- मेडिकल के छात्रों को प्रथम वर्ष पढ़ाई जाती है मानव शरीर की संरचना, जरूरत होती है मृत मानव शरीर की
- दान दाताओं पर निर्भर होते मेडिकल के छात्र, लोगों में जागरूकता की जरूरत
- इस समय कुल 11 मृत शरीर है मेडिकल कॉलेज के पास
- इंसान को मरने के बाद अपने शरीर को नष्ट होने से बचाना चाहिए
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: मेडिकल की पढ़ाई का पहला साल उस शिक्षा में जाता है। जिसमें मानव शरीर की संरचना के बारे में जानकारी दी जाती है। ऐसे में छात्रों को मृत मानव शरीर की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन यह शरीर बाजार में नहीं मिलते तो कैसे मेडिकल के छात्रों को पढ़ाई के लिए मानव शरीर मिलता है।
यह बड़ा सवाल है। हालांकि इस समय मेडिकल कॉलेज में 11 मानव शरीर है, लेकिन यह छात्रों की संख्या के हिसाब से कम है। इसको लेकर लोगो को जागरूक होने की जरूरत है कि वह अपनी मृत्यु के बाद शरीर को इन छात्रों के लिए दान दे सके।
100 छात्र है मेडिकल प्रथम वर्ष में
लाला लाजपत रॉय मेडिकल कॉलेज में इस समय 100 छात्र है जो प्रथम वर्ष में है और इनको मानव शरीर की संरचना के बारें में पढ़ाया जा रहा है। अमूमन एक शव पर एक समय पांच से सात छात्रों को पढ़ाया जाता है, लेकिन शव कम होने के कारण 25 छात्रों को मौका दिया जाता है। इसके साथ ही किसी विशेष अंग पर शोध करने के लिए भी एक बार में दो या चार छात्रों को रखा जाता है, मगर इनकी संख्या भी 12 होती है।
शरीर की जानकारी देने से पहले दिलाई जाती है शपथ
किसी भी मेडिकल के छात्र को मानव शरीर की संरचना की शिक्षा देने से पहले शपथ दिलाई जाती है कि वह उस इंसान की इज्जत करे। जिसने मरने के बाद अपना शरीर उन्हें पढ़ाई के लिए दान दिया है। इससे छात्र मानसिक रूप से तैयार होते हैं कि आखिर यह दान उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है। मरने वाला कौन था और इस गंभीर विषय के बारे में उसने अपना शरीर दान कर दिया।
कई सालों तक सुरक्षित रहता है शव
इंसानी शरीर को मेडिकल के छात्रों की पढ़ाई के लिए सुरक्षित रखने के लिए काफी देखभाल की जरूरत होती है। इस बात का विशेष ख्याल रखा जाता है कि किसी भी तरह मानव शरीर को नुकसान या फिर कोई हानि न होने पाए। शरीर को कई केमिकल के लेपों द्वारा सुरक्षित रखा जाता है। साथ ही इनको डीप फ्रीजर में भी रखा जाता है, जिससे शव कई सालों तक सुरक्षित रहता है।
पिछले एक साल में 10 ने देह दान करने की जताई इच्छा
मानव शरीर को मेडिकल के छात्रों को दान करने के लिए पिछले एक साल में 10 लोग सामने आ चुके हैं। अपना शरीर दान करने के लिए दानदाता को एक शपथ पत्र देना होता है कि वह अपनी स्वेच्छा से मरने के बाद अपना शरीर दान करना चाहता है। इसके बाद उनके परिवार व नजदीकी लोगों को भी कुछ जरूरी कागजी कार्रवाई पूरी करनी पड़ती है। साथ ही अपना नंबर भी मेडिकल कॉलेज को देना होता है। इसके बाद दानदाता की मौत होने पर परिवार के लोग मेडिकल कॉलेज को सूचना देते हैं।
देह दानदाता की इच्छा पूरी करने से भी बचते हैं परिजन
जीवित व्यक्ति इच्छा से शरीर दान कर सकता है, लेकिन ऐसे भी कई मामले है, जब मृतक की इच्छा पूरी करने के बजाय परिजन मृतक का दाह संस्कार कर देते हैं। इन परिस्थितियों में कुछ नहीं किया जा सकता, क्योंकि मृतक के बारे में मेडिकल कॉलेज को सूचना ही नहीं मिलती, जब तक पता चलता है तो तब तक काफी देर हो चुकी होती है।
2011 से पहले पुलिस पर निर्भर थे मेडिकल के छात्र
इंसानी शव बाजार में नहीं मिलता है। जरूरत पूरी करने के लिए 2011 से पहले मेडिकल कॉलेज को पुलिस पर निर्भर रहना पड़ता था। पुलिस के पास लावारिस शव आने पर उसे लेने के लिए डीएम से इजाजत लेनी पड़ती थी। लंबी प्रक्रिया के बाद शव कॉलेज को मिलता था, लेकिन ज्यादातर दुर्घटना से होने वाली मौतों के शव होते थे, जो क्षत्विक्षत होते थे, लेकिन 2012 के बाद हालात सुधरे हैं।
मेडिकल कॉलेज की एनॉटमी विभाग की एचओडी प्रो. डा. प्रीति सिन्हा का कहना है कि इंंसानी शरीर को हमेशा नष्ट होने से बचाना चाहिए। यह मेडिकल के छात्रों के लिए अनमोल होता है। अगर मानव शरीर छात्रों को मिलेगा तो वह अपनी पढ़ाई पूरी करते हुए मानव जाति की सेवा करने के लायक बनते हैं।
मेडिकल कॉलेज के प्रिसिंपल प्रो. आरसी गुप्ता का कहना है कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है। जिससे हर इंसान का भला होता है।
हमारे पास पिछले कुछ सालों से मृत इंसानी शरीर की कमी तो नहीं है, लेकिन छात्रों की संख्या कुछ बढ़ती जा रही है। ऐसे में इसके लिए लोगो को जागरूक किया जाता है कि वह मरने के बाद अपने शरीर को दान करें।