Saturday, July 27, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादयह संसद पर हमला पार्ट-2 तो नहीं?

यह संसद पर हमला पार्ट-2 तो नहीं?

- Advertisement -

Nazariya


RAMESH THAKURनई संसद की सुरक्षा सवालों के घेरे में है? शीतकालीन सत्र के 10वें दिन भारतीय संसद के अंदर शायद कुछ बहुत बड़ा होना मुकर्रर था। क्योंकि आज से 22 बरस पहले आतंकियां द्वारा दिया एक नासूर जख्म जो प्रत्येक 13 दिसंबर की तारीख के दिन याद करके हरा हो जाता है। खैर, कल गनीमत ये समझें कि संभावित घटना ‘पीले रंग’ तक ही सीमित रही, वरना हो कुछ ‘काला’ भी हो सकता था। 13 तारीख वैसे भी संसदीय परंपरा के लिए ‘काली तारीख’ ही है। केंद्र सरकार इस अधूरी घटना को हल्के में कतई न लें। नहीं, तो पीले रंग में छिपी ये संदेशवाहक घटना कभी भी पूर्ण घटना में तब्दील हो सकती है। इतना सतर्क हो जाना चाहिए कि दुश्मन घात लगाए बैठा है इसलिए अभी से इस तस्वीर को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। आरोपियों की बुनी साजिश के जड़ तक घुसना होगा? क्या उनका मकसद दहशत फैलाना मात्र था या कुछ और? फिलहाल ऐसे तमाम सवाल खड़े हो चुके हैं। पर, अव्वल तो इस घटना को घोर लापरवाही और सुरक्षा तंत्र की नाकामी ही कहेंगे। चाकचौबंद सुरक्षा-व्यवस्था से कहां चूक हुई, इसकी भी समीक्षा किए जाने की जरूरत है। बहरहाल, संसद तो नई-नवेली है, जिसे अत्याधुनिक सुरक्षा तकनीकों से लैस बताया जाता है। लेकिन घटना जिस अंदाज में घटी उससे साफ पता चलता है कि साजिश की तासीर बहुत कुछ और थी। आरोपी सामान्य हैं या असामान्य प्रवृत्ति के, ये तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा। पर, लोग अंदेशा ऐसा भी लगा रहे हैं कि कहीं 22 साल पहले 13 दिसंबर को जो घटना संसद में घटी थी ये उसकी पुनरावृत्ति तो नहीं? या फिर उसका पार्ट-2 की चेतावनी है। इस लापरवाही की जवाबदेही किसकी हो, ये बिना देर किए सुनिश्चित हो। एक थ्योरी ये समझ में नहीं आती, आखिर शीतकालीन सत्र को चले कई दिन हो चुके हैं। पर, हरकत संसद हमले की बरसी के दिन ही क्यों होती है। अचंभित कर देने वाली बात एक ये भी है कि आरोपियों ने भरत सिंह के स्टाइल को क्यों कॉपी किया? पीला धुआं फैलाकर, नारे लगाना, तानाशाही से मुक्ति मिले? आखिर ये सब किस ओर इशारा करता है। कौन है घटना के पीछे, उसे सामने लाना ही होगा और आरोपी ने जो तानाशाही से आजादी के नारे लगाए हैं उसके निहितार्थ भी सार्वजनिक होने चाहिए।

