Sunday, January 26, 2025
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कंगारू को मिली पूंछ

BALWANI

नरेन्द्र देवांगन

कंगारू एक स्तनधारी प्राणी है, जो अपने पिछले पैरों की सहायता से उछलता रहता है और वोम्बाट का एक छोटा भालू जैसा प्राणी है। ये दोनों विचित्र आस्टेऊलिया महाद्वीप में पाए जाते हैं।

बहुत पुरानी बात है। उस समय पृथ्वी पर रहने वाले जानवर इस तरह के नहीं होते थे, जैसे अब हैं। उस समय कंगारू के शरीर पर पूंछ नहीं होती थी। वोम्बाट यानी आस्टेऊलिया में रहने वाले छोटे भालुओं की गरदन गोल और लंबी हुआ करती थी।

आस्टेऊलिया के किसी जंगल में एक कंगारू तथा एक छोटा भालू रहते थे। दोनों में प्रगाढ़ मित्रता थी। दोनों प्राय: साथ-साथ ही रहते थे।

भालू ने अपने रहने के लिए एक वृक्ष के तने में एक कोटर बनाया हुआ था जहां वह रात के समय में विश्राम करता था।

कंगारू को खुले में सोना ज्यादा पसंद था, इसलिए वह खुले वातावरण में ही सोता था। रात के समय जब हवा वृक्ष के पत्तों से टकरा कर सरसराहट पैदा करती तो उसे सुन कर कंगारू को बहुत आनंद मिलता था। रात को सोते समय आकाश में चमकते सितारों को निहारना उस का प्रिय शौक था।

भालू की आदतें कुछ भिन्न थीं। उसे न तो ज्यादा सर्दी पसंद थी और न बरसात का मौसम। कंगारू भालू को इस बात के लिए चिढ़ाता रहता था।

कंगारू भालू से कहा करता, ह्णदोस्त भालू, तुम तो सचमुच ही गंदे हो। शायद तुम डरते हो बाहर सोने से, तभी तो अपने छोटे से दड़बे में सिकुड़े सिमटे पड़े रहते हो।

मैं जहां भी रहता हूं, अच्छे से रहता हूं, तुम्हें इस से क्या? भालू हर बार कंगारू की बात टालने का प्रयास करता।

ह्णभालू, तुम्हारा दड़बा भी तो कितना गंदा है, बदबू आती है उस में घुसते ही, अरे, मेरी तरह बाहर सोया करो न, खुले वातावरण में सोने का आनंद ही कुछ और है,ह्य कंगारू ने कहा।

भालू, बोला, तुम्हारा खुला वातावरण तुम्हें ही मुबारक हो। मुझे तो अपने छोटे से कोटर में सोना ही ज्यादा भाता है। न वर्षा में भीगने का डर, न सर्दी में ठंड का भय।

इसी तरह की नोक झोंक दोनों में चलती रहती थी। कंगारू भालू की खूब हंसी उड़ाता, लेकिन भालू उस की बात पर कान नहीं देता था।

एक दिन की बात है, सर्दी का मौसम था। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। ऊपर से वर्षा भी बहुत तेजी से हो रही थी।

कंगारू खुले मैदान में बुरी तरह से भीग चुका था। ठंड के कारण उस के दांत बजने लगे तो उस ने भालू के कोटर में सोने का विचार किया।

कंगारू भालू के कोटर के पास पहुंचा और जोर-जोर से कोटर को खटखटाने लगा लेकिन भालू ने कोटर का दरवाजा नहीं खोला।

तुम्हारे लिए मेरे घर में जगह नहीं है। तुम्हें तो खुले में सोना पसंद था न। अब सोओ खुले में और मरो ठंड से, भालू कोटर के अंदर से बोला।

भालू की बात पर कंगारू को गुस्सा चढ़ आया। उस ने पूरी ताकत से भालू के दरवाजे में लात मारी और दरवाजा तोड़ कर अंदर आ गया।

कंगारू दरवाजे के समीप ही सिकुड़ सिमट कर बैठ गया। खुले दरवाजे से वर्षा की बूंदें उसे भिगो रही थीं, जबकि भालू आराम से सोया पड़ा था। सारी रात उस ने ऐसे ही काटी।

अगले दिन जब सुबह हुई तो बादल छंट चुके थे। वर्षा बंद हो चुकी थी।

कंगारू अपने बदन को झाड़ता हुआ उठ कर बाहर आया। ठंड के कारण उस का बदन बुरी तरह से दर्द कर रहा था। उस का मूड भी बिगड़ चुका था। उस ने भालू की तरफ देखा जो अब भी बड़े मजे में अपनी कोटर में पसरा पड़ा था।

कंगारू को उस पर बहुत गुस्सा आया। उस ने एक भारी पत्थर उठाया और भालू के सिर पर दे मारा।

वार करारा था। चोट के कारण भालू का सिर चपटा हो गया और उस की नाक गोलाई के आकार में मुड़ कर थूथन हो गई।

भालू ने भी बदला लेने की ठान ली। उस ने एक मोटी लकड़ी को तोड़ कर भाले जैसा बनाया और पूरी ताकत से कंगारू की पीठ के नीचे घोंप दिया।

चोट खा कर कंगारू दर्द से चीखने लगा। उस ने भाला निकालने की भरपूर कोशिश की, किंतु असफल रहा।

उसी लकड़ी के भाले के ऊपर धीरे-धीरे कंगारू की पूंछ उग आई। इसी वजह से आज तक कंगारूओं की पूंछ लंबी और बहुत मजबूत होती है तथा भालुओं का सिर चपटा और थूथन गोल होती है।

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