Tuesday, April 1, 2025
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जगजीत सिंह ने अपनी आवाज से जग जीता

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अमिताभ स.

बीती सदी का सत्तर का दशक था। उस दौर में, गजल गायकी के मायने नूरजहां, मल्लिका पुखराज, बेगम अख्तर, केएल सहगल, तलत महमूद और मेंहदी हसन ही था। लेकिन जमाना बदला और जगजीत सिंह की एल्बम ‘अन फॉरगेटेब्लस’ ने संगीत में उफान ला खड़ा किया। इसमें थी नयापन और ताजगी की खुश्बू- तारोताजा आवाज और सुरीले बोलों का अनुपम संगम। उन्हें अपनी पत्नी चित्रा की संगत क्या मिली, गजल की दुनिया ही बदल गई। गजल की रूह से छेड़छाड़ के बगैर कर्ण प्रिय, सुरीली और आम जन तक पहुंचाने में उनकी अहम भूमिका रही।

पद्म भूषण जगजीत सिंह ने जग जीता अपनी आवाज से। राजस्थान के श्री गंगानगर में जन्मे जगजीत सिंह गुरबाणी कहते- कहते देश- दुनिया के नंबर वन गजल गायक बन कर उभरे। उन्होंने पारम्परिक गजल न समझने वालों के लिए आसान गजल गाई। उन्होंने पचास से ज्यादा सालों तक यूं गाया, जैसे कोई सांस लेता है। ‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो..’(कैफी आजमी), ‘झुकी झुकी सी नजर बे-करार है कि नहीं..’(कैफी आजमी), ‘तेरे आने की जब खबर महके ..’ (नवाज देवबंदी), ‘हर तरफ हर जगह बे-शुमार आदमी..’ (निदा फाजली), ‘प्यार का पहला खत लिखने में वक़्त तो लगता है.. ‘ (हस्तीमल हस्ती), ‘सरकती जाए है रुख से नकाब आहिस्ता- आहिस्ता .. ‘ (अमीर मीनाई) जैसे मधुर नगमों- गजलों से दुनिया को सुरूर में पिरोते गजल गायकी के लिजेंड पद्मभूषण जगजीत सिंह आज होते तो 84 साल के होते। 8 फरवरी 1941 को उनका जन्म राजस्थान के श्री गंगानगर में हुआ था।10 अक्टूबर 2011 की विदा होने से सालों बाद भी गजल प्रेमी उनकी आवाज में डूब कर ‘आंखों में नमी, हंसी लबों पे..’ सुनते- सुनते अपना तनाव भूल जाते हैं।

जगजीत सिंह के परिवार का गीत- संगीत से कोई नाता नहीं था। पिता सरदार अमर सिंह धीमान सरकारी मुलाजिम ठहरे, हमेशा ही चाहते थे कि उनका बेटा बड़ा हो कर आई ए एस अफसर बने। लेकिन बेटे ने दुनिया भर में अपना नाम महका कर उनकी झोली खुशियों से भर दी। उनकी मां सरदारनी बच्चन कौर समराला के निकट ओटालान गांव के सोखी परिवार की बेटी की थी। हालांकि जगजीत सिंह का जन्म नाम जगमोहन सिंह धीमान था, जिसका मतलब भी जग को मोह लेने वाला ही होता है। उनकी चार बहनें और दो भाई उन्हें प्यार से जीत पुकारते थे। जगजीत सिंह ने स्कूली शिक्षा ली श्री गंगानगर के खालसा हाई स्कूल से। उन्होंने इंटर विज्ञान विषय में किया श्री गंगानगर के ही सरकारी स्कूल से। आगे एम. ए. किया आर्ट्स विषयों में डी ए वी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, हरियाणा से।

गीत- संगीत से उनका नाता बचपन से रहा। उम्र होगी 12 साल। उन्होंने सबसे पहले श्री गंगानगर से पंडित छगनलाल शर्मा से दो साल तक संगीत की बारीकियां सीखीं। फिर अगले छह साल उन्होंने संगीत शिक्षा ग्रहण की सैनिया घराने के उस्ताद जामात खान से। इसी दौरान, उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत – ख्याल, ठुमरी और द्रुपड़- में महारत हासिल की। कॉलेज के दिनों में तो कम मशहूर गुरुओं से भी संगीत सीखने में जरा नहीं झिझके। पंजाब और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सूरज भान ने जगजीत सिंह के संगीतमय अभिरुचि की पहचान लिया। 1965 में गरुद्वारों में गुरबाणी, फिर जालन्धर रेडियो पर गजल गायकी के बाद संगीत करियर में कदम रखने के लिए उन्होंने मुंबई का रुख किया। संघर्ष के दिन थे। उनका कोई गॉड फादर नहीं था, इसलिए मुंबई में खासी मशक़्कत करनी पड़ी। वह पेइंग गेस्ट के तौर पर किसी के घर में रहे और गाने की छोटी- बड़ी तमाम पेशकशों को सहर्ष स्वीकार किया। विज्ञापन फिल्मों में गाने गाए, साथ- साथ शादी- ब्याह में भी गीत- टप्पे गाने से कतराए नहीं।

बीती सदी का सत्तर का दशक था। उस दौर में, गजल गायकी के मायने नूरजहां, मल्लिका पुखराज, बेगम अख्तर, केएल सहगल, तलत महमूद और मेंहदी हसन ही था। लेकिन जमाना बदला और जगजीत सिंह की एल्बम ‘अन फॉरगेटेब्लस’ ने संगीत में उफान ला खड़ा किया। इसमें थी नयापन और ताजगी की खुश्बू- तारोताजा आवाज और सुरीले बोलों का अनुपम संगम। उन्हें अपनी पत्नी चित्रा की संगत क्या मिली, गजल की दुनिया ही बदल गई। गजल की रूह से छेड़छाड़ के बगैर कर्ण प्रिय, सुरीली और आम जन तक पहुंचाने में उनकी अहम भूमिका रही। मशहूर शायर सुदर्शन फाकिर की नज्म ‘दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी..’ को अपने संगीत और आवाज से इस कदर संवार कर कि उनके इस पहले रिकार्ड का नाम ही ‘कागज की कश्ती’ हो गया। उनके जीते जी तक हर लाइव कंसर्ट में यह गजल लाजमी होती ही थी। उनके भीतर नई खोज, नई निगाह, नई कल्पना और नया पेश करने का जबरदस्त हुनर उछालें मार रहा था। ‘अन फॉरगेटेब्लस’ ने बिक्री और लोकप्रियता के नए आयाम गढ़ दिए। ‘ए साउंड अफेयर’ और ‘पेशंस’ रिलीज होते- होते जगजीत- चित्रा की जोड़ी आसमान की बुलंदी पर थी।फिर 1990 के दशक में उतरी ‘बिआंड टाइम’ के संग जगजीत सिंह ने नया अनुभव किया- आवाज का जादू ऐसा उभरा कि समय और माहौल को चीर कर लांघ गया।

जगजीत सिंह ने अपने चहेतों के गुलशन को महकाया बेशकीमती ‘होप’, ‘इन सर्च’, ‘इन साइट’, ‘मिराज’, ‘विजंस’, ‘कहकशां’, ‘लव इज ब्लाइंड’, ‘चिराग’ जैसे संगीत नगीनों से। शास्त्रीय गजल एल्बम के तौर पर ‘सजदा’ में उनकी जुगलबंदी की स्वर कोकिला भारत रत्न लता मंगेशकर ने। उन्होंने खुशियों और उल्लास से भरी कई पंजाबी एल्बमें भी पेश कीं। बॉलीवुड ने भी उन्हें सिर आंखों पर बैठाया। ‘अर्थ’, ‘साथ- साथ’, ‘प्रेम गीत’ जैसी यादगार फिल्मों में उन की गायकी के रंग दूर- दूर तक फैले। उनकी एल्बमें आज भी गर्मागर्म भठूरे- छोलों की तरह हाथोंहाथ बिकतीं रहीं हैं। उन्होंने फिल्मों में म्यूजिÞक कम्पोज भी किया। उन्होंने दूरदर्शन सीरियल ‘मिर्ज़ा गालिब’ को दिल छूते संगीत और आवाज से संवारा। दो राय नहीं की आज तक अगर किसी फनकार ने मिर्जा गालिब की शेर- ओ- शायरी से इंसाफ किया है, तो वह इकलौते जगजीत सिंह ने ही।