आरोपियों का हमले की बरसी के दिन ‘संसद अटैक-2’ का संदेश देना निश्चित रूप से बैचेन करता है। पीले रंग में छिपे काले संदेश को समझा होगा। दुश्मन अंदरूनी है या बहारी? उन्हें खींचकर बाहर निकालना होगा। प्रतीत ऐसा होता है कि आरोपी सिर्फ मोहरा मात्र हैं। मास्टर माइंड कोई और ही है? जब से नई संसद में सत्र और संसदीय कार्य शुरू हुए हैं। संसद सदस्य अपनी सुरक्षा के प्रति निश्चित और बेखबर हैं। क्योंकि संसद की सुरक्षा सेफ्टी मानकों के लिहाज से अत्याधुनिक बताई जाती हैं। संसद की एक-एक ईट पर चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा पहरा बिछा हुआ है। खुदा न खास्ता इंसानी सुरक्षा तंत्र से अगर कोई चूक भी हो जाए, तो पूरी बिल्डिंग तीसरी आंख यानी सीसीटीवी कैमरों से लैस है। कोई संदिग्ध क्या, परिंदा भी पर नहीं मार सकता। पर, अब इन मौखिक और कागजी सुरक्षा व्यवस्था पर संसद सदस्यों को एतबार नहीं रहा। क्योंकि उन सभी को धता बताते हुए आरोपी विजिटर बनकर आसानी से भीतर घुस गए और अपने मंसूबों को अंजाम दे दिया।

गनीमत ये समझें कि घटना के दौरान आरोपियों के हाथ में सिर्फ ‘स्मोक बम’ ही थे, अगर असलहा-वगैरा होता तो वो इस्तेमाल भी कर सकते थे। क्योंकि जब वो सुरक्षा तंत्र के आंखों में धूल झोंककर आपत्तिजनक वस्तुएं अंदर ले जा सकते हैं तो बंदूक-बारूद क्यों नहीं? इसलिए घटना को सबसे पहले सुरक्षा चूक ही कहेंगे। जबरदस्त सुरक्षा पहरे को बेवकूफ बनाकर ‘स्मोक बम’ फेंककर संसद के भीतर आरोपी अफरा-तरफी मचा देते हैं। बाकायदा विजिटर बनकर संसद की कार्यवाही देखने पहुंचे हैं। दर्शक दीर्घा में करीब चार-पांच घंटे बिताते हैं और लंच से पहले अचानक छलांग लगाकर सांसदों की कुसिर्यों तक जाते हैं। पीले रंग का स्मोक बम फोड़ देते हैं। तानाशाही से आजादी जैसे नारे लगाते हैं। ये पूरा वाक्या तकरीबन चालीस से पैंतालीस मिनट तला। सुरक्षाकर्मियों के पहुंचने से पहले दो सांसद हनुमान बेनीवाल और मलूक नागर हिम्मत दिखाकर उन्हें दबोचते हैं और उन्हें सुरक्षा कर्मियों के हवाले करते हैं।

शुरुआती पूछताछ में एक आरोपी अपना नाम सागर सरना बताया है और मैसूर से भाजपा सांसद प्रताप सिन्हा की सिफारिश पर कार्यवाही देखने पहुंचे। वो झूठ बोल रहा है या सच? ये जानने के लिए उसका नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट जरूर करवाना चाहिए। अगर कोई गहरी साजिश है भी, जिसे कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी भी बताते हैं, पता लगाने की दरकार है। संसद में सुबह तक सब कुछ नॉर्मल था, 22 वर्ष पूर्व हुए हमले की बरसी थी जिस पर सभी सांसदों ने शहीदों को श्रद्धांजलि दी और उसके बाद रोजाना की भांति सत्र की कार्यवाही में हिस्सा लेने जाते हैं। किसी को थोड़ा सा भी अंदेशा नहीं था कि नई संसद में भी कोई ऐसी भी हरकत कर सकता है। संसद सदस्य सभी आश्वस्त थे कि नई संसद सुरक्षा मानकों से अभेद है। विपक्षी दल किसी बड़ी घटना होने की आशंका जता रहे हैं। उनकी आशंकाओं को ध्यान में रखकर भी जांच करनी चाहिए, इसके अलावा उसी वक्त बाहर भी एक युवती-युवक ने भी तानाशाही से आजादी के नारे लगा थे उनसे भी कड़ाई से पूछताछ हो? देशवासियों में ये संदेश बिल्कुल भी नहीं जाना चाहिए कि जब संसद ही सुरखित नही ंतो वो भला कैसे सुरक्षित होंगे।


janwani address 8

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments