हिंदुस्तान में आजादी बाद लोकतांत्रिक शासन के नाम पर पिछले 75 सालों में घोटाले करके राजनीतिक लोगों ने इतने घोटाले किए हैं कि अगर अब तक हुए सभी घोटालों के पैसे को ही इकट्ठा कर लिया जाए, तो हिंदुस्तान जितना अमीर दुनिया का कोई देश नहीं होगा। हैरत की बात ये है कि पिछले 10 सालों में इन घोटालों में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है। कई तरह के घोटाले खुले भी हैं, लेकिन सरकारें, खास तौर पर केंद्र की मोदी सरकार उस पर पर्दा डालने का काम करती रही है। मसलन, अडानी के घोटलों के कई मामले सामने आए, जिनमें खुद प्रधानमंत्री मोदी का नाम भी सामने आया, इसी प्रकार से इलेक्टोरल बांड से लेकर स्वास्थ्य योजनाओं, विकास की तमाम योजनाओं और जनता को सीधे दी जाने वाली योजनाओं में भी घोटालों की लंबी फेहरिस्त है। लेकिन आपने देखा होगा कि कोरोना काल में मरीजों को अच्छे इलाज के नाम पर प्रधानमंत्री राहत कोष होते हुए भी केंद्र की मोदी सरकार 2.0 ने पीएम केयर फंड बनाया था। पीएम केयर फंड के चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने और इसके फंड में रक्षामंत्री, गृहमंत्री और वित्तमंत्री को शामिल किया गया। इसके अलावा इस फंडिंग संस्था में रतन टाटा, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज केटी थॉमस और पूर्व डिप्टी स्पीकर करिया मुंडा को भी शामिल किया गया।
जाहिर है कि ये फंड देश में कोरोना से मरते लोगों की जान बचाने, लॉकडाउन में बेरोजगार हुए लोगों को भूख से बचाने और अनाथ होते बच्चों की मदद के लिए बनाया गया था, इसलिए इस फंड में पैसे वाले लोगों ने तो दान किया ही, कुछ हमारे जैसे मध्यम वर्गीय लोगों ने अपनी मामूली सी बचत में से भी दान किया। लेकिन जब उस समय कुछ जनहित में काम करने वाले लोगों ने देखा कि इस पीएम केयर फंड से किसी को कोई सहायता नहीं दी जा रही है और इसमें करोड़ों रुपए आ चुके हैं, तो उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार से सवाल करने शुरू कर दिए और सैकड़ों लोगों ने आरटीआई यानि सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए पीएमओ और सीधे केंद्र की मोदी सरकार से सवाल किए। इन सवालों में दो सबसे महत्वपूर्ण सवाल थे, जिनमें पहला सवाल था कि पीएम केयर फंड में कितना पैसा दान में आया? और दूसरा महत्वपूर्ण सवाल था कि इस पैसे का इस्तेमाल कहां हो रहा है? लेकिन ज्यादातर आरटीआई के जवाब नहीं दिए गए, जबकि जिन आरटीआई के जवाब दिए भी गए, उनमें कुछ जवाब इस प्रकार के थे कि पीएम केयर फंड निजी फंड है, इसकी जानकारी नहीं दी जा सकती। दूसरा जवाब, पीएम केयर फंड की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती। तीसरा, पीएम केयर फंड कानूनी, संसदीय और संवैधानिक रूप से नहीं बनाया गया है और इसका पैसा सरकारी पैसा नहीं है, इसलिए इस बारे में सरकार कुछ नहीं बता सकती।
पीएम केयर फंड के ऐलान के महज तीन दिन बाद ही 1 अप्रैल 2020 को किसी ने एक आरटीआई दाखिल करके इस फंड से जुड़ी सभी जानकारियां मांगीं। इस आरटीआई के अलावा बाद में कई और भी आरटीआई डाली गईं, लेकिन सरकार ने इनका जवाब या तो गोलमोल दिया या देना उचित नहीं समझा। जब आरटीआई की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ गई और कुछ लोगों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया, तो केंद्र की मोदी सरकार ने 31 जनवरी 2023 को दिल्ली हाईकोर्ट में ये जवाब दिया कि पीएम केयर्स फंड भारत के संविधान, संसद या किसी राज्य के कानून के तहत नहीं बनाया गया है। इसलिए इसे पब्लिक अथॉरिटी नहीं कहा जा सकता है।