जगजीत सिंह की खासियतों में शुमार है कि उन्होंने अपनी गायकी का दायरा गजल तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि भजन भी खूब गाए। ‘मां’, ‘हरे कृष्ण’, ‘हे राम .. हे राम.. ‘, ‘इच्छाबल’ और पंजाबी में ‘मन जीते जगजीत’ एल्बमों के सहारे वह मुकेश, हरिओम शरण, यशुदास, अनूप जलोटा और नितिन मुकेश की कोटि में आ गए। उनकी बड़ी उपलब्धि रही कि उनके भजन एल्बमों को महानगरों के मनोवैज्ञानिक मनो रोगियों के कारगर इलाज तक के लिए सुनने की सलाह देते हैं। उन्होंने भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं को अपनी आवाज से संवारा। उनके जीवन के आखिरी दशक में उनकी गजलों का मूड बदता है। पहले से ज्यादा आत्मियता उभरी। ‘फेस टू फेस’, ‘आईना’, ’क्राई फॉर क्राई’ वगैरह एल्बमों गजल की नई दुनिया खोलती है। उनके बेहतरीन रोमांस का नजरिया ‘दिल कहीं होश कहीं’ एल्बम में सुना जा सकता है।उनके फनकार से रु-ब-रु कराती बॉलीवुड की फिल्मों में ‘दुश्मन’, ‘सरफरोश’ और ‘तरकीब’ शुमार हैं।

संदेह नहीं कि इस गजल बादशाह ने सबसे टॉप के गजल गायक की पदवी हासिल की। उनके किशोर बेटे विवेक की दर्दनाक अकस्माक मृत्यु के बाद चित्रा सिंह की गायकी से विदाई तक जगजीत-चित्रा की जोड़ी का वाकई कोई जवाब नहीं था। वह अपने असीम दर्द के बावजूद कभी नहीं थमे, ठहरे। आधी सदी तक यूं गाते- गुनगुनाते रहे, जैसे कोई सांस लेता है। उन्होंने ही सबसे पहले पारम्परिक गजल को न समझने वालों के लिए आसान गजल के रूप में पेश किया। इसी के चलते उनके चाहने वाले सारी दुनिया में फैले हैं। उनकी आवाज खुदा का नायाब तोहफा है- दर्द है, जो एक आशिक अपने प्यार के खोने पर सहलाता है; स्नेह है, जो एक मां के दिल में अपने लाडले के लिए उमड़ता है; चाहत का भय है, जो एक युवक महसूस करता है, जब युवती उसके कमरे में आती है; और तड़प है, जो एक साकी के नसीब में होती है। सच है कि संगीत की दुनिया गजल के बिना अधूरी है, और गजल की दुनिया जगजीत सिंह के बिना यतीम है। बेमिसाल संगीतमय योगदान के लिए उन्हें 2003 में पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया, उनकी स्मृति में दो डाक टिकटें भी जारी की गर्इं। आखिरी सालों में, जगजीत सिंह मुंबई में रहते रहे और तीन सालों में एक बार विदेशों में लाइव कंसर्ट के टूर भी करते थे। करीब 70 साल की उम्र में, अपनी सुकून भरी आवाज को गूंजते छोड़ कर वह दुनिया से यूं रुखसत हुए कि उनके खोदाई ‘चिट्ठी न कोई संदेश, जाने वो कौन- सा देश, जहां तुम चले गए..’ गुनगुनाते रह गए।

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