथा रासायनिक नियंत्रण अनिवार्य हो जाएगा।
-परभक्षी, परजीवी की अपने पोषक कीट को ढूंढने की उच्च क्षमता होनी चाहिए।
-खेत के आसपास जल स्रोत बनाना चाहिए , जिससे ड्रैगन फ्लाई जैसे कीट को अपरिपक्व अवस्था पूर्ण हो सको।
-जैवनाशी के लिए छिड़काव यंत्र अलग से रखना चाहिए।
-उड़द, मूंग, सोयाबीन के साथ मक्का, अरहर, बाजरा की अन्तर्वर्ती फसल उगानी चाहिए।
-खेत की जुताई दिन में करनी चाहिए , जिससे पक्षी, विविध कीटों का भक्षण कर सकें।
-सिंचाई की सुविधा दिन में होने से खेत में पानी भरने पर कीट बाहर आने पर पक्षी उसे अपना भोजन बना सकते हैं।
-समय-समय पर अपेक्षाकृत सुरक्षित पीड़कनाशी का छिड़काव कर कीट एवं रोग को दूर भगाना चाहिए।
-परभक्षी एवं परजीवी कीट तथा उनके अंडे, लार्वा, प्यूपा इत्यादि को नगे हाथ से नहीं छूना चाहिए।