डॉ. ओपी जोशी |
उपवास, खासकर वर्षा ऋतु में, स्वास्थ्य के लिए गुणकारी होता है। आजकल उपवास की हमारी यह देशी परम्परा खाती-अघाती-मुटाती मध्यम-वर्गीय दुनिया में भी लोकप्रिय होती जा रही है। कैसे काम करती है, यह पद्धति? क्या हैं उसके लाभ?
हमारे देश में प्राचीन काल से ही उपवास का काफी महत्व रहा है। सावन माह सहित कई अन्य् पर्व एवं त्यौेहारों पर उपवास रखने की परम्पारा है। आयुर्वेद में उपवास चिकित्सा का एक महत्वरपूर्ण अंग बताया गया है।
उपवास रखने के अलग-अलग तौर-तरीके हैं। कई लोग उपवास के दौरान कोई भी खाद्य पदार्थ एवं पानी तक नहीं लेते, जबकि कुछ पानी का सेवन करते हैं। कुछ लोग केवल फल व दूध का सेवन करते हैं, तो कुछ विशेष पदार्थों का, जैसे-साबुदाना, सिंघाडा व राजगिरे का आटा आदि का। एक समय पूरा खाना खाने वाला उपवास भी प्रचलित है, जिसे ‘एकाशना’ कहा जाता है।
अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार उपवास रखने की परम्पेरा को पश्चिमी देश पहले पिछड़ापन मानते थे, परंतु अब वे भी इसके महत्वन को स्वीवकार करने लगे हैं। दुनियाभर के वैज्ञानिक एवं चिकित्सक उपवास के फायदे एवं नुकसान पर अध्ययन कर रहे हैं, परंतु कई मुददों पर वे भी एकमत नहीं हैं। कौन, किस उम्र में, कितने उपवास करे, उपवास लगातार हो या अंतराल से, कुछ खाया-पिया जाए या नहीं एवं उपवास मोटापा घटाता है या नहीं आदि विषयों पर विद्वानों की भिन्न-भिन्न राय हैं। यह भी पाया गया है कि उपवास रखने में मोटा या दुबलापन नहीं, अपितु इच्छाभशक्ति महत्व पूर्ण होती है।
अधिकांश चिकित्सक मानते हैं कि उपवास रखने से शरीर के पाचन-तंत्र को थोड़ा आराम मिल जाता है। वैसे प्रकृति ने कई जानवरों एवं मनुष्य में ऐसी व्यवस्था बनायी है कि वे कुछ समय बगैर भोजन के जिंदा रह सकते हैं। इस दौरान शरीर में जमा चर्बी/वसा (फैट्स) का उपयोग कर आवश्यक उर्जा प्राप्त की जाती है। वैसे सामान्यंत: शरीर ग्लूकोज से ऊर्जा प्राप्त करता है, परंतु इसका भंडारण नहीं होता। यह भी देखा गया है कि उपवास के लगभग एक दिन बाद ही यकृत (लीवर) में जमा ग्लायकोजीन रसायन ग्लूकोज में बदल जाता है।
एक मान्य ता यह भी है कि भोजन की पाचन-क्रिया के दौरान कुछ विषैले पदार्थ भी अल्पत मात्रा में यकृत में जमा हो जाते हैं। उपवास करने से जब पाचन-क्रिया रुक जाती है तब यकृत से ये विषैले पदार्थ निकलकर पूरे शरीर में फैल जाते हैं, हालांकि इस पर भी वैज्ञानिक एक मत नहीं हैं एवं उनके अपने कई तर्क भी हैं। विषैले पदार्थ यदि शरीर से बाहर निकल जाते हैं तो उपवास को शरीर के ‘डीटॉक्स’ (विष-मुक्ति) होने की एक प्रक्रिया माना जा सकता है।
चिकित्सकों के एक समूह की मान्यता है कि मधुमेह, दिल के रोगी, गर्भवती महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों को उपवास से बचना चाहिए। इसका कारण यह है कि उपवास से कब्ज, एसिडिटी एवं कमजोरी जैसी समस्याएं पैदा होती हैं एवं पाचन-तंत्र कमजोर हो जाता है। देश-विदेश की कई शोध संस्थांओं व विश्वविद्यालयों में समय-समय पर किये गए शोध एवं अध्ययन के परिणाम स्वरूप उपवास के जो फायदे बताये गए हैं, उनमें प्रमुख हैं-याददाश्त तेज होना, बुढ़ापा देरी से आना, दिल के रोग का खतरा घटना, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होना, मधुमेह, उच्च रक्तचाप तथा कोलेस्ट्रोल पर नियंत्रण आदि। ये लाभ कितने दिन का उपवास रखने से होते हैं एवं कितने समय तक बने रहते है, यह अभी साफ नहीं है।
कुछ अध्ययन यह भी दर्शाते हैं कि रुक-रुक कर, यानी अंतराल से उपवास करना लगातार उपवास करने से ज्याअदा फायदेमंद होता है। इससे ‘फैटीलिवर’ रोग में काफी फायदा होता है तथा ‘एल्मााइजर’ बीमारी का खतरा भी कम हो जाता है। उपवास से उपजे इस सारे विचार-विमर्श के मध्य कुछ लोगों का यह भी मानना है कि उपवास का संबंध ऋतु-परिवर्तन के अनुसार शरीर को तैयार करने से भी जुड़ा है। उपवास एवं स्वास्थ्य लाभ का मसला वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों में उलझा हुआ तो है ही, लेकिन अब इसका महत्व महसूस किया जाने लगा है।
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