Sunday, May 25, 2025
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कर्म ही है जीवन का वास्तविक आधार

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मनुष्य ही नहीं, हर प्राणी के लिए कर्म करना अनिवार्य है। जब भी हम अपना स्वाभाविक कर्म व कर्तव्य का पालन करना छोड़ देते हैं हमारी दुर्गति ही होती है। हम इतने बड़े व्यापारी न बनें कि अपना सौंदर्य, अपनी कला, अपनी योग्यता अथवा अपनी नैतिकता ही किसी लालच के वशीभूत होकर खो बैठें। कर्म द्वारा हम न केवल आसानी से अपनी आजीविका ही कमा सकते हैं अपितु स्वस्थ और रोगमुक्त भी बने रहते हैं।

आकाश में घने बादल छाए हुए थे। रिमझिम-रिमझिम बूंदें पड़ पड़ रही थीं। ऐसे में जंगल में एक मोर आनंदित होकर नृत्य कर रहा था। उसके खूबसूरत पंख इंद्रधनुषी छटा बिखेर रहे थे। वहां से गुजरने वाला एक व्यक्ति रुक कर यह सुंदर दृश्य देखने लगा। तभी अचानक मोर की नजर उस व्यक्ति पर पड़ी। उस व्यक्ति के हाथ में एक थैला था।

मोर ने पूछा कि तुम कहां जा रहे हो और तुम्हारे हाथ में ये क्या है? व्यक्ति ने कहा कि मैं बाजार जा रहा हूं और मेरे हाथ में जो थैला है उसमें अनाज भरा हुआ है। मैं ये अनाज बेचकर एक सुंदर सा पंख खरीद कर लाऊंगा और उससे अपना घर सजाऊंगा। यह सुनकर मोर बोला, ‘देखो मेरे पंख भी बहुत सुंदर हैं। मुझे खाने की तलाश में दिन भर इधर-उधर भटकना पड़ता है। यदि तुम मुझे अनाज दे दो तो मैं तुम्हें अपना खूबसूरत पंख दे दूंगा।’ व्यक्ति को ये सौदा पसंद आया। उसने अनाज मोर को दे दिया और पंख लेकर खुशी-खुशी अपने घर चला गया।

अब तो वह व्यक्ति रोज-रोज ही अनाज लेकर मोर के पास आता और अनाज के बदले में पंख लेकर खुशी-खुशी अपने घर चला जाता। मोर भी बहुत खुश रहने लगा। अब उसे खाने की तलाश में दिन भर इधर-उधर नहीं भटकना पड़ता था। दिन भर अपनी चोंच से अनाज के दाने चुगता रहता और आराम से पड़ा रहता। धीरे-धीरे उसके पंख कम होने लगे और एक दिन वो भी आया जब उसके सारे पंख ही समाप्त हो गए। जब पंख समाप्त हो गए तो उस व्यक्ति ने अनाज लेकर आना भी छोड़ दिया। एक दिन मोर का भी सारा अनाज समाप्त हो गया जो उस व्यक्ति द्वारा दिया गया था।

अब मोर को भूख लगी तो उसने फैसला किया कि कहीं आसपास जाकर दाना-दुनका जुटाता हूं। मोर ने उड़ने का प्रयास किया लेकिन वो तो उड़ ही नहीं पा रहा था। उड़े भी तो कैसे? अब उसके पास एक पंख भी तो नहीं बचा था। उसने अपने शरीर पर एक नजर डाली तो पाया कि पंखों के बिना वह कितना बदसूरत लग रहा है। एक ही जगह पड़े-पड़े और आराम से सारे दिन खाते रहने की वजह से उसका शरीर भी भारी और थुलथुल हो गया था।

मोर ने घर बैठे दानों के लालच में अपनी सुंदरता ही नहीं, अपनी उड़ने की क्षमता को भी बेच दिया था और साथ ही अपनी चंचलता व कर्मशीलता से भी हाथ धो बैठा था। वह प्राय: भूखा-प्यासा पड़ा रहता। उसका नाच भी बंद हो गया था क्योंकि न तो उसके पास पंख ही थे ओर न नाचने की शक्ति ही उसमें शेष बची थी। अपनी इस स्थिति के कारण वह बहुत दुखी रहने लगा। अपमान, अभाव व अशक्तता के कारण जल्दी ही वह मौत के मुख में समा गया।

उसके साथ ऐसा क्यों हुआ? उसके साथ ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उसने कर्म करना छोड़ दिया था। मोर की सुंदरता व उसके जीवन का आधार उसके पंखों व उसके नृत्य में है, आरामपरस्ती में नहीं। मनुष्य ही नहीं, हर प्राणी के लिए कर्म करना अनिवार्य है। जब भी हम अपना स्वाभाविक कर्म व कर्तव्य का पालन करना छोड़ देते हैं हमारी दुर्गति ही होती है। हम इतने बड़े व्यापारी न बनें कि अपना सौंदर्य, अपनी कला, अपनी योग्यता अथवा अपनी नैतिकता ही किसी लालच के वशीभूत होकर खो बैठें। कर्म द्वारा हम न केवल आसानी से अपनी आजीविका ही कमा सकते हैं अपितु स्वस्थ और रोगमुक्त भी बने रहते हैं।

सीताराम गुप्ता


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