पीएम केयर फंड का कोई खुलासा नहीं किया गया और पूरे देश की जनता को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने अंधेरे में रखा। लेकिन अब जब पीड़ित लोगों की मदद के नाम पर बनाए गए प्रधानमंत्री के इस निजी फंड में पैसे आने कम हो गए, तो इसकी पोल खुल गई और सामने यह बात आई है कि अरबों रुपए इस फंड में अब तक जमा हो चुके हैं। जानकारी के मुताबिक इस फंड में साल 2020-21 में 7 हजार 1 सौ 84 करोड़ रुपए जमा हुए थे। इसके बाद साल 2021-22 में इस कोष में 1 हजार 938 करोड़ रुपए जमा हुए। और साल 2022-23 में 9 सौ 12 करोड़ रुपए आए। पीएम केयर फंड में व्यक्तिगत रूप से आम लोगों ने और कुछ निजी संगठनों से भी मरीजों और पीड़ितों की सहायता के लिए पैसा दिया और साल 2019-20 में इनके जरिए 3 हजार 76 करोड़ 6 लाख रुपए आए। इसी प्रकार साल 2020-21 में इसमें 10 हजार 9 सौ 90 करोड़ 2 लाख रुपए लोगों और संगठनों ने दिए। इतना ही नहीं, विदेशों से भी इस फंड में दान आया, जिसमें साल 2020-21 में 4 सौ 95 करोड़ रुपए और साल 2021-22 और साल 2022-23 में यानि इन दोनों सालों में विदेशों से महज 2 करोड़ 57 लाख रुपए ही फंड में पैसा जमा हुआ।
हैरत की बात ये है कि इस फंड को जिन मरीजों और पीड़ितों की मदद के लिए बनाया गया था, उनके लिए खर्च कमाई का बहुत छोटा सा हिस्सा ही किया गया। मसलन, जानकारी के मुताबिक, साल 2022-23 में कुल इस फंड से महज 4 सौ 39 करोड़ रुपए ही जनसेवा में खर्च किए गए, जिसमें से 3 सौ 46 करोड़ रुपए पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन ने खर्च किए। कहा जा रहा है कि ये पैसे उन बच्चों की मदद में खर्च किया गया, जिन बच्चों ने कोरोना महामारी के कारण अपने मां-बाप या कानूनी अभिभावकों या दोनों को खो दिया। इसके अलावा सरकार ने आॅक्सीजन कंसंट्रेटर की खरीद पर महज 92 करोड़ रुपए ही खर्च किए। वहीं जानकारी के मुताबिक, साल 2021-22 में इस फंड से 1 हजार 7 सौ 3 करोड़ रुपए आॅक्सीजन प्लांट्स पर और 8 सौ 35 करोड़ रुपए वेंटिलेटर्स पर खर्च किए गए। इस फंड से कुल खर्च जो उस दौरान दिखाया गया वो 1 हजार 9 सौ 38 करोड़ रुपए और साल 2022-23 के अंत में इस फंड में बचा हुआ पैसा 6 हजार 2 सौ 83 करोड़ रुपए दिखाया गया है।
बहरहाल, पीएम केयर फंड को लेकर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं, जिनमें मुख्य रूप से 6 सवाल ऐसे हैं, जिनके जवाब बहुत जरूरी हैं। पहला सवाल ये कि जब ये फंड मरीजों और पीड़ितों की मदद के लिए बनाया गया था, तो इसमें मिले पूरे पैसे को उनकी मदद के लिए क्यों नहीं लगाया गया? दूसरा सवाल, इस फंड में आए पैसे में जो पैसे खर्च हुए सरकार दिखा रही है और जो बचत दिखा रही है, उससे कहीं ज्यादा चंदा आया है, तो फिर इसका सही-सही हिसाब क्यों नहीं दिखाया जा रहा है? तीसरा सवाल, जब ये फंड सरकारी कोष में नहीं जमा हो रहा था, तो इसमें सरकारी संवैधानिक पदों पर बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तत्कालीन गृहमंत्री, रक्षा मंत्री और वित्तमंत्री क्यों शामिल हुए? चौथा सवाल, मोदी सरकार ने इस फंड की जानकारी के लिए आॅडिट क्यों नहीं कराई? और अगर ये फंड प्राइवेट बनाया गया, तो प्रधानमंत्री मोदी से लेकर रक्षामंत्री, गृहमंत्री और वित्तमंत्री सभी क्यों चुप रहे? पांचवां सवाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी तक इस फंड को लेकर कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं? छठा और सबसे अहम सवाल, क्या सरकार की दूसरी लगभग सभी योजनाओं की तरह ही पीएम केयर फंड भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया?