अमेरिका ने चीन के एक गुब्बारे को 4 फरवरी 2023 को दक्षिण कैरोलिना के अटलांटिक तट के पास गिरा दिया। अमेरिका ने इसे ‘स्पाई बलून’ बताया वहीं चीन का कहना है कि ये बलून मौसम संबंधी जानकारी जुटाने के दौरान रास्ता भटक गया था। अमेरिका का दावा है कि चीन ने जासूसी गुब्बारों की मदद से भारत, जापान, फिलीपींस और वियतनाम जैसे कई देशों को निशाना बनाया है।
चीन ने खास तौर पर दूसरे देशों के सैन्य ठिकानों पर नजर रखने के लिए ये हथकंडा अपनाया। वहीं चीन ने ऐसे दावों को खारिज करते हुए इसे ‘सिविलियन एयरशिप’ बताया। हीलियम से भरे इस तरह के गुब्बारे 24 से 37 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ान भर सकते हैं। ये लड़ाकू विमानों की क्षमता से दोगुनी ऊंचाई हैं। सोलर पैनल लगा होने की वजह से इस तरह के गुब्बारे काफी समय तक हवा में रह सकते हैं।
रडार, कैमरा, सेंसर्स और कम्युनिकेशन इक्विप्मेंट्स से लैस ये गुब्बारे कितने विशालकाय होते है, इसका अंदाज इनकी 130 फीट की लंबाई और 120 फीट की चौड़ाई से समझा जा सकता है। यानि तीन बसों को लाइन से खड़ा कर दिया जाए तो उतनी चौड़ाई इस एक गुब्बारे की बैठती है।
चीनी सेना के अखबार पीपल्स लिबरेशन आर्मी डेली ने 2020 में एक लेख में कहा था कि मॉडर्न वॉरफेयर का नया मैदान नियर स्पेस यानि धरती से करीब सवा सौ किलोमीटर ऊपर होगा। स्पाई बैलून्स ऊंचे आसमान में वैसे ही काम करते हैं जैसे कि पनडुब्बियां समुद्र की गहराई में करती हैं। क्या चीन की इस चुनौती से निपटने के लिए भारत मुस्तैद है? मुस्तैद रहना भी चाहिए, क्योंकि चीन जिस राह पर चल रहा है, वह विस्तारवादी है।
धरती पर आने वाला है पहला ‘स्पेस बेबी’
क्या अंतरिक्ष में बच्चे पैदा किए जा सकते हैं? ये सवाल वैज्ञानिकों के लिए तब से चुनौती बना हुआ है जब इंसान पहली बार 1961 में अंतरिक्ष में गया था। अगले 5 साल में ‘स्पेस बेबी’ का जन्म हकीकत में बदल सकता है। ब्रिटेन के वैज्ञानिक नीदरलैंड्स स्थित कंपनी स्पेसबॉर्न यूनाइटेड के साथ मिलकर एक मॉड्यूल पर काम कर रहे हैं। इस मॉड्यूल को असिस्टेड रिप्रोडक्शन टेक्नोलॉजी इन स्पेस नाम दिया गया है।
इसके तहत स्पेस में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन यानी कश्ऋ ट्रीटमेंट (शरीर के बाहर कृत्रिम वातावरण में) से भ्रूण का जन्म होगा। फिर इसे धरती पर लाकर महिला के गर्भ में ट्रांसफर किया जाएगा। इस तरह से जन्म लेने वाले बच्चे अंतरिक्ष शिशु (स्पेस बेबीज) कहलाए जाएंगे। उम्मीद की जा रही है कि 2028 में पहला ‘स्पेस बेबी’ धरती पर आ जाएगा। इस प्रोजेक्ट के लिए सबसे पहले चूहों पर एक्सपेरिमेंट किए जाएंगे।
उनके स्पर्म और अंडों को स्पेस में फर्टिलाइज कराया जाएगा। स्पेसबॉर्न यूनाइटेड को एसगार्डिया नाम की कंपनी का सपोर्ट भी हासिल है। 2016 में बनाई गई इस कंपनी का लक्ष्य अंतरिक्ष में पहली इंसानी बस्ती बनाना है। अंतरिक्ष में पहले इंसानी बच्चे की डिलीवरी साल 2031 तक हो सकती है।
फिलहाल यह पृथ्वी की निचली कक्षा में ही मुमकिन होगा। जिन महिलाओं को पहले दो कामयाब डिलिवरीज का अनुभव है, उन्हीं को इस मिशन के लिए चुना जाएगा। इसमें तापमान, मौसम या रॉकेट लॉन्चिंग के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखना होगा। केवल एक प्रेग्नेंट महिला पर एक्सपेरिमेंट नहीं किए जा सकेंगे। एक साथ लगभग 30 महिलाओं को इसके लिए चुना जाएगा।
स्लॉग ओवर
पड़ोसी मुल्क में एक बेचारे किसान का गांव में जीना दुश्वार हो गया। खेती से जो पैसा आता था उससे कहीं ज्यादा लागत ही आ जाती थी। उसने शहर जाकर मेहनत मजदूरी करने का इरादा किया। शरीर पर सिर्फ लुंगी पहने किसान शहर पहुंचा। रेलवे स्टेशन से बाहर निकला तो उसे बड़ी आलीशान इमारत दिखी-‘अब्दुल्ला होटल्स एंड रिजॉर्ट्स’।
काम की तलाश से पहले किसान ने सोचा शहर का एक चक्कर लगा लूं। पैदल ही निकल पड़ा। थोड़ी दूर पर उसे ‘अब्दुल्ला स्कूल’ की बड़ी सी बिल्डिंग दिखी। फिर थोड़ा आगे बढ़ा तो ‘अब्दुल्ला कोल्ड स्टोरेज’ दिखा। किसान एक चौपले तक पहुंच पाता, इससे पहले ही उसे ‘अब्दुल्ला राइस मिल्स’, ‘अब्दुल्ला शुगर मिल्स’ और ‘महलनुमा अब्दुल्ला पैलेस’ दिख गए। जहां भी जाता, उसे अब्दुल्ला ही अब्दुल्ला दिखता।
किसान चौपले तक आ गया। वहां उसने बीचोबीच पहुंच कर लंबी ठंडी सांस ली। फिर ऊपर आसमान की ओर देखते हुए अपनी लुंगी खोल कर उछाल दी। बोला-‘जब तूने देना ही सब अब्दुल्ला को है तो ये भी अब्दुल्ला को दे दे।’
वाकई सरकार (ऊपर वाला) किसी को देने पर आए तो उसे छप्पर फाड़ कर मिलता है। ये बात सौलह आने सच है।
(लेखक आज तक के पूर्व न्यूज एडिटर और देशनामा यूट्यूब चैनल के संचालक हैं)
खुशदीप सहगल